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पीएम मोदी की हुंकार 400 पार! प्रधानमंत्री के इस दावे के पीछे क्या है बुनयादी

नई दिल्ली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा  2024 के चुनावी मुद्दे भी तय कर दिये और बीजेपी की मुहिम को भी रफ्तार दे दी. पीएम मोदी ने पहली बार खुलकर संसद में जीत का टारगेट भी फिक्स कर दिया है. 5 साल पहले जब 2019 का चुनाव जीता था तो सबसे पहले जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करके अपना सबसे पुराना वादा पूरा किया था. अब 2024 के चुनाव में जाने से पहले पीएम मोदी ने संसद से जीत का लक्ष्य भी 370 रखा है. पीएम ने कहा, आने वाले चुनाव में बीजेपी 370 और एनडीए 400 से ज्यादा सीटें जीतकर आएगी और तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाएगी. पीएम के इस टारगेट के बाद चर्चाएं होने लगीं कि क्या ये सिर्फ एक चुनावी नारा है या फिर वाकई बीजेपी के पास इस बार 400 पार जाने का कोई ब्लू प्रिंट है?

. पीएम ने  कांग्रेस पर तीखा हमला बोला है और देश में कमजोर विपक्ष के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है. पीएम मोदी राष्ट्रपति के अभिभाषण में अल्पसंख्यकों के लिए कुछ नहीं होने के दावे पर विपक्ष से यह भी पूछ लिया कि कब तक विभाजन के बारे में सोचते रहेंगे? मैं देख रहा हूं, बहुत लोग चुनाव लड़ने का हौसला भी खो चुके हैं. मैंने सुना है कि बहुत लोग पिछली बार भी सीट बदले, इस बार भी सीट बदलने की फिराक में हैं. एक ही प्रोडेक्ट बार-बार लॉन्च करने के चक्कर में कांग्रेस की दुकान में ताला लगने की नौबत आ गई है.

सबसे पहले जानिए पीएम मोदी ने जीत के टारगेट पर क्या कहा…

पीएम मोदी ने कहा, हमारी सरकार का तीसरा कार्यकाल भी बहुत दूर नहीं है. ज्यादा से ज्यादा 100-125 दिन बाकी हैं. पूरा देश कह रहा है अबकी बार मोदी सरकार. मैं आमतौर पर आंकड़ों के चक्कर में नहीं पड़ता हूं. लेकिन मैं देख रहा हूं कि देश का मिजाज एनडीए को 400 पार कराकर रहेगा और बीजेपी को 370 सीटें अवश्य देगा. हमारा तीसरा कार्यकाल अगले 1000 सालों के लिए मजबूत नींव रखने का काम करेगा. पीएम मोदी ने विपक्ष पर तंज कसा और कहा, विपक्ष ने जो संकल्प किया है, मैं उसकी सराहना करता हूं. इससे मेरा और देश का विश्वास पक्का हो गया है क्योंकि विपक्ष ने लंबे समय तक विपक्ष में ही रहने का संकल्प लिया है. अब कई दशकों तक जैसे सत्ता पक्ष में बैठे थे, वैसे ही कई दशकों तक अब विपक्ष में बैठने का आपका संकल्प जनता जनार्दन जरूर पूरा करेगी. आप लोग (विपक्ष) जिस प्रकार से इन दिनों मेहनत कर रहे हैं. मैं पक्का मानता हूं कि जनता जनार्दन आपको जरूर आशीर्वाद देगी और आप आज जिस ऊंचाई पर हैं, उससे भी अधिक ऊंचाई पर जरूर पहुंचेंगे और अगले चुनाव में दर्शक दीर्घा में दिखेंगे.

'400 पार की गारंटी क्या है?'

जानकार कहते हैं कि प्रधानमंत्री ने जो संसद में कहा, वो पहली बार बोला है. उन्होंने पहली बार बीजेपी का लोकसभा चुनाव में सीट का नंबर बता दिया है. एनडीए की सीटों का लक्ष्य बता दिया है. पीएम ने यह भी बता दिया कि सिर्फ 100 दिन बाद कितनी सीटों से जीतने की गारंटी बीजेपी ने तय कर ली है? इसके पीछे कुछ वजहें भी हैं. 400 पार वाली गारंटी का गणित क्या है… आईए जानते हैं.

'क्या है बीजेपी कैलकुलेशन?'

बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 303 सीट जीती थी. जबकि बीजेपी के सहयोगी दलों ने 50 सीटों पर जीत हासिल की थी. इसीलिए 370 का नंबर फिक्स करके 67 और सीट जीतने की तैयारी की गई है. ये सीटें बीजेपी को कहां और कैसे मिलेंगी? सवाल ये भी है कि आखिर प्रधानमंत्री ने बीजेपी के लिए 370 सीटों का कैलकुलेशन कैसे किया?

