बस्तर में IRON माइनिंग : गणित में टाटा—एस्सार फेल, अडानी की ‘एईएल’ पास, डिपाजिट—13 में पेड़ कटाई शुरू…
- विशेष रिपोर्ट / सुरेश महापात्र.
अडानी की कंपनी Adani Enterprises Ltd (AEL) ने एनएमडीसी के कार्यक्षेत्र डिपाजिट—13 में लौह अयस्क खनन की प्रारंभ करने की प्रक्रिया पूरी कर ली है। अडानी की कंपनी को सारे क्लीयरेंस प्राप्त हो चुके हैं। बीते पांच महीनों से पेड़ों की कटाई का काम शुरू कर दिया गया है। सारे काम नियम के तहत हो रहे हैं।
डिपोजिट—13 के पूर्ण स्वामित्व वाली एनसीएल कंपनी की सहायक कंपनी बैलाडीला आयरन ओर माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड को अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) लौह अयस्क खदान के लिए एक अनुबंध खननकर्ता के रूप में कार्य प्रदान कर दिया है। एनसीएल द्वारा बैलाडीला डिपॉजिट—13 को विकसित करने के लिए यह अनुबंध किया गया है। इस डिपोजिट में 2 मिटरिक टन प्रति वर्ष से तक 10 मिटरिक टन प्रति वर्ष खनन की उम्मीद है।
im-mining.com के मुताबिक अदानी ने बताया ”कंपनी ने 20 सितंबर, 2018 को पूरी तरह से स्वामित्व वाली सहायक कंपनी, ‘बैलाडीला आयरन ओर माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड’ (BIOMPL) को शामिल कर लिया है।” अडानी की कंपनी AEL, NMDC-CMDC द्वारा, दंतेवाड़ा जिला, छत्तीसगढ़ के बिलाडिला आयरन ओर डिपॉजिट के लिए माइन डेवलपर-कम-ऑपरेटर (MOO) बनने में सफल बोलीदाता था। यह NMDC- छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम लिमिटेड (NCL) के लिए खड़ा है।
इस खदान के लिए जारी निविदा के अनुसार, एक लौह अयस्क खनन सेवा समझौते (IMSA) को LOA (आश्वासन पत्र) जारी करने से 60 दिनों के भीतर हस्ताक्षर करना था और अडानी की कंपनी अडानी इंटरप्राइज लिमि. डेवलपर-कम-ऑपरेटर (MOO) के रूप में कार्य करने और IMSA पर हस्ताक्षर करने के लिए 100% स्वामित्व वाला SPV बना गया है। एनसीएल के साथ और जैसे एसपीवी (विशेष प्रयोजन कार्यकर्ता) का निर्माण एनसीएल द्वारा एलओए जारी करने की तारीख से 30 दिनों के भीतर किया जाना था।
यानी सरकार के तंत्र के देख रेख में पूरी ईमानदारी के साथ अडानी की कंपनी ने अपना काम शुरू कर दिया है। पर एक बड़ा सवाल यह उठता है कि जिस इलाके में टाटा, एस्सार व जिंदल जैसी कंपनियों को प्रास्पेक्टिंग लीज लेने में पसीने छूट गए वे हासिल नहीं कर सके। वहीं किसी को कानो—कान खबर भी नहीं हुई और अडानी की कंपनी की धमक लौह पहाड़ियों में हो गई।
एनएमडीसी द्वारा डिपाजिट—13 में करीब 350 मिलियन टन लौह अयस्क का भंडार अनुमानित किया गया है। अब यह खदान पूरी तरह से विधिसम्मत प्रावधानों के उपयोग के साथ अडानी को मिल चुका है। प्रक्रिया में कोई दोष निकाला नहीं जा सकता।
जब सरकार ही यंत्र की तरह काम करे तो गलती होना संभव नहीं है। पर कई ऐसे घटनाक्रम हैं जिनसे सरकार की नीयत की चुगली होती दिख रही है। शायद किसी ने यह नहीं सोचा था कि छत्तीसगढ़ में काबिज सरकार कुछ निजी उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए दबे पांव काम कर रही है। मामला बैलाडिला की डिपाजिट—13 के खदान के आबंटन की प्रक्रिया से जुड़ा है।
विधानसभा चुनाव 2018 की आचार संहिता लगने के दौरान अडानी की कंपनी ने बस्तर की लौह संपदा पर खनन का काम शुरू कर दिया। साथ ही यह साफ दिख रहा है कि इसके लिए तत्कालीन छत्तीसगढ़ सरकार ने खुद रास्ता बनाने का काम किया है।
इस तरह से प्लानिंग की गई कि किसी को इसकी भनक भी ना लगे और हुआ भी यही। फिलहाल बैलाडिला की लौह अयस्क खदान में अडानी की कंपनी डिपाजिट-13 के अपने खनन क्षेत्र में पेड़ों की कटाई का काम शुरू करवा चुकी है।
बड़ी बात यह है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार जाने के बाद जो काम धीमा पड़ गया था अब केंद्र में भाजपा की सरकार काबिज होने के बाद उसकी गति तेज हो गई है। बस्तर में उद्योग के लिए अडानी की राह खोलने का खेल कोई मास्टर माइंड ही कर सकता था। बिल्कुल उसी तरीके से काम भी किया गया।
