soni sori

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#between naxal and force सलवा जुड़ूम : बस्तर के रक्त रंजित इतिहास का वह दौर जब दोनों तरफ से निशाने पर रहे आदिवासी…

सुरेश महापात्र। युवाओं की इस भीड़ में कितने माओवादी प्लांट हो रहे थे इसका अंदाजा किसी को नहीं था। …आगे पढें 19 जून को दंतेवाड़ा जिले के भैरमगढ़ ब्लाक के कोतरापाल गांव के पास माओवादियों ने आठ ग्रामीणों की हत्या कर दी इनके माओवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे आदिवासियों की बैठक के दौरान हमला किया था। इस हमले में करीब 100 ग्रामीण घायल भी हुए थे। इस दौरान तक ना तो नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा और ना ही सरकार का कोई प्रतिनिधि बीजापुर इलाके में चल रहे इस संघर्ष

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#between naxal and force माओवादियों पर दबाव और सलवा जुड़ूम का प्रभाव…

सुरेश महापात्र। घटनाओं के इसी क्रम के बाद आदिवासियों का आक्रोश पुलिस और माओवादियों दोनों के लिए उबलने लगा। (4) आगे पढ़ें दंतेवाड़ा जिले में माओवादी और सिस्टम का एक विचित्र गठबंधन अप्रत्यक्ष तौर पर शुरू से ही संचालित होता दिखता रहा। प्रशासन ने कभी उन इलाकों में ज्यादा दखल की कोशिश ही नहीं की जहां माओवादियों की धमक है। वे सुरक्षा के विश्वास के साथ ही संचालित होने पर भरोसा करते रहे। सलवा जुड़ूम के बाद बीजापुर के एक इलाके में आग तो पूरी तरह लग ही चुकी थी।

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#between naxal and force आदिवासियों का आक्रोश कैसे सलवा जूड़ूम में हुआ तब्दील…

सुरेश महापात्र।  पर एक बड़ा सवाल है आखिर शांत दिख रहे दक्षिण बस्तर में सब कुछ यकायक कैसे बदलने लगा… (3)  से आगे… बस्तर में आदिवासियों के नक्सलियों के खिलाफ आक्रोश के उपजने के कारण कुछ हादसे थे। जिसकी पृष्ठभूमि पर अंदर के गांवों तक पुलिस और नक्सली दोनों के खिलाफ उत्तेजना थी। लोग यह मान रहे थे कि नक्सली काम करने दे नहीं रहे। विकास कार्यों पर अघोषित रोक लगी हुई है। सूखा राहत जैसे काम भी करने की अनुमति नहीं है। वहीं किसी भी वारदात के बाद सशस्त्र

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#between naxal and force सोनी सोरी शिक्षिका से माओवादी समर्थक…

सुरेश महापात्र। वे उन स्कूल बिल्डिंग को भी ध्वस्त करने लगे जिनमें फोर्स के ठहरने का इंतजाम हो सकता था। (2) से आगे… सोनी सोरी का जन्म 15 अप्रैल 1975 में छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर जिला दंतेवाड़ा के कुआकोंडा ब्लाक के गांव बड़े बेड़मा में हुआ। मां जोगी सोरी और पिता मुंडाराम सोरी की बेटी सोनी सोरी की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव में ही हुई। अपनी आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने एक स्वयंसेवी संस्थान माता रूक्मणी सेवा संस्थान के डिमरापाल स्थित आश्रम का रुख किया जहां पर बारहवीं तक की

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#between naxal and force सोनी सोरी के दस बरस छह महिने और 4 दिन तक से पहले बस्तर… जहां माओवादी, पुलिस और जनता निष्पक्ष नहीं हो सकती…

सुरेश महापात्र। बस्तर में माओवादियों की समस्या के समाधान के नाम पर कितना कुछ हो रहा है। पृथक छत्तीसगढ़ से पहले पूर्ववर्ती मध्य प्रदेश सरकार पर यह आरोप लगता रहा कि बस्तर के पिछड़ेपन के लिए राज्य सरकार ही जिम्मेदार है। बस्तर अंतिम छोर पर रहा। विकास के पैसा और पहिया रायपुर से ही गुम हो जाता रहा। यही वजह है बस्तर में विकास ही अब सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है। विकास में बाधा के लिए माओवादियों की जिम्मेदारी भी तय कर दी गई है। छत्तीसगढ राज्य निर्माण के

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