'BJP का फोकस साउथ के राज्यों में'

2019 में बीजेपी 436 सीट पर लड़ी थी, 303 सीटों पर जीत मिली थी. 133 सीटों पर चुनाव हार गई थी. इस बार क्या और ज्यादा सीटों पर बीजेपी लड़ने जा रही है? क्या एनडीए के लिए 400 पार की बात के पीछे भविष्य में और साथी दलों को जोड़ने की खबर छिपी हुई है? बीजेपी का फोकस नॉर्थ के साथ-साथ साउथ पर भी है. क्योंकि नॉर्थ के ज्यादातर राज्यों में बीजेपी का ही दबदबा है. इसलिए सिर्फ कमजोर या हारने वाली सीटों पर ही फोकस किया जा रहा है, ताकि पार्टी वहां भी जीत हासिल कर सके.

1. '173 सीटों पर दो बार से जीत रही बीजेपी'

आखिर पीएम के 400 सीटें जीतने के लक्ष्य का आधार क्या है? यह आंकड़ों के जरिए देखा तो बीजेपी के पास 95 सीटें ऐसी हैं, जहां से वो पिछले तीन लोकसभा चुनाव के नतीजों में जीतते आ रही है. जबकि कांग्रेस के पास महज 17 सीटें ही ऐसी हैं, जहां वो लगातार तीन बार से जीत हासिल कर रही है. बीजेपी शायद इसलिए भी 400 प्लस की गारंटी दे रही है, क्योंकि 173 सीटें ऐसी हैं, जहां कम से कम दो बार बीजेपी चुनाव जीतते आ रही है. वहीं, कांग्रेस के पास भी ऐसी 34 सीटें हैं, जहां उसे दो बार से लगातार जीत मिल रही है.

2. 'तीन चुनाव में 199 सीटों पर बीजेपी कभी नहीं जीती'

बीजेपी 76 सीटों को कमजोर आंकती है, यहां से उसे पिछले तीन चुनाव में सिर्फ एक बार जीत मिली है. बाकी दो बार हार का सामना करना पड़ा है. वहीं, कांग्रेस के लिए 183 ऐसी हैं, जहां तीन में से एक चुनाव में जीत मिली है. पिछले तीन चुनाव में 199 सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी कभी नहीं जीती है. वहीं, कांग्रेस के लिए 309 सीटें ऐसी हैं, जहां उसे कभी भी जीत नहीं मिली है.

3. 'पुराने प्रदर्शन को दोहराने की तैयारी में बीजेपी'

बीजेपी की कोशिश है कि नॉर्थ समेत अन्य राज्यों में अपने पुराने प्रदर्शन को दोहराया जाए. जिन राज्यों और सीटों पर वो जीतते आ रही है, वहां प्रदर्शन बरकरार रखा जाए. इसके साथ ही जिन 89 कमजोर सीटों को चिह्नित किया गया है, वहां भी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने का प्रयास किया जाए. यही वजह है कि पार्टी किसी तरह का रिस्क लेने के मूड में नहीं है. एनडीए में सहयोगी दलों की संख्या बढ़ाई जा रही है, ताकि विपक्षी दलों खासतौर पर क्षेत्रीय दलों को भी किसी तरह की बढ़त हासिल ना हो सके.

4. 'साउथ में दिग्गजों को उतारा'

बीजेपी की रणनीतियों की ही हिस्सा है कि नार्थ ईस्ट से लेकर साउथ तक में बढ़त बनाने की तैयारी की जा रही है. बिहार में जदयू को एनडीए में शामिल करके इंडिया ब्लॉक को बड़ा झटका दिया है. कर्नाटक में देवगोड़ा की पार्टी जेडीएस के साथ गठबंधन किया है ताकि लिंगायत के साथ अन्य समुदायों तक सीधी पहुंच बनाई जा सके. अंतरिम बजट में लक्षद्वीप को लेकर बड़ी सौगात देकर संदेश दिया है. केरल और तमिलनाडु में भी बीजेपी सक्रिय है. कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पुडुचेरी और लक्षद्वीप में भी बीजेपी नेताओं को मैदान में उतारा गया है. यहां लोकसभा चुनाव का प्रभारी बनाकर भेजा गया है.

