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वायनाड छोड़ राहुल गांधी ने रायबरेली को ही क्यों चुना? 5 पॉइंट में समझें कांग्रेस की रणनीति

लखनऊ
राहुल गांधी लोकसभा चुनाव 2024 में दो सीटों से लड़े थे। एक केरल की वायनाड सीट थी, तो दूसरी यूपी की रायबरेली सीट थी। दोनों सीटों पर राहुल गांधी को जीत मिली थी। सोमवार को राहुल गांधी ने वायनाड सीट से इस्तीफा दे दिया है। अब यहां पर उपचुनाव होगा। कांग्रेस की ओर से उप चुनाव में प्रियंका गांधी को प्रत्याशी बनाया गया है। यह उनका राजनीतिक डेब्यू है, जिसको लेकर कांग्रेस अलर्ट हो गई है। आखिर राहुल गांधी ने वायनाड सीट को छोड़कर रायबरेली को ही क्यों चुना, जबकि वायनाड सीट पर 2019 में जीत मिली थी और अमेठी में हार गए थे, तो इसके पीछे कई सियासी मायने हैं।
खोई जमीन बनाने पर कांग्रेस का फोकस

उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन ने शानदार जीत दर्ज की। इस जीत के बाद न सिर्फ भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगा, बल्कि यूपी की राजनीति में कई तरह की चर्चाओं का जन्म हुआ। यूपी में सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को महज एक सीट पर संतोष करना पड़ा था, तो वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में काफी जद्दोजहद के बावजूद यूपी की सिर्फ दो विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में सपा के साथ चुनाव लड़कर कांग्रेस ने छह सीटें जीती हैं, जिसके बाद यूपी में अपनी खोई हुई राजनीति को मजबूत करने में कांग्रेस जुट गई है।
यूपी में कांग्रेस ने बढ़ाई सक्रियता

वैसे कांग्रेस पार्टी की यूपी में सक्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता कि लोकसभा चुनाव में गांधी परिवार यूपी में बेहद सक्रिय नजर आया। प्रियंका गांधी, राहुल गांधी, राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ सोनिया गांधी ने भी जनता से इंडिया गठबंधन के पक्ष में मतदान की अपील की। यहीं नहीं सोनिया ने अपने बेटे (राहुल गांधी) को रायबरेली की जनता को सौंपने की बात भी कही और बेटे के लिए प्रचार भी किया था। यूपी में मिली जीत के बाद से कांग्रेस ने यूपी में और सक्रियता बढ़ा दी है। जीत के बाद राहुल गांधी ने रायबरेली में आभार सभा की। 2027 का यूपी विधानसभा चुनाव भी सपा के साथ मिलकर लड़ने के संकेत दिए हैं। अगर ऐसा होता है, तो कांग्रेस को यूपी में फिर संजीवनी मिल जाएगी। वहीं, अगर सपा की ओर से विधानसभा चुनाव में बात नहीं बनी, तो कांग्रेस उसकी तैयारी अभी से कर दी है।
1952 से रायबरेली पर गांधी परिवार का कब्जा

कांग्रेस पार्टी के इस फैसले के बाद कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। पहला ये कि राहुल गांधी ने उस सीट को चुना जहां से गांधी परिवार 1952 से जीतता आ रहा। रायबरेली से राहुल के दादा फिरोज गांधी, दादी इंदिरा गांधी और मां सोनिया गांधी पहले भी इस सीट से सांसद रह चुके हैं। इंदिरा के पति फिरोज गांधी ने 1952 में पहली बार इस सीट पर जीत दर्ज की थी। इंदिरा गांधी ने 1967 से 1977 के बीच 10 साल तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि, 1977 में इंदिरा गांधी को हार मिली थी।
2004 से सोनिया ने संभाली रायबरेली की कमान

