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सुकमा के जंगल में सिलगेर से बड़ा आंदोलन ले रहा रूप : माओवाद-पुलिस के दावों के बीच हजारों आदिवासियों की अपनी अलग पीड़ा
कहना-सच्चाई आनी चाहिए सामने, हवाई हमले जारी रहें तो जंगल-आदिवासियों का अस्तित्व हो जाएगा खत्म… देखिए ग्राउंड रिपोर्ट…

इंपैक्ट डेस्क.

बीजापुर। पिछले दिनों माओवादियों की दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के हवाले से ड्रोन हमले को लेकर जारी बयान और पुलिस की ओर से इसके खंडन के बाद सुकमा-बीजापुर के सरहदी गांवों में सिलगेर की तर्ज पर जनविरोध उग्र आंदोलन का रूप लेता दिख रहा है। रविवार को बोड़केल गांव में प्रदर्शन में जहां दस हजार से ज्यादा ग्रामीणों की भीड़ जुटी थी। ग्रामीणों के साथ बच्चे-बुढ़े भी बड़ी संख्या में इस प्रदर्षन में शामिल थे। अब तक सुरक्षा बलों के कैम्पों को लेकर अंदरूनी गांवों में विरोध की चिंगारी उठती रही है, अब हवाई हमले का जिक्र करते खुद को महफूज ना बताते जल-जंगल-जमीन की दुहाई देते सरकार से ऐसे हमलों को रोकने की मांग कर रहे हैं।

ग्रामीणों की मानें तो रातों को धमाकों की गूंज अब तक उनके कानों में गूंज रही हैं। मौके पर जो अवषेष मिले हैं, डोन हमले की हकीकत को साबित करने के लिए वे काफी है फिर भी सरकार, पुलिस उनकी बातों पर विश्वास आखिर क्यों नहीं कर रही हैं।
ऐसे हमलों से जानमाल का खतरा है। प्रदर्शनकारियों ने जंगल नष्ट होने की चिंता जताते कहा कि आने वाले दिनों में आसमान से ऐसे ही बमबारी होती रहेगी तो जंगल नहीं बचेंगे, आदिवासियों का अस्तित्व खतरें में पड़ जाएगा, उनके मवेशी मारे जाएंगे, अपनी जान बचाने उनके सामने पलायन के सिवाए कोई रास्ता नहीं बचेगा।

ग्रामीणों के अनुसार बीते बरस भी इस तरह की घटना हुई थी और इसी महीने यह दूसरी घटना है। जिसके बाद गांव के गांव लोग खौफजदा है। महुआ के सीजन में वनोपज के लिए जंगल का रूख उन्हें करना पड़ता है। अब उन्हें जंगल जाने से भी डर सता रहा है। उनका अस्तित्व वनों पर टिका है, लेकिन आसमानी कहर के डर से अगर वे जंगल जाना छोड़ दे ंतो उनका गुजारा कैसे चलेगा। बमबारी में जंगल-गांव कुछ भी तबाह हो सकते हैं ऐसा हुआ तो ना सिर्फ आदिवासियों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा, बल्कि आदिम संस्कृति भी विलुप्त हो जाएगी।

फोर्स पर ज्याददती का आरोप लगा रहें ग्रामीणों का कहना था कि नक्सल उन्मूलन के नाम पर वे पहले से प्रताड़ित होते रहे हैं, अब आसमान से नक्सलियों को टारगेट कर गिराए जा रहे बम से उनकी मुष्किल और भी बढ़ गई है। बहरहाल नक्सलियों और पुलिस के दावों के बीच ग्रामीणों की मांग हैं कि हकीकत जाननी हो तो सरकार के मंत्री-विधायक उनके बीच पहुंचे। दावों की तस्दीक वे यहां आकर खुद करें, सच्चाई से वाकिफ हो जाए तो आदिवासियों के वर्चस्व को कायम रखने सुरक्षात्मक कदम उठाए जाए, अन्यथा उनका यह आंदोलन आगे और वृहद रूप लेगा।