5. 'अलायंस में भी क्षेत्रीय दलों को जोड़ा जा रहा'

एमपी के पूर्व सीएम और वरिष्ठ नेता शिवराज सिंह चौहान से लेकर अन्य दिग्गजों को साउथ के राज्यों में भेजा रहा है और संगठन को मजबूत करने का लक्ष्य दिया जा रहा है. इसके साथ ही अलायंस को लेकर भी बीजेपी सक्रिय है. आंध्र प्रदेश में पवन कल्याण का साथ लिया है. अंदरुनी सूत्र बताते हैं कि टीडीपी को भी एनडीए के साथ लाने के लिए बातचीत का चैनल खुला रखा गया है.

6. 'राम मंदिर का श्रेय लेने की कोशिश में बीजेपी'

दिसंबर 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में बंपर जीत हासिल की है. यहां दो राज्यों से कांग्रेस को सरकार गंवानी पड़ी है. बीजेपी के लिए ये बूस्टर माना जा रहा है. बीजेपी ने मध्य प्रदेश में 29 में से 28 सीटें जीती थीं. राजस्थान में सभी 25 सीटें जीती थी. जबकि छत्तीसगढ़ में 11 में से 9 सीटों पर जीत हासिल की थी. देश में राम मंदिर उद्घाटन के बाद बीजेपी अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रही है. इन प्रयासों में काफी हद तक सफल होते भी दिख रही है.

7. 'मोदी के मन में भी मिशन साउथ'

बीजेपी के साथ-साथ खुद पीएम मोदी भी मिशन साउथ पर काम कर रहे हैं. पीएम ने हाल ही में पहले लक्षद्वीप, फिर केरल का दौरा किया था. वहां विकास परियोजनाओं की सौगात दी थी. राम मंदिर उद्घाटन से पहले पीएम तमिलनाडु के दौरों पर गए और मंदिरों में जाकर दर्शन किए. पीएम ने महाराष्ट्र में भी विजन साफ कर दिया है. हिमाचल प्रदेश पर भी ध्यान दिया जा रहा है. वहां बीजेपी एक बार फिर क्लीन स्वीप की तैयारी में है. बीजेपी यूपी से लेकर उत्तराखंड तक को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है.

'इस बार ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी'

इस बार बीजेपी 2019 की तुलना में ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. क्योंकि पिछली बार की तुलना में इस बार उसके सहयोगी दलों की संख्या कम हो गई है. 2019 में बीजेपी का पंजाब में शिरोमणि अकाली दल, महाराष्ट्र में शिवसेना (अब उद्धव गुट), तमिलनाडु में एआईएडीएमके और राजस्थान में हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी के साथ अलायंस था. हालांकि, महाराष्ट्र में शिवसेना का शिंदे गुट और एनसीपी का अजित गुट बीजेपी के साथ आ गया है. महाराष्ट्र में बीजेपी की स्थिति मजबूत मानी जा रही है.

'किन सीटों पर खुद को कमजोर मानती है बीजेपी'

बीजेपी ने 2019 के चुनाव में पंजाब की 13 में से तीन, महाराष्ट्र की 48 में से 25 और बिहार की 40 में से 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था. वहीं, तमिलनाडु में एआईएडीएमके ने बीजेपी को पांच सीटें दी थीं. इस बार इन राज्यों में बीजेपी अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगी. बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में ऐसी 14 सीटों की सूची तैयार की है जहां वो खुद को कमजोर पाती है. पीएम मोदी पहले ही लोकसभा चुनाव में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट पाने का लक्ष्य दे चुके हैं.

कैसे टारगेट हासिल करेगी बीजेपी, क्या हैं आंकड़े?

उत्तर भारत और हिंदी पट्टी के राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा में बीजेपी सरकार है. असम, गोवा, गुजरात, त्रिपुरा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश में  भी बीजेपी सरकार चला रही है. पांच राज्यों महाराष्ट्र, बिहार, नागालैंड, सिक्किम, मेघालय और पुडुचेरी में बीजेपी सत्तारूढ़ गठबंधन में है. उत्तर भारत की 193 सीटों में से बीजेपी का 177 सीटों पर कब्जा है. यहां पार्टी ने उन सीटों को चिह्नित किया है, जहां से उसे हार मिल रही है या पिछला चुनाव कम मार्जिन से जीता था. बीजेपी के सामने हिमाचल, झारखंड में भी प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है. झारखंड में बीजेपी विपक्ष में है और JMM गठबंधन की सरकार है. हालांकि 2019 में बीजेपी ने झारखंड में 14 में से 11 सीटें जीती थीं. हिमाचल में भी कांग्रेस की सरकार है और बीजेपी ने 2019 के चुनाव में चारों सीटे जीती थीं.

उत्तर भारत में लोकसभा में क्या स्थिति?

