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दंतेवाड़ा में डीएमएफ का हाल 2 : एनएमडीसी के 100 प्रतिशत सीएसआर से संचालित जावंगा पॉलिटेक्निक कॉलेज के नाम 6.43 करोड़ की एंट्री दर्ज…

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इम्पेक्ट एक्सक्लूसिव। दंतेवाड़ा।

छत्तीसगढ़ में डीएमएफ को लेकर ईडी की जांच आगे बढ़ रही है। बीते 24 जुलाई को ईडी की ओर से कोरबा को छोड़कर शेष सभी 32 जिलों से 2016 से लेकर अब तक डीएमएफ की जानकारी 4 अगस्त तक मांगी गई थी। इस मामले को लेकर भौमिक और खनिकर्म विभाग ने बीते 31 जुलाई को सभी 32 जिला कलेक्टर सह जिला खनिज न्यास अध्यक्षों को पत्र लिखकर निर्धारित समयावधि में सभी जानकारी सौंपने का निर्देश जारी किया था।

इस निर्देश के बाद डीएमएफ की साइट पर सभी जिलों के डाटा अपडेट किए जाते रहे। फिलहाल इम्पेक्ट छत्तीसगढ़ के कोरबा के बाद सबसे बड़े रेवेन्यू सेंटर दंतेवाड़ा जिले की डीएमएफ के मामलों की पड़ताल कर रहा है। गीदम में एक गौरव पथ के नाम पर दो बार एंट्री की चौंकाने वाली पड़ताल के बाद पूरे जिले में डीएमएफ को लेकर बवाल मचा हुआ है।

कलेक्टर विनीत नंदनवार ने इम्पेक्ट से सिर्फ ​इतना कहा कि जब तक वे फाइल नहीं देख लेते तब तक कुछ भी नहीं कहा जा सकता। उन्होंने भरोसा दिलाया है कि गौरवपथ की सभी फाइलों को उन्होंने सबंधित निर्माण एजेंसी से तलब किया है।

इसके बाद आज एक और मामले की पड़ताल इम्पेक्ट कर रहा है। जिसके तहत दंतेवाड़ा जिले के एकमात्र एजुकेशन सिटी जावंगा में स्थित पॉलिटेक्निक कॉलेज है। इस कॉलेज को डीएवी का प्रबंधन संचालित करता है। इस संस्थान के समस्त व्यय यानी सौ फीसदी की जिम्मेदारी एनएमडीसी की है। डीएवी एनएमडीसी पॉलिटेक्निक कॉलेज की वेबसाइट पर प्रकाशित इस पत्र को देखिए।

इस पत्र में साफ लिखा है कि The institute is 100% funded by NMDC CSR. इसका मतलब यही है कि इस संस्थान के विकास, संचालन और संधारण में एनएमडीसी के कार्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी के तहत व्यय का प्रावधान है। ऐसे में इस संस्था में जिला खनिज न्यास की राशि का व्यय डीएमएफ के दुरूपयोग की श्रेणी में साफ तौर पर देखा जा सकता है।

देखें डीएमएफ की साइट में अधोसंरचना निर्माण श्रेणी से लिए गए इस स्क्रीन शॉट में साफ दिखाई दे रहा है कि NMDC DAV POLYTECHNIC कॉलेज के लिए जिला खनिज न्यास के मद से करीब 6.43 करोड़ रुपए की इंट्री दर्ज की गई है। इंट्री क्रमाक 354 से 378 तक ग्रामीण यांत्रिकी सेवा विभाग के माध्यम से कार्य एजेंसी बताया गया है। मजेदार बात तो यह है कि इन सभी कार्यों को टेंडर के माध्यम से किया जाना दर्शित है। इस मामले में एक बात तो यह भी है कि टेंडर की प्रक्रिया का पालन भी संदेहास्पद ही है।

इसके बाद निर्माण श्रेणी में क्रमांण 2176 से 2186 तक जिला निर्माण समिति, जनपद पंचायत के माध्यम से करीब साढ़े तीन करोड़ रुपए के प्रावधान की इंट्री दर्ज है। इसमें से दो को छोड़ शेष सभी कार्यों को प्र​गति में बताया गया है। यानी ये काम या तो संचालित हो रहे हैं या प्रक्रियाधीन है। डीएमएफ की इंट्री से एक बात तो साफ है कि डीएमएफ की जिला खनिज न्यास समिति ने इस कार्य के लिए एएस यानी कार्यालयीन स्वीकृति जारी कर दिया है। इससे पहले तकनीकी स्वीकृति की प्रक्रिया भी पूरी की ही गई होगी।

सवाल यह उठता है कि जब एनएमडीसी की सौ प्रतिशत सीएसआर वाली फंडिंग संस्था में यह व्यय क्यों दिखाया जा रहा है। जबकि इस इसका डीएमएफ के तहत प्रभावित क्षेत्र के लिए राशि व्यय की जाना है। हाल ही में एनएमडीसी के सीएसआर द्वारा डीएवी पॉलिटेक्निक कॉलेज में प्रयोगशाला उपयोग के लिए सामग्री की सप्लाई में गुणवत्ता को लेकर सवाल भी उठे थे।

इस मामले को जिला प्रशासन ने जांच में उलझाकर ढांकने की कोशिश की है। इस संस्था में और भी तरह की अनियमितताओं को लेकर डीएवी प्रबंधन और एनएमडीसी तक शिकायतों का दौर चला पर जांच में सब कुछ ठंडे बस्ते में डालने काआरोप शिकायत कर्ता लगा रहे हैं। ऐसे में डीएमएफ की राशि का व्यय निश्चित तौर पर संदेहों को जन्म दे रहा है। संभव है ईडी इस एंगल को भी अपनी जांच में शामिल करे।