इसके लिए सबसे पहले एनएमडीसी में सीएमडी के रूप में जो बदलाव किया गया यह पूरी कहानी की बुनियाद है। छत्तीसगढ़ शासन के अतिरिक्त मुख्य सचिव एन बैजेंद्र कुमार जो यहां उद्योग विभाग के प्रमुख थे। इन्हें एनएमडीसी का सीएमडी अगस्त 2017 को नियुक्त किया गया। उन्होंने 31 अगस्त को अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक के पद पर अपना कार्यभार ग्रहण किया।
छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम की स्थापना 2001 में की गई थी। एनएमडीसी के सीएमडी बनने से पहले इसके प्रमुख के रूप में एन बैजेंद्र कुमार अतिरिक्त मुख्य सचिव छत्तीसगढ़ शासन थे। उनके पास उद्योग विभाग का प्रभार भी रहा।
उल्लेखनीय है कि सीएमडीसी की स्थापना का उद्देश्य जैसा इसकी साइट में बताया गया है – सीएमडीसी लिमिटेड कंपनी अधिनियम 1986 की धारा -21 के तहत कंपनी के रैजिस्ट्रार द्वारा 7-6-2001 तक सीमित थी। राज्य का छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम (CMDC), अकेले या संयुक्त उद्यम में, राज्य में खनिजों के वैज्ञानिक अन्वेषण, वाणिज्यिक दोहन और व्यवहार्य व्यापार का कार्य सुनिश्चित है।
ज्ञात हो कि इससे काफी पहले ही खनन एवं उत्पादन संबंधित अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए 3 जुलाई 2006 को छत्तीसगढ़ सरकार और एनएमडीसी के मध्य एक समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित किया गया था। जिसमें इस बात का उल्लेख था कि इस संयुक्त उद्यम एनसीएल में एनएमडीसी की हिस्सेदारी 51 व सीएमडीसी 49 प्रतिशत रहेगी।
एनएमडीसी के तत्कालीन अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक रमेश कुमार ने बताया था कि NCL संयुक्त उद्यम का गठन डिपाजिट—13 के लिए किया गया है, जिसमें 350 मिलियन टन का खनिज भंडार है। समझौता ज्ञापन के अनुसार, JVC का उद्देश्य कच्चा माल प्रदान करना होगा।
तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने तब कहा था कि “यह देश के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है क्योंकि NMDC ने छत्तीसगढ़ सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है, जो दंतेवाड़ा जिले के बिलाडिला रिजर्व जिसमें दुनिया में सबसे अच्छी गुणवत्ता वाला लौह अयस्क है।लौह अयस्क की खदान बनाने के लिए एक संयुक्त उद्यम कंपनी NCL बनाने के लिए है।”
2006 में इस संयुक्त उद्यम के लिए एनएमडीसी के तकनीकी निदेशक पीसी उपाध्याय और छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम (सीएमडीसी) के प्रबंध निदेशक पीके मिश्रा द्वारा समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे।
MOU के अनुसार, JVC का उद्देश्य अपनी आवश्यकताओं के अनुसार घरेलू स्पंज आयरन, स्टील और पैलेट प्लांट्स को कच्चा माल उपलब्ध कराना होगा और राज्य के बाहर स्थित इकाइयों को अतिरिक्त सामग्री प्रदान की जा सकती है।
माना जा सकता है कि एक प्रकार से अडानी की कंपनी (AEL) को डिपाजिट सौंपने के लिए इसी को आधार बनाकर काम शुरू किया गया। जिसके लिए पूरी प्लानिंग 2014 के बाद केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद की गई।
अडानी के मामले में सीएमडीसी व एनएमडीसी के संयुक्त उद्यम एनसीएल को आधार बनाकर काम किया गया। यह प्रक्रिया 2014 में केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद शुरू की गई।
उल्लेखनीय है कि 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दंतेवाड़ा प्रवास पर पहुंचे थे। उस दौरान सीएमडीसी और एनएमडीसी के मध्य दो अल्ट्रा मेगा स्टील प्लांट बस्तर में लगाने की घोषणा की गई और मेमोरंडम आफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) ज्ञापन हस्ताक्षरित किए गए। इस संयंत्र के लिए भूअर्जन की प्रक्रिया भले ही कागज में शुरू की गई हो पर इस संबंध में किसी क्षेत्र की घोषणा अब तक नहीं हुई है।