2019 में बीजेपी ने कई राज्यों की सभी लोकसभा सीटें जीतीं. इनमें गुजरात की सभी 26, हरियाणा की 10, हिमाचल की 4, उत्तराखंड की 5, दिल्ली की सातों सीटें जीतीं. राजस्थान की 25 में 24 सीटों पर जीत मिली. एक सीट पर सहयोगी दल को जीत हासिल हुई. बिहार की 17 सीटें, छत्तीसगढ़ की 11 में से 9 सीटें जीती, जम्मू-कश्मीर की 6 में से 3 सीटें जीती. झारखंड की 14 में से 11 सीटें, मध्य प्रदेश की 29 में से 28 सीटें, महाराष्ट्र की 48 में से 23 सीटें, ओडिशा की 21 में से 8 सीटें, यूपी की 80 में से 62 सीटें, पश्चिम बंगाल की 42 में से 18 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली. नार्थ ईस्ट में त्रिपुरा की दोनों सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. अरुणाचल प्रदेश की दोनों सीटों पर भी बीजेपी के ही सांसद हैं. आंकड़ों को देखने के बाद साफ जाहिर है कि बीजेपी उत्तर भारत के कई राज्यों में सेचुरेशन पर पहुंच चुकी है.

– इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव के दरम्यान उत्तर भारत के कुछ राज्यों में बीजेपी की सीटें कम हो सकती हैं. ऐसे में उस नुकसान की भरपाई सिर्फ दक्षिण भारत के राज्यों से ही हो सकती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में इन राज्यों में बीजेपी का प्रदर्शन काफी खराब रहा था. आंध्र प्रदेश की 25 सीटों में से वाईएसआरसीपी के खाते में 22 सीटें आई थीं. जबकि तीन सीटों पर टीडीपी का कब्जा रहा था. बीजेपी का खाता भी नहीं खुल सका था. केरल में बीजेपी शून्य पर ही रही थी, लेकिन, इस बार चुनाव से पहले केरल में सामाजिक समीकरणों को दुरुस्त किया जा रहा है. वहां बीजेपी क्रिश्चियन अल्पसंख्यकों पर फोकस कर रही है.

– पिछली बार तेलगांना में बीजेपी को 4 सीटें मिली थीं, जिसके चलते इस राज्य से उम्मीद जगी है. तमिलनाडु में 2021 के विधानसभा चुनाव में एआईएडीएमके के साथ गठबंधन में बीजेपी ने 4 सीटों पर जीत हासिल की थी. तमिलनाडु में लोकसभा की 39 सीटें हैं. तमिलनाडु में सभी दल इस समय तमिल सेंटीमेंटस की बात कर रहे हैं, जबकि बीजेपी वन नेशन और राष्ट्रवादी के फॉर्मूले पर फोकस किए है.

– तेलंगाना को छोड़कर आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में कांग्रेस की हालत खस्ता है. कांग्रेस के कैडर, लीडर और वोटर तेजी से दूसरी पार्टियों में जा रहे हैं. कांग्रेस यहां बीजेपी का डर दिखाकर पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. पुरानी पार्टी होने के नाते लोगों को अपने काम याद दिला रही है. कोशिश कर रही है कि पार्टी का पुनर्गठन किया जा सके.

– दक्षिण भारत में केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पुडुचेरी, लक्षद्वीप में कुल 131 सीटें हैं 2019 के चुनाव में बीजेपी सिर्फ 30 सीटें ही जीत सकी थी. ऐसे में बीजेपी का नेतृत्व का मानना है कि अगर साउथ में बढ़त मिलती है तो टारगेट को पाने में बेहद आसानी होगी.

दक्षिण के पांचों राज्यों में क्या स्थिति है…

– दक्षिण के पांचों राज्यों में कुल 129 लोकसभा सीटें हैं. इनमें आंध्र प्रदेश में 25, केरल में 20, कर्नाटक में 28, तमिलनाडु में 39, तेलंगाना में 17 सीटें हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इन सभी 129 सीटों में से कुल 29 पर ही जीत हासिल की थी. कर्नाटक में सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा था. बाकी चारों राज्यों में निराशा हाथ लगी थी.

– आंध्र प्रदेश में 25 लोकसभा, 11 राज्यसभा और 175 विधानसभा सीटें हैं. यहां बीजेपी का सिर्फ एक राज्यसभा सांसद है. जबकि कांग्रेस का किसी सदन का सदस्य नहीं है. बाकी सीटें दूसरे दलों के पास हैं.

