शाबाश जांबाज जवानों… सबसे दुरूह काले पहाड़ की फतेह पर बधाई…
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सुरेश महापात्र।
बस्तर में नक्सलवाद के खिलाफ चल रहा ऑपरेशन इस समय अपने चरम पर है। पहले मैदानी क्षेत्रों से माओवादियों को बैकफुट पर जाना पड़ा इसके बाद घने जंगलों में छिपी उनके सुरक्षित ठिकाने ढहाए गए… फिर अबूझमाड़ का सबसे अभेद्य किला जवानों ने अपने काबू में किया। अब सुदूर दक्षिण—पश्चिम बस्तर बीजापुर जिला के अंतिम छोर पर तेलंगाना से सटे पहाड़ी श्रृंखलाओं में भी माओवादियों कि किलेबंदी विफल हो चुकी है।
सबसे अभेद्य कुर्रेगुटा की पहाड़ी श्रृंखलाओं में इस समय बड़े हिस्से पर फोर्स का कब्जा है। यहां के चप्पे—चप्पे की बारीकी से छानबीन की जा रही है। कोई कोना छूट ना पाए इसके लिए पूरा परिश्रम जांबाज कर रहे हैं। ऑपरेशन गरुड़ कब कुर्रेगुटा की काली खतरनाक पहाड़ी में फोर्स के कब्जे के ऑपरेशन में तब्दील हो गया। इसकी भनक तक बाहरी दुनिया को नहीं लग सकी।
सुदूर बस्तर के अंतिम छोर में एक प्रकार से आज कुर्रेगुटा की पहाड़ी से जांबाज जवानों की दहाड़ पूरे जंगल में सुनाई दे रही होगी। यह इतना भयानक और खतरनाक ऑपरेशन था जिसमें बिना किसी को नुकसान पहुंचे फोर्स ने उस पहाड़ी पर अपना कब्जा बना लिया है जिससे अब पूरे इलाके के करीब तीन सौ किलोमीटर तक मानों हर किसी की गतिविधि की आकाश से चौकसी हो सकेगी।
मैदानी इलाके में करीब ढाई सौ वर्ग किलोमीटर में फैले इस पहाड़ी श्रृंखला में अब कभी माओवादी लीडर पनाह नहीं ले सकेंगे।कुर्रेगुटा की पहाड़ पर चढ़ाई की कामयाबी बस्तर में चार दशक में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि है और माओवादियों हाथों मारे गए निरीह आदिवासियों के लिए न्याय के समान है।
इस इलाके में माओवादियों के टॉप लीडर के छिपने के ठिकाने के कारण यह कभी जान नहीं पा रहे थे कि आखिर बड़े से बड़ा हमला करके माओवादी कहां गुम हो जाते थे! अब इसका जवाब फोर्स को मिल चुका है। अभी भी इस पहाड़ी श्रृंखला में सर्चिंग और तमाम आपरेशन चलाए जा रहे हैं। करीब छह दिनों से सबसे कठिन इस भौगोलिक—मनोवैज्ञानिक युद्ध में बस्तर में तैनात जवानों ने जीत हासिल कर ली है।
इस पहाड़ पर अपनी सुरक्षा के लिए माओवादियों द्वारा लगाए गए सैकड़ों आईईडी को नष्ट किया जा चुका है। इस पहाड़ पर गुफाओं समेत अन्य उन ठिकानों तक जवानों का कब्जा हो चुका है जहां खतरनाक माओवादी लीडर खून की होली खेलकर आराम से विश्राम करते थे। बस्तर में नक्सलियों का सबसे बड़ी पनाह स्थली का पता चलने के बाद इस मोर्चे पर डटे जवानों का मनोबल काफी बढ़ गया है।
उसके काफी अंदर से लेकर चारों ओर कैंप लगाए जा चुके हैं। अंदरूनी इलाकों से बसों की आवाजाही प्रारंभ हो गई है। बीजापुर से पामेड़ पैदल जाना असंभव की हद तक कठिन था। अब इस रास्ते पर बस चल रही है। यह मेरी कल्पना का भी हिस्सा नहीं हो पाया था। पर यह हकीकत अब बस्तर की सच्चाई बन चुकी है।
बीते करीब 450 दिनों में करीब पांच सौ माओवादियों के मारे जाने के बाद बस्तर के माओवादी मोर्चे पर जीत साफ दिखाई देने लगी है। इस समय बस्तर में जिस गति से वर्षों से माओवादी संगठन में सक्रिय लोगों ने आत्मसमर्पण करना प्रारंभ किया है इससे माओवादी संगठन का जनाधार करीब—करीब समाप्त होने की स्थिति में है। बस्तर के इतिहास में अब सुकमा जिला का गांव बड़ेसट्टी पहला नक्सल मुक्त गांव घोषित होकर इतिहास में दर्ज हो चुका है। संभव है आने वाले दिनों में और भी गांवों से नक्सलमुक्त होने की सूचना तेजी से आने लगे।
‘हम भी नहीं चाहते कि किसी का खून बहे… क्योंकि किसी का भी खून बहता है तो हमें तकलीफ होती है। आप अपने आस—पास के उन सभी लोगों को समझाएं और आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित करें… जो भी गांव नक्सल मुक्त होने की घोषणा करेगा उसे एक करोड़ रुपया विकास कार्यों के लिए दिया जाएगा।’
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