दंतेवाड़ा के अति नक्सल प्रभावित मड़कामी रास के उस सड़क की पूरी कहानी जहां भ्रष्टाचार की सड़क बिछा दी गई… अब जाकर अफसर, ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई…
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इम्पेक्ट न्यूज। दंतेवाड़ा।
दिसंबर 2022 की बात है बस्तर इम्पेक्ट ने तब दंतेवाड़ा के कुछ ठेकेदारों के एक शिकायती पत्र को प्रकाशित किया था जिसमें तत्कालीन कलेक्टर विनीत नंदनवार को शिकायत की गई थी। इस पत्र में ठेकेदारों ने इसी मड़कामी रास की सड़क के लिए जिला निर्माण समिति की निविदा में लगाए गए एक शर्त का विरोध किया था। दरअसल इस निविदा में पहली बार यह शर्त रखी गई थी कि मड़कामी रास की सड़क के लिए ठेकेदार के पास सात किलोमीटर के अंदर डामर प्लांट होना जरूरी है।
ठेकेदारों का समूह कलेक्टर विनीत नंदनवार से मिला तो उन्हें व्यक्तिगत तौर पर कलेक्टर ने यह सलाह दी कि इस सड़क को फिलहाल छोड़ दें भविष्य में किसी और सड़क में यह शर्त नहीं लगाई जाएगी! माओवाद प्रभावित इस क्षेत्र में विकास की कई योजनाओं के लिए राशि मिलती है इसमें जिले में क्रियाशील औद्योगिक प्रतिष्ठानों की सीएसआर यानी कार्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी के तहत विकास कार्य, केंद्रीय विशेष अनुदान के तहत मिलने वाली राशि जिसे एससीए कहा जाता है और डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड के तहत मिलने वाली राशि जो करोड़ों में होती है। इसका पूरा कंट्रोल जिला कलेक्टर के हाथ होता है।
इसमें से मड़कामी रास से हिरोली हैल्थ सेंटर तक भाग एक और हिरोली हैल्थ सेंटर से हिरोली कैंप डोकापारा तक भाग दो साढ़े तीन — साढ़े तीन किलोमीटर के फासले की कुल दो सड़क का काम स्वीकृत किया गया। इसके लिए डीएमएफ के द्वारा राशि स्वीकृति की जानकारी विधानसभा को दी गई है। इस निर्माण के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना को एजेंसी बनाया गया। निविदा की प्रक्रिया जिला निर्माण समिति के द्वारा पूरी की गई।
विधानसभा पटल पर रखे गए दस्तावेजों के मुताबिक निविदा 21 सितंबर 2022 को बुलाई गई। 198.65 लाख प्रत्येक के हिसाब से दो सड़क के लिए 397.30 लाख रुपए इसकी मूल लागत रखी गई थी। जिसके लिए करीब 10.10 प्रतिशत ज्यादा दर पर 437.42 लाख रुपए की निविदा को स्वीकृत किया गया।
इस सड़क में भ्रष्टाचार की इबारत

दरअसल सबसे पहले किसी सड़क के निर्माण के लिए संबंधित एजेंसी की प्रक्रिया को समझना जरूरी होगा। किसी भी सड़क के निर्माण के लिए विशेषकर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत निर्माण के लिए सड़क निर्माण से पहले पूरी विडियोग्राफी कर आबादी तक पहुंच का पूरा ब्योरा रखा जाता है। जिसके बाद उस सड़क को कार्ययोजना में शामिल कर उसके निर्माण की प्रक्रिया पूरी की जाती है। इससे पहले ही तय हो जाता है कि संबंधित सड़क निर्माण में कितनी मिट्टी का अर्थवर्क होगा। इसके बाद कितने पुल, पुलिया बनाने होंगे। इसके आधार पर लागत राशि का निर्धारण होता है।
मड़कामी रास वाली विवादास्पद सड़क का पूर्व में कुआकोंडा जनपद पंचायत अंतर्गत ग्राम पंचायत के माध्यम से डब्लूबीएम निर्माण किया गया था। इसमें दो बार डब्लूबीएम कोट चढ़ाया गया था। तब पंचायत से इस काम को करवाने के लिए सम विकास योजना की राशि का पंचायत द्वारा उपयोग किया गया था। यानी उक्त सड़क पर पंचायत ने गिट्टी—मुरूम डालकर सड़क तैयार कर ली थी। पर माओवादी दबाव के चलते उक्त सड़क का डामरीकरण नहीं हो सका था।