ऐसे में किसी कंपनी को सीधे खनन का पट्टा दिला पाना आसान तो कतई नहीं था। इस प्रक्रिया में कई तकनीकी बाधाएं थीं। जिन्हें एनएमडीसी के माध्यम से दूर किया जाना था। ऐसा माना जा सकता है कि इसके चलते छत्तीसगढ़ शासन स्तर पर जो प्रक्रिया पूरी की जानी थी उसे पूरा करने की जिम्मेदारी तत्कालीन एसीएस एन बैजेंद्र कुमार को सौंपी गई। उन्होंने शासन स्तर का पूरा काम निपटा लिया तो उसके बाद उन्हें आगे की प्रक्रिया को पूरी करने के लिए एनएमडीसी के प्रमुख के पद पर बिठाया गया।
जिस प्रक्रिया से अडानी को एनएमडीसी की डिपाजिट 13 की खदान का हस्तांतरण किया गया है उसमें अडानी को जिंदल, टाटा, एस्सार व अन्य कंपनियों की तरह डिपाजिट प्राप्त करने के लिए ना तो ग्राम सभा की जरूरत पड़ी और ना ही प्रशासनिक व तकनीकी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। सीधे माइनिंग लीज का हो गया।
अब पूरा खेल समझने के लिए इसे ध्यान देना होगा कि 12 दिसंबर 2017 को NMDC को छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम (CMDC) के साथ अपनी संयुक्त उद्यम कंपनी के पक्ष में एक शीर्ष लौह अयस्क संसाधन Bailadila Deposit-13 के हस्तांतरण के लिए मंजूरी मिल गई। इससे पहले डिपाजिट-13 के लीज डीड को एनएमडीसी ने 10 जुलाई 2017 को निष्पादित किया था।
7 जनवरी, 2017 को दिए गए अनुदान आदेश के अनुसार। एनएमडीसी से संयुक्त उद्यम कंपनी एनएमडीसी-सीएमडीसी को पट्टे का हस्तांतरण एनसीएल लिमिटेड के रूप में किया था। तब तक वर्तमान में एनएमडीसी के सीएमडी एन बैजेंद्र कुमार छत्तीसगढ़ में अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद पर थे और उनके पास उद्योग विभाग की जिम्मेदारी थी।
एन बैजेंद्र कुमार ने 31 अगस्त को सीएमडी का पद ग्रहित किया। इसके बाद डिपाजिट-13 का पट्टा 6 नवंबर 2017 को राज्य सरकार के आदेश के बाद 4 दिसंबर, 2017 को एनसीएल लिमिटेड के पक्ष में पंजीकृत किया गया। इसकी जानकारी एनएमडीसी ने 11 दिसंबर 2017 को एक आधिकारिक बयान में दी थी।
अब यह समझना होगा कि जब डिपाजिट—13 का पट्टा एनसीएल को सौंपा गया था। जिसे इस परियोजना में खनन करना था तो उसने कैसे किसी अन्य कंपनी को इसके समस्त अधिकार सौंप दिए?
इस सवाल का जवाब ढूंढा जाएगा तो स्पष्ट होगा कि बस्तर में लौह अयस्क के लिए जिन बड़ी कंपनियों ने दांव खेला है उसमें सत्ता और विपक्ष सबकी बराबर भागीदारी है। अगर ऐसा नहीं होता तो क्या यह संभव था कि जिस उद्देश्य से एनसीएल का साझा उद्यम बनाया गया। वह पहले से ही विफल योजना का हिस्सा था।
यह भी समझना जरूरी है कि बस्तर में खनिज की प्रचुरता से बड़ा मसला उस इलाके में पहुंचना है जहां वास्तव में खनिज संपदा स्थित है। उन इलाकों में माओवादियों का ठिकाना है। माओवादी हमेशा से यह आरोप मढ़ते रहे हैं कि बस्तर की खनिज संपदा को पूंजीपतियों के हाथ सौंपने के लिए सरकारें प्रयास कर रही हैं।
एनएमडीसी की डिपाजिट—13 के मामले में यह आरोप कमोबेश साबित होता भी दिख रहा है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि जहां कई कंपनियां प्रास्पेक्टिंग लीज की प्रक्रिया को पूरा करने को लेकर परेशान हैं वहीं दूसरी कंपनी जिस पर पिछले दरवाजे से विधिसम्मत प्रवेश की संभावनाओं के द्वार खोल दिए जाते हैं और लोगों को पता भी नहीं चलता…।
अब तो यह जानने व समझने की दरकार है कि आखिर एसपीवी के लिए जो निविदा आमंत्रित की गईं थीं उसमें ऐसा क्या था जिसमें अडानी के लिए रास्ता समझ—बूझकर तैयार किया गया। इस सवाल का जवाब तो मिलना ही चाहिए… अगर जवाब नहीं मिलता है तो यह स्पष्ट है कि सरकार का तंत्र और राजनीतिक यंत्र देश के भीतर संसाधनों की लूट की खेल के लिए ही लोकतंत्र की चादर ओढ़े हुए है।