अबुझमाड़िया युवकों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या का मामला गरमाया : सर्व आदिवासी समाज आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार…
दंडाधिकारी जांच टीम में स्थानीय आदिवासियों को शामिल करने की मांग: सहदेव उसेंडी…
इम्पैक्ट डेस्क.
कांकेर जिले के कोलीबेड़ा थाना इलाके में दो आदिवासियों की गोली मारकर हत्या के मामले में अब सर्व आदिवासी समाज आर-पार की लड़ाई के मूड में है। कोयलीबेड़ा में सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष सहदेव उसेंडी ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया कि गोमें गांव में अबुझमाड़िया समुदाय के दो आदिवासियों को सुरक्षा बलों ने नक्सलियों की वर्दी पहनाई और गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया। बवाल बढ़ता देख जिला प्रशासन ने आननफानन में दंडाधिकारी जांच के आदेश तो दे दिए हैं। लेकिन अब आदिवासी समाज ने इस जांच टीम में सर्व आदिवासी समाज के कोयलीबेड़ा इकाई, जिला स्तर और ब्लॉक स्तर के सामाजिक कार्यकर्ताओं को शामिल करने की मांग उठाई है। ताकि जांच के बिंदुओं में पारदर्शिता बन सके। यह जांच अंतागढ़ एसडीम की अगुवाई में होगी और उन्हें 15 दिन के भीतर जांच की रिपोर्ट प्रस्तुत करने कहा गया है।
बताते चलें कि कोयलीबेड़ा में रोजमर्रा के सामान खरीदने आये आदिवासियों को परिवार समेत पकड़ा गया। जब वे सब अपने घर वापस लौट रहे थे। तभी उन्हें जंगल में सुरक्षा बलों ने घेर लिया। जिसमें से 5 महिलाओं को अलग कर दिया गया। और 2 अबुझमाड़िया आदिवासियों को जंगल में ले जाकर यातना दी गई। उसके बाद उन्हें नक्सलियों की वर्दी पहनाकर गोली मार दी। पुलिस वालों ने आदिवासियों को फर्जी मुठभेड़ में मारने के बाद सबूत नष्ट करने के लिए उनके कपड़ें जला दिये। कथित रूप से माओवादी शिविर से बरामद बंदूकों और समानों को इन युवकों का बता दिया।
जो आदिवासी युवक मारे गए हैं वे जीवन यापन के लिए कोयलीबेड़ा के बाजार पर निर्भर थे। जहां उनके गांव से करीब 40 किलोमीटर दूर रोजमर्रा के सामानों के लिए आना पड़ता था। परिवारवालों के मुताबिक ये आदिवासी सरकारी राशन दुकान में मिलने वाले चावल को लेने के लिए कोयलीबेड़ा आये थे। जब चावल नहीं मिला तो वे जंगल के रास्ते पैदल अपने गांव जा रहे थे। लेकिन बीच रास्ते में ही सुरक्षा बलों ने उन्हें फर्जी मुठभेड़ में मार डाला।
मीडिया में खबर आने के बाद कलेक्टर डॉ प्रियंका शुक्ला ने दंडाधिकारी जांच के आदेश दिए हैं। अंतागढ़ के एसडीएम को 15 दिनों में जांच रिपोर्ट सौंपने की जिम्मेदारी दी गई है। अब बड़ा सवाल है कि इन अबुझमाड़िया आदिवासियों को माड़िया बोली के अलावा अन्य छत्तीसगढ़ या हिंदी नहीं आती। भाषाई संकट तो है ही लेकिन सरकारी जांच कौन सी भाषा में होगी यह बड़ा सवाल है।
और इसलिए भी सर्व आदिवासी समाज को सरकारी जांच में पारदर्शिता लाने के लिए खुद को शामिल करने की मांग उठानी पड़ रही है।