ग्राम पंचायत ने इस मार्ग पर पुल आदि भी बना दिए थे। यानी सात किलोमीटर की इस सड़क पर करीब—करीब आधा निर्माण हो ही चुका था। कुछ स्थान पर सड़क की मरम्मत के बाद टुटे हुए पुलिया की मरम्मत कर इस सड़क को पूरा किया जाना था। इसके बाद इसमें डामरीकरण कर पक्की सड़क का स्वरूप देना था।
इस सड़क के काम का ठेका तत्कालीन और वर्तमान कांग्रेस के जिला अध्यक्ष अवधेश सिंह गौतम को मिला था। अवधेश सिंह गौतम कुआकोंडा जनपद पंचायत के पूर्व में उपाध्यक्ष रहे। वे इसी जनपद पंचायत क्षेत्र के जमीनी कांग्रेस नेता भी हैं। इससे साफ है कि इस सड़क के काम के लिए तत्कालीन राज्य सरकार का समर्थन रहा ही होगा।
मामला कैसे खुला
सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह पूरा खेल बाहर कैसे निकल आया? दरअसल छत्तीसगढ़ में सरकार बदलने के बाद कांग्रेस के कार्यकाल के दौरान जिन ठेकेदारों पर जिला प्रशासन का भारी दबाव था वे मुखर हो उठे। प्रदेश सरकार और जिला कलेक्टर को एक शिकायत की गई। पहले विभागीय स्तर पर जांच हुई और कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी ने एसडीएम के नेतृत्व में एक दल गठित कर इस मामले की बारिकी से जांच करवाई। पूरी रिपोर्ट राज्य शासन को भेज दी।
जांच के दौरान निर्मित सड़क की कोर कटिंग करवाई गई। कोर कटिंग की रिपोर्ट को देखकर चौकना स्वाभाविक था। दरअसल इस सड़क में तकनीकी तौर पर तीन बड़ी खामियां उजागर हुईं। पहली यह कि किसी भी सड़क में अर्थ वर्क के लिए अधिकतम उपयोग किए जाने वाली मिट्टी भराई की मात्रा दो से तीन गुना ज्यादा तक एमबी में सब इंजीनियर ने दर्ज की थी। (एमबी यानी किसी भी निर्माण विभाग में भुगतान की प्रक्रिया का पहला चरण मेजरमेंट बुक में दर्ज आंकड़ों से ही प्रारंभ होता है।) ये आंकड़े चौंकाने वाले थे।
विधानसभा में दी गई रिपोर्ट के अनुसार 190.26 लाख रुपए केवल मिट्टी कार्य के लिए ही दर्ज कर भुगतान किया गया है। यह भी विचित्र संयोग है कि भाग एक की सड़क के लिए 95.13 लाख और भाग दो की सड़क के लिए भी उतना ही 95.13 लाख रुपए का भुगतान किया गया।
गृहमंत्री ने सदन में यह भी घोषणा की कि इस मामले में पांच अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है। इन अधिकारियों में तत्कालीन कार्यपालन अभियंता अनिल राठौर, एसडीओ तारकेश्वर दीवान, सहायक अभियंता आरवी पटेल, और उप अभियंता रविकांत सारथी शामिल हैं। इसके अलावा, ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उसे ब्लैकलिस्ट किया गया है।
तकनीकी तौर पर दूसरी बड़ी खामी यह थी कि जिस सड़क में पहले डब्लूबीएम किया जा चुका हो उसके उपर मुरूम का काम नहीं किया जाता। इसमें यह भी दर्शाया गया था। और कोर कटिंग की रिपोर्ट में जानकारी मिली कि मुरूम का तो उपयोग ही नहीं किया गया है।
मामले की जांच के बाद कार्रवाई क्यों नहीं?

फरवरी 2024 में कलेक्टर को शिकायत की गई। इसके बाद जांच शुरू की गई। जून 2024 में कलेक्टर ने जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई के लिए रिपोर्ट भेज दी। अब जब विधानसभा के शीत सत्र में अजय चंद्राकर ने सवाल लगाया तो 16 दिसंबर को बचेली तहसीलदार ने ठेकेदार अवधेश सिंह गौतम को एक नोटिस तामिल किया है जिसमें 2 करोड़ एक लाख रुपए का भुगतान करने को कहा गया है।
विधानसभा में पंचायत मंत्री की घोषणा
विधानसभा में 19 दिसंबर को विधायक अजय चंद्राकर के सवाल के जवाब में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री विजय शर्मा ने जवाब देते हुए इस भ्रष्टाचार के इस मामले में कार्यपालन अभियंता, एसडीओ, सब इंजीनियर सभी के खिलाफ निलंबन की घोषणा करते एफआईआर दर्ज करने की बात कही है।
दरअसल बस्तर के बड़े हिस्से में इस तरह की अनेक अनियमितताओं की एक लंबी फेहरिस्त है। जिसमें जांच पर जांच के बाद भी कार्रवाई शून्य ही रही है। यदि यह मामला विधानसभा की पटल तक नहीं पहुंचता तो संभव है कि अन्य मामलों की तरह इस पर भी धूल की परत चढ़ी होती। दरअसल इस मामले में तत्कालीन कलेक्टर विनीत नंदनवार की भूमिका की जांच भी होना चाहिए।