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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 400 पार का नारा बीजेपी कार्यकर्ताओं और कई नेताओं लिए लक्ष्य और विपक्ष के लिए चुनौती था- रतन शारदा

नागपुर

लोकसभा चुनावों के नतीजों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की तीखी टिप्पणी सामने आई है. आरएसएस ने कहा है कि लोकसभा चुनाव के ये नतीजे बीजेपी के अतिउत्साहित कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए रियलिटी चेक है, जो अपनी ही दुनिया में मग्न थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व की चकाचौंध में डूबे हुए थे. इस तरह इन तक आमजन की आवाज नहीं पहुंच पा रही थी.

आरएसएस ने अपने माउथपीस Organiser के ताजा अंक में ये टिप्पणी की है. माउथपीस के लेख में कहा गया है कि आरएसएस, बीजेपी की 'फील्ड फोर्स' नहीं है. लेकिन बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने चुनाव में सहयोग के लिए स्वयंसेवकों से संपर्क भी नहीं किया. इन चुनावी नतीजों से स्पष्ट है कि ऐसे अनुभवी स्वयंसेवकों को भी नजरअंदाज किया गया, जिन्होंने सोशल मीडिया के इस दौर में फेम की लालसा के बिना अथक परिश्रम किया है.

आरएसएस के सदस्य रतन शारदा ने इस आलेख में कहा है कि 2024 लोकसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी के अतिउत्साही कार्यकर्ताओं और कई नेताओं के लिए रियलिटी चेक की तरह आए हैं. इन्हें अहसास ही नहीं था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 400 पार का नारा उनके लिए लक्ष्य और विपक्ष के लिए चुनौती थी.

इस चुनाव में बीजेपी को 240 सीटें मिली हैं, जो बहुमत से कम हैं लेकिन एनडीए 293 सीटों के साथ बहुमत हासिल करने में कामयाब रहा. कांग्रेस को चुनाव में 99 सीटें मिली जबकि इंडिया ब्लॉक के हिस्से 234 सीटें आईं. इस चुनाव में जीत दर्ज करने वाले दो निर्दलीयों ने कांग्रेस को समर्थन दिया, जिसके बाद इंडिया ब्लॉक की संख्या बढ़कर 236 हो गई.

शारदा ने लिखा कि चुनावी मैदान में मेहनत से लक्ष्यों को हासिल किया जाता है ना कि सोशल मीडिया पर पोस्टर या सेल्फी शेयर करके. इस वजह से ये अपनी ही दुनिया में मग्न थे, प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के दम पर खुशी मना रहे थे. ऐसे में इन्होंने आमजन की आवाज नहीं सुनी.

NCP गुट को साथ मिलाने पर उठाए सवाल

आरएसएस के माउथपीस में चुनावों में बीजेपी की अंडरपरफॉर्मेंस के लिए अनावश्यक राजनीति को एक कारण बताया गया. इस आलेख में कहा गया कि महाराष्ट्र अनावश्यक राजनीति का एक प्रमुख उदाहरण है. अजित पवार की अगुवाई में एनसीपी का धड़ा बीजेपी में शामिल हुआ. जबकि बीजेपी और शिवसेना के पास बहुमत था. जबकि शरद पवार का दो से तीन सालों में प्रभाव खत्म हो जाता क्योंकि एनसीपी अंदरूनी कलह से जूझ रही थी.

महाराष्ट्र में बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा क्योंकि वह 2019 के चुनाव की तुलना में सिर्फ नौ सीटें ही जीत सकी. शिंदे की अगुवाई में शिवसेना को सात सीटें जबकि अजित पवार की अगुवाई में एनसीपी को महज एक सीट मिली.

शारदा ने किसी नेता का नाम लिए बगैर कहा कि बीजेपी में ऐसे कांग्रेसी नेता को शामिल किया गया, जिसने बढ़-चढ़कर 'भगवा आतंक' की बात कही थी और 26/11 को 'आरएसएस की साजिश' बताया था और आरएसएस को 'आंतकी संगठन' तक कहा था. इससे आरएसएस समर्थक बहुत आहत हुए थे.

आरएसएस ने इस चुनाव में बीजेपी के लिए प्रचार किया था? इस सवाल के जवाब में शारदा ने कहा कि मैं साफ-साफ कहूं तो आरएसए, बीजेपी की फील्ड-फोर्स नहीं है. बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है, जिसके अपने कार्यकर्ता हैं.

उन्होंने कहा कि आरएसएस राष्ट्रहित के मुद्दों पर लोगों को जागरूक करने का काम करती रही है. आरएसएस ने सिर्फ 1973-1977 के दौरान ही राजनीति में प्रत्यक्ष तौर पर हिस्सा लिया था. इस बार भी आधिकारिक तौर पर ये फैसला लिया गया कि आरएसएस के कार्यकर्ता छोटे-छोटे स्थानीय, मोहल्ला और ऑफिस स्तर की बैठकें करेंगे, जहां लोगों से बाहर निकलकर अपने मताधिकार का प्रयोग करने को कहा जाएगा.

 

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