1980 में इंदिरा गांधी ने दो सीटों रायबरेली और अविभाजित आंध्र प्रदेश में मेडक से चुनाव लड़ा। दोनों सीटों पर जीत दर्ज की। इंदिरा गांधी ने रायबरेली सीट छोड़ दी और मेडक को बरकरार रखा था। 1980 के बाद से गांधी परिवार के वफादार अरुण नेहरू, शीला कौल और कैप्टन सतीश शर्मा ने 2004 तक रायबरेली से जीत हासिल की। इनके बाद सोनिया गांधी यहां से लड़ती रहीं और 2019 तक यहीं से सांसद रहीं। इसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में सोनिया ने इस सीट को राहुल के जिम्मे सौंपकर यहां से प्रतिधिनित्व करने का मौका दिया, क्योंकि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और पारिवारिक विरासत रायबरेली, गांधी परिवार के लिए हमेशा से एक मजबूत गढ़ रहा है।
यूपी में बीजेपी को कड़ी चुनौती देना चाहते हैं राहुल

राहुल गांधी का यह कदम न केवल उनकी व्यक्तिगत सियासी यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव है, बल्कि यह भारतीय राजनीति के लिए भी एक बड़ा संदेश है। यूपी, देश का सबसे बड़ा राज्य है और यहां की सियासत का राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा प्रभाव है। राहुल गांधी का यूपी में रहकर राजनीति करना बीजेपी के लिए भी एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि यूपी में बीजेपी की स्थिति काफी मजबूत है और इस मजबूती को 2027 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी के जरिए तोड़ने की कोशिश करेगी। वहीं, परिवार और पार्टी के वरिष्ठ नेता भी चाह रहे थे कि राहुल रायबरेली का प्रतिनिधित्व करें। इसके अलावा रायबरेली की जीत इस लिहाज से भी बड़ी है कि परिवार ने अमेठी की खोई सीट भी हासिल कर ली। माना जा रहा कि 2027 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर यहा फैसला लिया गया है।

केरल के वायनाड के बजाय उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट से सांसद रहना क्यों चुना, हम इसके पांच कारण आपको बता रहें हैं…

1) यूपी में खोई जमीन पाने की उम्मीद

2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में छह सीटें जीतीं. 2019 में उसे सिर्फ रायबरेली सीट पर जीत मिली थी. इंडिया ब्लॉक ने यूपी में 43 सीटें जीतीं, जिनमें से 37 समाजवादी पार्टी ने जीतीं. यह एनडीए के लिए एक बड़ा झटका था, जिसने 2019 में यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 62 सीटें जीती थीं. 2024 के चुनाव में, एनडीए सिर्फ 36 सीटें जीतने में कामयाब रही, जबकि बीजेपी को 33 सीटें हासिल हुईं. वोट शेयर के मामले में सबसे बड़ी हार मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को हुई. इसका वोट शेयर 19% से घटकर 9% र​ह गया. 

ये वोट मुख्य रूप से समाजवादी पार्टी के साथ-साथ कांग्रेस को भी मिले। अगर एसपी ने बीएसपी के वोट शेयर का 6-7% हासिल किया, तो कांग्रेस को 2-3% का फायदा हुआ. कांग्रेस को उम्मीद है कि वह उत्तर प्रदेश में दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण वोटों का फायदा उठा सकती है. राहुल गांधी द्वारा वायनाड के बजाय रायबरेली सीट चुनने का पहला कारण यही नजर आता है. 

2) रणनीति बदलाव और आक्रामक रुख

2024 लोकसभा चुनाव के नतीजे से उत्साहित कांग्रेस ने अपना रुख बदल लिया है. राहुल गांधी का रायबरेली संसदीय सीट को बरकरार रहना और वायनाड सीट छोड़ना उस आक्रामक दृष्टिकोण का संकेत है. रशीद किदवई के मुताबिक, 'कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदली है. अब उसने रक्षात्मक से आक्रामक रुख अपनाया है. वायनाड एक रक्षात्मक दृष्टिकोण था. क्योंकि राहुल 2019 में अमेठी से अपनी संभावित हार को देखते हुए वहां पहुंचे थे. उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव नीतजों के देखकर ही राहुल ने वायनाड के बजाय रायबरेली को चुना है'.

