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#between naxal and force एस्सार का पाइप लाइन और माओवादियों का दबाव…

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सुरेश महापात्र।

हर ऐसे व्यक्ति को इसकी कीमत चुकानी पड़ी है जिसने भी दोनों पक्षों के बीच निष्पक्ष होने की नाकाम कोशिश की है। या तो उसे माओवादियों ने मार दिया या फोर्स ने… बच गए तो धाराओं से लैस पुलिस तो है ही… (1) से आगे …

दक्षिण बस्तर के सारे इलाकों में फोर्स का दबाव बढ़ा दिया गया। ग्रामीण इलाकों के मैदानी कर्मचारियों पर भी गहरी निगरानी रखने की शुरूआत कर दी गई। विशेषकर उन जगहों पर शक बढ़ता गया जहां बिना माओवादियों की सहमति के कोई चैन से नहीं रह सकता। इससे पुलिस को अपने टार्गेट क्लीयर करने में दिक्कत कम हुई। अंदरूनी गांवों में माओवादियों की बैठक और जनअदालत की सूचनाएं पुलिस को मिलने लगी। साप्ताहिक बाजार में पहुंचने वाले ग्रामीण, व्यापारी और मैदानी कर्मचारी सारे टार्गेट में रखे जाने लगे।

एस्सार का बेनेफिशियल प्लांट बैलाडीला में स्थित है वहां से विशाखापटनम तक 267 किलोमीटर की लंबी स्लरी पाइपलाइन का संचालन करती है। यह विवाद का केंद्र कैसे और क्यों बना? यह जानना भी जरूरी है।

एस्सार के काम शुरू करने से पहले दंतेवाड़ा में केवल एनएमडीसी ही क्रियाशील रही। चूंकि एनएमडीसी के सामने दंतेवाड़ा जिले की सबसे बड़ी समस्या शंकिनी नदी में लौह अयस्क के धुलने के बाद बहने वाली चूर्ण थी जिसका निराकरण उस समय संभव नहीं हो पा रहा था। 
एस्सार ने इसके लिए एक प्रोजेक्ट तैयार किया और वह लौह अयस्क के चूर्ण को पाइप लाइन के माध्यम से विशाखापटनम ले जाने का प्रस्ताव रखा। एनएमडीसी तैयार हो गई और सरकार भी।

एनएमडीसी को उस समस्या का निराकरण मिल गया जिससे वह नदी को गंदा करने के नाम पर बदनाम हो रही थी और सरकार को क्रेडिट मिल गया कि उसने लोगों के हित में काम किया। एस्सार को काम मिल गया वह भी भारी मुनाफे वाला। सीएसआर और क्षेत्रीय विकास के तमाम दावों के बाद भी एनएमडीसी लोगों को संतुष्ट नहीं कर पा रही थी।

ऐसे में पाइप लाइन के लिए भूमि स्वामियों को तैयार करना और सरकारी जमीन पर अनुमति देना और तमाम नियम कायदों को अनदेखा करना आसान था। बड़ी—बड़ी मशीने आईं। वन नियमों को दरकिनार कर वन भूमि, सरकारी भूमि और निजी भूमि पर गढ्ढे खोदकर पाइप लाइन बिछा दी गई। तब ना तो वाट्सएप था और ना ही सोशल मीडिया जिससे बातें बाहर निकल सकें। ज्यादातर काम भीतर ही भीतर होने लगा।

बस्तर में औद्योगिक विकास के सबसे बड़े समर्थक आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा का कद काफी बड़ा रहा। यानी उनके सहयोग और समर्थन के बगैर एस्सार जैसी कंपनी अपना काम कर ही नहीं सकती थी। तब एस्सार ने एक विज्ञापन जारी किया था उसकी होर्डिंग लगाई गई थी जिसका पंच लाइन था ‘माईं तेरे द्वार एस्सार’ यह लाइन भी मेरी ही दी हुई थी। यानी सब कुछ कुशल मंगल का दौर रहा।

सन 2003 से मैं दंतेवाड़ा में हूं पर मुझे नहीं पता एस्सार के लिए पाइप लाइन निर्माण से पहले कहीं कोई ग्राम सभा जैसी स्थिति निर्मित हो। बस्तर में यही खूबी है जब तक वहां आदिवासियों को यह नहीं बताया जाता कि ये जो हो रहा है गलत है वे तब तक आवाज नहीं उठाते। तब स्लरी पाइप लाइन वाले बड़े इलाके में सीपीआई का प्रभुत्व रहा। वहां नंदाराम सोरी पूर्व विधायक रहे। मनीष कुंजाम कोंटा इलाके से सीपीआई के पूर्व विधायक रहे। आज भी उन इलाकों में जिला पंचायत सदस्यों में सीपीआई ही विजेता रही है।

यानी एस्सार के इस काम में सरकार, एनएमडीसी, जिला प्रशासन, स्थानीय राजनैतिक नेतृत्व, विरोधी दल और माओवादी सबकी सहमति रही। पर जिन इलाकों से कंपनी लौह अयस्क का चूर्ण परिवहन करती है। यह पाइप लाइन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्थित हैं। वहां पाइप लाइन के स्थापना के बाद से ही कंपनी पर माओवादियों के साथ मिलकर काम करने का आरोप लगता रहा।

