सत्ता के साथ संघर्ष की पत्रकारिता और उसके दुष्प्रभाव…
सुरेश महापात्र। आज जब मैने पत्रकार कमल शुक्ला द्वारा अपनी बेटी के जन्मदिन पर लिखे पोस्ट को देखा तो मन में यकायक विचार आया कि ‘हां’ यही तो होता रहा है। पत्रकारिता के साथ। सदैव। चाहे गणेश शंकर विद्यार्थी हों या कई—कई पीढ़ियों के बाद कमल शुक्ला तक… जिसने भी सत्ता के विरूद्ध आवाज उठाई उसे बहुत कुछ सहना पड़ा। अब वक्त बदल चुका है इस तरह के मामले में अब सीधे तौर पर राजनीतिक सत्ता को रेखांकित करना चाहिए। यानी सत्ता चाहे किसी की भी क्यों ना हो वह
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