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between naxal and force हिमांशु कुमार ने इस तरह छोड़ा दंतेवाड़ा… सोढ़ी संभो प्रकरण के साथ VCA का 18 बरस का सफर ठहर गया… 

सुरेश महापात्र। पुलिस व प्रशासन की निगाह अब इस आश्रम की हर गतिविधि पर रहने लगी…  10 से आगे पढ़ें… कोंटा इलाके के गोमपाड़ में 1 अक्टूबर 2009 को सोढ़ी संभो के बताए मुताबिक एक मामला सामने आया। जिसकी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। दावे के मुताबिक इस महिला के साथ सुरक्षा बलों ने ना केवल दुर्व्यवहार किया बल्कि गोली भी चलाई जिससे उसके दाएं पैर में गोली लगी। याचिका में कथित तौर पर सोढ़ी संभो की ओर से बताया गया कि ‘घटना वाले दिन इंजरम कोंटा कैंप

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between naxal and force जब शुरू कर दी गई हिमांशु की घेराबंदी, ढहा दिया गया कंवलनार का आश्रम… सोढ़ी संभो मामला और माओवादियों से रिश्ते पर रार…

सुरेश महापात्र। सलवा जुड़ूम के बाद बिगड़ी हुई परिस्थितियों में किसी पुलिस अफसर का तेज तर्रार होना… दोनों ही तरह से खतरे का संकेत साबित हुआ। (9) …आगे पढ़ें   अपने तबादले से ठीक पहले राहुल शर्मा ने हिमांशु कुमार के कंवलनार आश्रम को तोड़ने में बड़ी भूमिका का निर्वाह किया। करीब 17 बरस तक दंतेवाड़ा जिले में एक एनजीओ के तौर पर काम करते हुए हिमांशु ने गोंडी बोली पर अपनी पकड़ बना ली थी। वे शुरूआती दौर में महेंद्र कर्मा के काफी नजदीकी माने जाते रहे। दंतेवाड़ा जिला के

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#between naxal and force सलवा जुड़ूम : कोया कमांडो का वह दौर और मुठभेड़, हत्याएं… बाहरी बनाम स्थानीय मीडिया की वह दास्तां…

सुरेश महापात्र। इस तरह से धीरे—धीरे समूचा दक्षिण बस्तर युद्ध क्षेत्र में तब्दील होता चला गया जहां वर्ग संघर्ष तो चल ही रहा था। पर बेशकीमती जान केवल एक ही वर्ग गवांता नजर आने लगा… से आगे (8) सलवा जुड़ूम शुरू होने के बाद दक्षिण बस्तर के बीजापुर से लेकर कोंटा तक वारदातों का दौर शुरू हो गया। पुलिस रिकार्ड में अकेले 2006 में करीब 50 और 2007 में करीब दो दर्जन से ज्यादा घटनाओं में सैकड़ों की तादात में मौतें दर्ज हैं। इन मौतों में दोनों तरफ से 99

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#between naxal and force राहत शिविर और फोर्स पर ताबड़तोड़ हमलों से सलवा जुड़ूम को लगने लगा झटका…

सुरेश महापात्र। वे हमले के दौरान चढ़ाई में उपयोग करते और हमले में किसी साथी की मौत होती तो उसे उसी सीढ़ी में उठाकर चले जाते। (7) आगे पढ़ें…   बीजापुर इलाके में सलवा जुड़ूम के प्रभाव को देखते हुए इसके सुकमा—कोंटा इलाके में विस्तार की घोषणा नेतृत्वकर्ता महेंद्र कर्मा ने कर दी। उनकी घोषणा के बाद कर्मा समर्थकों ने सबसे पहले दोरनापाल से कोंटा तक रैली निकाली। इस रैली में राष्ट्रीय राजमार्ग से सटे गांवों के लोगों को माओवादियों का साथ छोड़ने और शांति का पक्ष लेने के लिए दबाव

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#between naxal and force सलवा जुड़ूम के बाद सुलगते दक्षिण बस्तर में हमले, हादसे और बदले की भावना का कनेक्शन… 

सुरेश महापात्र। हिंदुस्तान के भीतर बस्तर का एक रक्त रंजित इतिहास भी दर्ज हो रहा था। जिसमें आदिवासी ही मारे जा रहे थे… (6)  से आगे… सलवा जुड़ूम के बाद दक्षिण बस्तर का हाल तेजी से बिगड़ने लगा। दो वर्ग में संघर्ष साफ दिखाई देने लगा। दोनों ही एक दूसरे के खिलाफ खड़े हो गए। करीब 80 हजार की आबादी वाले भैरमगढ़ ब्लाक के इंद्रावती नदी से सटे अंदरूनी गांवों से लोगों का पलायन तेजी से शुरू हुआ। भयाक्रांत आदिवासी यह तय करने में विफल थे कि वे किसका साथ