राहुल गांधी वायनाड के सांसद के रूप में दक्षिण और प्रियंका उत्तर की कमान संभाल रही थीं, जो कांग्रेस की पुरानी रणनीति थी. इस बार के लोकसभा चुनाव परिणाम से सीख लेकर कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदल ली है. किदवई कहते हैं, 'महाराष्ट्र, राजस्थान और यूपी में अच्छे प्रदर्शन से कांग्रेस को एक उम्मीद जगी है और इसके परिणामस्वरूप उसकी रणनीति में बदलाव आया है. यह सफल होगा या नहीं, यह तो समय ही बताएगा. भाजपा को चुनौती देनी है तो लड़ाई वहां लड़नी होगी जहां भगवा पार्टी वह मजबूत है न कि दक्षिण से. बीजेपी हिंदी हार्टलैंड में काफी मजबूत है. दक्षिण में वह अब भी जमीन तलाशने की कोशिश कर रही है. लेकिन अब तक बहुत ज्यादा सफल नहीं हो पाई है.

3) देश में कांग्रेस के पुनर्जीवित होने के लिए यूपी जरूरी 

कहा जाता है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है. इसलिए, जब क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस के वोट बेस में सेंध लगाना शुरू किया, तो इसकी गिरावट सबसे पहले उत्तर प्रदेश और बिहार में दिखाई दी. केंद्र की सत्ता पर भी उसकी पकड़ ढीली होने लगी. अगर कांग्रेस को अपने दम पर केंद्र की सत्ता में आना है तो उसे खुद को उत्तर प्रदेश में पुनर्जीवित करना होगा. उत्तर प्रदेश में छह सीटें जीतना कांग्रेस के लिए अच्छा संकेत है, भले ही उसे यह जीत समाजवादी पार्टी के साथ होने से मिली हो. कांग्रेस के लिए दूसरा अच्छा संकेत यह है कि जाट नेता जयंत चौधरी और उनके राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के एनडीए खेमे में होने के बावजूद, यूपी और हरियाणा में जाट वोटर पार्टी की ओर झुके हैं. 

4) दिल जीतने के लिए, कांग्रेस को हार्टलैंड जीतना होगा 

दिल जीतने के लिए कांग्रेस को हार्टलैंड जीतना होगा. यहीं पर उसे अकेले और क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ गठबंधन में भाजपा से मुकाबला करना होगा. हार्टलैंड के नौ प्रमुख राज्यों में कांग्रेस को अपना प्रदर्शन सुधारना होगा, क्योंकि लोकसभा की 543 में से 218 सांसद इन्हीं 9 राज्यों से पहुंचते हैं. कांग्रेस ने इस बार उत्तर प्रदेश के अलावा हरियाणा और राजस्थान में भी बेहतर प्रदर्शन किया है. रशीद किदवई कहते हैं, 'कांग्रेस हिंदी पट्टी में अपनी संभावनाएं तलाश रही है और इसीलिए राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश से आगे बढ़ाया जा रहा है'. यूपी में अधिक सीटें जीतकर, कांग्रेस बिहार में भी प्रभाव डाल सकती है, जहां वह राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के साथ गठबंधन में है. 

5) प्रियंका गांधी के वायनाड जाने से केरल भी सध जाएगा

केरल में 2026 में विधानसभा चुनाव होंगे और कांग्रेस यहां सत्ता में आ सकती है. केरल की जनता या तो सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ या कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ को चुनती आ रही है. राज्य की जनता ने 2021 में एलडीएफ को सत्ता में वापस लाकर अधिकांश राजनीतिक पंडितों को आश्चर्यचकित कर दिया. 2024 के लोकसभा चुनाव में सीपीआई (एम) का प्रदर्शन खराब रहा और उसे सिर्फ एक सीट पर जीत मिली. कांग्रेस ने 2024 में 20 लोकसभा सीटों में से 14 सीटें जीतीं, जबकि उसकी सहयोगी आईयूएमएल ने दो सीटें जीतीं. 

कांग्रेस इस बात को लेकर आश्वस्त है कि चाहे राहुल गांधी ने वायनाड को बरकरार रखा हो या नहीं, केरल में 2026 में उसे जीत हासिल होगी. भाई राहुल की जगह प्रियंका गांधी के वायनाड से चुने जाने पर राज्य विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के कैम्पेन को भी गति मिलेगी. रशीद किदवई प्रियंका गांधी-वाड्रा के बारे में कहते हैं, 'केरल में, जहां 2026 में चुनाव होने हैं, प्रियंका की वायनाड में मौजूदगी से पार्टी को मदद मिलने की उम्मीद है'.