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माड़ में दंतेवाड़ा DRG और नारायणपुर STF का ऑपरेशन… पूरी की पूरी कंपनी ढेर… नक्सली ट्रेनिंग कैंप पर गुरिल्ला अटैक…

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इम्पेक्ट न्यूज़। रायपुर।

माओवादियों के खिलाफ छत्तीसगढ़ में और देश के सबसे बड़ी सफलता दंतेवाड़ा से दर्ज हो गई है। माओवादियों के माड़ डिविज़न की एक पूरी कंपनी दंतेवाड़ा DRG (डिस्ट्रिक्ट रिज़र्व ग्रुप) और नारायणपुर की STF ( स्पेशल टास्क फ़ोर्स) के ज्वाइंट ऑपरेशन में ढेर हो गई। यह अब तक का सबसे सफल ऑपरेशन है।

इस ऑपरेशन को पूरा करने के लिए मुखबिर की सूचना की जगह फोर्स ने तकनीक का सहारा लिया। 3 अक्टूबर को मूवमेंट और कैंप की जानकारी मिली अल सुबह फोर्स नारायणपुर और दंतेवाड़ा से रवाना हो गई। दंतेवाड़ा की ओर से जाँबाज़ DRG के जवानों का दस्ता इंद्रावती नदी में माड़ की सीमा पार कर गया।

इसके बाद घेराबंदी करते हुए करीब 18 किलोमीटर का फासला तय किया। चप्पे-चप्पे पर आईइडी का खतरा और माओवादियों के सूचना तंत्र को विफल कर आगे बढ़ते हुए इलाक़े को इस तरह से घेरा मानों एक दीवार खड़ी कर दी गई हो।

जिस सूचना पर दंतेवाड़ा से डीआरजी की टीम निकाली गई उसी सूचना से नारायणपुर के एसटीएफ के जवानों ने ओरछा से रवाना होकर अपनी तरफ से घेरना शुरू किया। वे ओरछा थाना के नेंदरी पहुंचे वहां दूसरी ओर से डीआरजी के हमले के बाद भागते माओवादियों से मुठभेड़ हुई। दोपहर करीब साढ़े बारह बजे माओवादियों की ओर से फायरिंग शुरू की गई। उन्हें यह पता ही नहीं था कि पूरा इलाक़ा गोल घेराबंदी किया हुआ है। जहां मुठभेड़ हुई वह इलाक़ा थुलथुली गाँव में है यह बारसूर थाना दंतेवाड़ा में आता है।

फोर्स की फायरिंग के बाद माओवादियों में भगदड़ मची वे कव्हर फायरिंग करते भागने लगे। इसके बाद गुरिल्ला वॉर में ट्रेंड डीआरजी जवानों और एसटीएफ ने चुन-चुनकर गोली चलाई। निशाना इतना सटीक कि जिसे लगी वह वहीं ढेर हो गया।

हालात ऐसे हो गए कि माओवादी मारे जा रहे अपने साथियों के शव और उनके हथियारों को बचाने की कोशिश करने की बजाय खुद को बचाने में लगे रहे। जब तक माओवादियों की ओर से अंतिम गोली नहीं चली तब तक अबूझमाड़ में यह सबसे बड़ा ऑपरेशन चलता रहा।

बताया जा रहा है कि करीब दो किलोमीटर के दायरे में माओवादियों के शव बिखरे पड़े थे। जिसे कलेक्ट करते हुए अगले रिवर्स फायरिंग के लिए खुद को तैयार रखना भी सबसे बड़ी चुनौती थी। मुठभेड़ की खबर के बाद फोर्स को सिक्योर कवर करने के लिए सीआरपीएफ को रवाना किया गया।

इस बीच पूरे इलाक़े पर द्रोण से नज़र रखी गई। मुठभेड़ वाले इलाक़े में फँसे जवानों को सुरक्षित निकालने के लिए आला अफ़सरों ने पूरी प्लानिंग की थी। जवान करीब 36 घंटों से जंगल में खाक छान रहे थे। निश्चित है थकान तो होगी ही पर इस थकान पर मुठभेड़ की कामयाबी भारी पड़ी।

दरअसल फोर्स इस समय नाइट विजन ड्रोन टेक्नोलॉजी का जंगल में उपयोग कर रही है। रात के समय जब पूरा जंगल शांत रहता है तब यह ड्रोन जंगल की हलचल को कैद कर रहा है। इससे पुख्ता सूचना कुछ भी नहीं हो सकती।

इस बार यह तकनीक माओवादियों के लिए सबसे घातक साबित हुई। अब कक मिली सूचना के अनुसार करीब 40 माओवादियों की मौत हुई है। बड़ी तादाद में असलहा बरामद हुआ है। एलएमजी, एसएलआर जैसे आधुनिक हथियार बरामद हुए हैं। नक्सली कैंप लगाकर हमला करने का प्रशिक्षण देते हैं वे अपने ही प्रशिक्षण कैंप में शिकार हो गए हैं।

बस्तर में माओवादियों के खिलाफ डीआरजी और एसटीएफ गेम चेंजर्स साबित हो रहे हैं। इसमें सभी लोकल जाँबाज़ हैं जिन्हें गुरिल्ला वॉर टेक्निक से प्रशिक्षित किया गया है। बस्तर के बीहड़ के चप्पे-चप्पे से वाक़िफ़ ये जवान हर मोर्चे पर माओवादियों पर भारी पड़ते नज़र आ रहे हैं।

36 घंटे तक जंगल में ऑपरेशन पूरी कंपनी घिरी इस सबसे बड़े अटैक में SZC सदस्य कमलेश मारा गया है। माओवादियों की प्रवक्ता नीति भी वहां मौजूद थी पर ऐसा लग रहा है कि घेराबंदी से पहले निकलने में कामयाब हो गई है।

इतनी बड़ी तादाद में माओवादियों के शवों और हथियार के ज़ख़ीरे को मुख्यालय तक लाना भी चुनौतीपूर्ण है। फिलहाल मुठभेड़ वाले इलाक़े में अब तक कोई नहीं पहुंचा है। फोर्स की सकुशल वापसी के बाद ही डिटेल जानकारी मिल पाएगी।