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#between naxal and force सलवा जुड़ूम : बस्तर के रक्त रंजित इतिहास का वह दौर जब दोनों तरफ से निशाने पर रहे आदिवासी…

सुरेश महापात्र। युवाओं की इस भीड़ में कितने माओवादी प्लांट हो रहे थे इसका अंदाजा किसी को नहीं था। …आगे पढें 19 जून को दंतेवाड़ा जिले के भैरमगढ़ ब्लाक के कोतरापाल गांव के पास माओवादियों ने आठ ग्रामीणों की हत्या कर दी इनके माओवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे आदिवासियों की बैठक के दौरान हमला किया था। इस हमले में करीब 100 ग्रामीण घायल भी हुए थे। इस दौरान तक ना तो नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा और ना ही सरकार का कोई प्रतिनिधि बीजापुर इलाके में चल रहे इस संघर्ष

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#between naxal and force माओवादियों पर दबाव और सलवा जुड़ूम का प्रभाव…

सुरेश महापात्र। घटनाओं के इसी क्रम के बाद आदिवासियों का आक्रोश पुलिस और माओवादियों दोनों के लिए उबलने लगा। (4) आगे पढ़ें दंतेवाड़ा जिले में माओवादी और सिस्टम का एक विचित्र गठबंधन अप्रत्यक्ष तौर पर शुरू से ही संचालित होता दिखता रहा। प्रशासन ने कभी उन इलाकों में ज्यादा दखल की कोशिश ही नहीं की जहां माओवादियों की धमक है। वे सुरक्षा के विश्वास के साथ ही संचालित होने पर भरोसा करते रहे। सलवा जुड़ूम के बाद बीजापुर के एक इलाके में आग तो पूरी तरह लग ही चुकी थी।

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#between naxal and force आदिवासियों का आक्रोश कैसे सलवा जूड़ूम में हुआ तब्दील…

सुरेश महापात्र।  पर एक बड़ा सवाल है आखिर शांत दिख रहे दक्षिण बस्तर में सब कुछ यकायक कैसे बदलने लगा… (3)  से आगे… बस्तर में आदिवासियों के नक्सलियों के खिलाफ आक्रोश के उपजने के कारण कुछ हादसे थे। जिसकी पृष्ठभूमि पर अंदर के गांवों तक पुलिस और नक्सली दोनों के खिलाफ उत्तेजना थी। लोग यह मान रहे थे कि नक्सली काम करने दे नहीं रहे। विकास कार्यों पर अघोषित रोक लगी हुई है। सूखा राहत जैसे काम भी करने की अनुमति नहीं है। वहीं किसी भी वारदात के बाद सशस्त्र

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#between naxal and force सोनी सोरी शिक्षिका से माओवादी समर्थक…

सुरेश महापात्र। वे उन स्कूल बिल्डिंग को भी ध्वस्त करने लगे जिनमें फोर्स के ठहरने का इंतजाम हो सकता था। (2) से आगे… सोनी सोरी का जन्म 15 अप्रैल 1975 में छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर जिला दंतेवाड़ा के कुआकोंडा ब्लाक के गांव बड़े बेड़मा में हुआ। मां जोगी सोरी और पिता मुंडाराम सोरी की बेटी सोनी सोरी की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव में ही हुई। अपनी आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने एक स्वयंसेवी संस्थान माता रूक्मणी सेवा संस्थान के डिमरापाल स्थित आश्रम का रुख किया जहां पर बारहवीं तक की

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#between naxal and force एस्सार का पाइप लाइन और माओवादियों का दबाव…

सुरेश महापात्र। हर ऐसे व्यक्ति को इसकी कीमत चुकानी पड़ी है जिसने भी दोनों पक्षों के बीच निष्पक्ष होने की नाकाम कोशिश की है। या तो उसे माओवादियों ने मार दिया या फोर्स ने… बच गए तो धाराओं से लैस पुलिस तो है ही… (1) से आगे … दक्षिण बस्तर के सारे इलाकों में फोर्स का दबाव बढ़ा दिया गया। ग्रामीण इलाकों के मैदानी कर्मचारियों पर भी गहरी निगरानी रखने की शुरूआत कर दी गई। विशेषकर उन जगहों पर शक बढ़ता गया जहां बिना माओवादियों की सहमति के कोई चैन

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