– केरल में 20 लोकसभा, 9 राज्यसभा और 140 विधानसभा सीटें हैं. यहां बीजेपी का एक भी सांसद-विधायक नहीं है. कांग्रेस के 21 विधायक, 14 लोकसभा सीटें और एक राज्यसभा सदस्य है. बाकी सीटें अन्य पार्टियों के पास हैं.

– तमिलनाडु में 39 लोकसभा, 18 राज्यसभा और 234 विधानसभा सीटें हैं. यहां बीजेपी के 4 विधायक हैं. जबकि कांग्रेस के 18 विधायक, 8 लोकसभा और एक राज्यसभा सदस्य है.

– कर्नाटक में 28 लोकसभा, 12 राज्यसभा और 224 विधानसभा सीटें हैं. यहां बीजेपी के 25 सांसद, अब 65 विधायक और 6 राज्यसभा सदस्य हैं. जबकि कांग्रेस के 136 विधायक, एक लोकसभा और 5 राज्यसभा सदस्य हैं.

– तेलंगाना में 17 लोकसभा, 7 राज्यसभा और 119 विधानसभा सीटें हैं. यहां बीजेपी के 4 सांसद, एक विधायक है. कांग्रेस के 64 विधायक, तीन लोकसभा सदस्य हैं. यहां दोनों पार्टियों के राज्यसभा सदस्य नहीं हैं.

'यह गणित भी हार-जीत तय करेगा'

2019 के नतीजों के अनुसार, 190 सीटों के गणित को देखा जाए तो बीजेपी का 175 और कांग्रेस का 15 सीटों पर दबदबा है. इनमें 72 प्रतिशत सीटों यानी 136 सीटों पर क्षेत्रीय दलों का रोल नहीं है. सिर्फ 13 सीट ऐसी हैं, जहां तीसरे नंबर की पार्टी का वोट कांग्रेस को पूरा मिलता तो बीजेपी चुनाव हार सकती थी. बीजेपी को 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिला है. वहां कांग्रेस से सीधा मुकाबला रहा है.

185 सीटों में 128 पर बीजेपी का दबदबा है. 57 सीटों पर क्षेत्रीय दलों का प्रभाव है. इन 128 सीटों पर कांग्रेस का कोई रोल नहीं है. 35 सीटें ऐसी हैं, जहां तीसरे नंबर की पार्टी का वोट भी जुड़ता तो बीजेपी चुनाव हार सकती थी. 130 सीटों में 48 सीटों पर बीजेपी और 55 पर क्षेत्रीय, 27 पर कांग्रेस का दबदबा है. यानी बंटने से सिर्फ बीजेपी ही नहीं, सबको फायदा मिला है.

'विपक्ष के वोट बंटने से बीजेपी को मिलेगा लाभ'

एक्सिस माय इंडिया के प्रदीप गुप्ता कहते हैं कि राजनीति में संभव तो कुछ भी हो सकता है. पीएम मोदी ने जो कहा है, उसके लिए मैं इतना कह सकता हूं कि 2019 के चुनाव में एनडीए की 352 सीटें थीं. शिवसेना की 19 सीटें और जदयू की 16 सीटें थीं. शिवसेना (उद्धव गुट) अब एनडीए का हिस्सा नहीं है. आज के वर्तमान स्थिति को देखा जाए तो बीजेपी के टारगेट तक पहुंचने के लिए दो चीजें महत्वपूर्ण हो जाती हैं. पहली बात यह है कि ज्यादा से ज्यादा सीटों पर विपक्ष का एक उम्मीदवार खड़ा नहीं होना चाहिए और मल्टीपल कंडिडेट खड़े होते हैं तो विपक्ष के वोटों का बंटवारा हो जाएगा और बीजेपी को सीधे फायदा मिलेगा.

क्या कहते हैं एनडीए के नेता…

एलजेपी (रामविलास) के चीफ चिराग पासवान कहते हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी के भाषण से हमें लगता है कि एनडीए को आज ही 400 सीटों का आंकड़ा मिल गया है. नरेंद्र मोदी युवाओं, महिलाओं, किसानों और गरीबों पर विश्वास करते हैं और उनके बारे में चिंतित हैं. बीजेपी सांसद अपराजित सारंगी कहते हैं कि हमें अपने काम की बदौलत एनडीए को 400 सीटें मिलने की उम्मीद है. हमने लखपति दीदियों की संख्या 3 करोड़ तक पहुंचा दी है. बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल कहते हैं कि पीएम मोदी ने विश्वास के साथ कहा है कि भाजपा अकेले 370 से आगे जाएगी. ये सिर्फ मोदी नहीं, पर जनता कह रही है. मोदी जी ने तो सिर्फ जनता की भावनाओं को बताया है.