सलवा जुड़ूम से पहले एक प्रकार से सभी आपस में मिली जुली सरकार जैसे ही थे। केवल चुनाव के दौरान राजनैतिक प्रदर्शन और जोर आजमाइश ही दिखता रहा। सलवा जुड़ूम के बाद हालात तेजी से बदलने लगे और माओवादियों के निशाने पर बहुत सी चीजें आने लगीं। वे एनएमडीसी के हिरोली मैग्जीन में हमला कर 20 टन बारूद लूटकर ले गए। जहां तहां रास्तों में गढ्ढे खोदे जाने लगे। पक्की सड़के होने के बावजूद बारूद फटकर हर तरह से नुकसान पहुंचाने का क्रम शुरू हुआ। पक्के बिल्डिंग तोड़े जाने लगे।

यही वजह है कि अक्टूबर 2005 में एस्सार का काम शुरू होने के बाद सितंबर 2011 तक 15 बार माओवादियों ने पाइपलाइन को नुकसान पहुंचाया। पर हालात बदलने के कारण कंपनी उसकी मरम्मत को लेकर परेशानी में रहती थी।

माओवादी संगठन अपने इलाके में हस्तक्षेप नहीं चाहते थे और वहां से गुजरी स्लरी पाइप लाइन उनके लिए सबसे आसान निशाना बनते रहे। अगस्त 2010 में एस्सार का परिवहन करने वाले वाहनों की आगजनी के बाद वैसा ही सब कुछ होता रहा जैसा पहले भी होता आया था। मसलन पुलिस ने इस पर मामला दर्ज किया और तफ्तीश में ले लिया।

माओवादी इलाके में हर घटना के बाद दो पक्ष रहे पहला जो माओवादियों का रहा और दूसरा वहां तैनात सुरक्षा बलों का। जिन इलाकों में घटना होती उन इलाकों में दोनों के अपने—अपने अंदाज। घटना में शामिल लोगों को लेकर शक और संभावना की एक लंबी फेहरिस्त रही है।

यह सब कुछ 2005 के पहले भी होता रहा पर सलवा जुडूम के बाद बदले हुए हालात में विश्वास की रेखा समाप्त हो चुकी थी। एस्सार कंपनी ने 2005 में बेनेफिसिएल प्लांट का काम प्रारंभ करने से पहले पाइप लाइन बिछाने का काम किया था। यह साफ समझा जा सकता है  उस दौरान वैसी चुनौती नहीं थी जैसी 2005 में काम शुरू करने के बाद होने लगी।

पहले भी उन इलाकों में माओवादियों की धमक थी, लोगों पर माओवादियों का गहरा प्रभाव था पर हालात नियंत्रित जैसे थे। सन 2004—05 के बीच ही कुआकोंडा ब्लाक के अरनपुर से जगरगुंडा वाली घाटी पर सबसे पहला प्रहार हुआ। वहां माओवादियों ने सड़क निर्माण में लगे वाहन को फूंक दिया था। उसके बाद वहां ठेकेदार जितेंद्र सिंह भदौरिया ने काम बंद कर दिया।

यही वह इलाका था जहां से एस्सार की स्लरी पाइप लाइन होकर गुजर रहा था। 267 किलोमीटर लंबी एस्सार पाइपलाइन, जो बैलाडीला में एक लाभकारी संयंत्र से विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश) में अपने पैलेट प्लांट तक लौह अयस्क के घोल को ले जाती थी, को नक्सलियों ने जून 2009 में छत्तीसगढ़ सीमा के पास चित्रंगोंडा (उड़ीसा) के पास उड़ा दिया था। एस्सार का प्रोजेक्ट प्रारंभ होने के बाद हालात पूरी तरह बदल चुका था। माओवादियों ने साफ्ट टारगेट के तौर पर इस स्लरी पाइप लाइन को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया। ​बैलाडिला से सीमावर्ती उड़ीसा के चित्रकोंडा होते हुए स्लरी पाइप लाइन विशाखापटनम तक पहुंचा है।

इसमें बैलाडिला से सुकमा और सुकमा से चित्रकोंडा तक का इलाका पूरी तरह अतिसंवेदनशील माओवादियों के प्रभाव वाला क्षेत्र शुरू से ही रहा। एस्सार की परियोजना को नुकसान पहुंचाने की पहली बड़ी वारदात से पहले भी कई बार इसे नुकसान पहुंचाया गया था। पर चित्रकोंडा में पंप हाउस को ब्लास्ट से उड़ाने के बाद इस परियोजना को बड़ा झटका लगा था।

यह साफ था कि माओवादी अपने लिए अब इस काम के बदले पैसे की उम्मीद पालने लगे थे। पर संपर्क सूत्र कौन बने यह दोनों पक्ष तय करने की स्थिति में नहीं थे। एस्सार के अधिकारी हर अटैक के बाद भारी सुरक्षा लेकर अपना सुधार कार्य कर आते। पर धीरे—धीरे हालात बदलने लगा। प्रबंधन काम बंद होने की स्थिति में चिंतित हो जाता और उसके क्रियाशील होने के लिए जमीनी जुगाड़ करने की कोशिश में जुटा रहता।

ऐसा नहीं है कि एस्सार के सीएसआर यानी कार्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी की राशि सुकमा जिले को भी मिलती थी। बल्कि एनएमडीसी और एस्सार ने भारी फंडिंग देना शुरू किया। इसके पीछे दोनों की अपनी मजबूरियां शामिल थीं। महानवरत्न कंपनी एनएमडीसी पर इस बात को लेकर भारी दबाव बढ़ा कि वह परिक्षेत्रीय विकास निधि का सीधा उपयोग उसके प्रभाव वाले क्षेत्र से बाहर ना करे। वहीं जिन जगहों से एस्सार की पाइप लाइन गुजरी थी उन इलाकों के हिसाब से दंतेवाड़ा और सुकमा में सीएसआर के उपयोग से विकास कार्य होने लगे।

2011 में एस्सार के पाइप लाइन को माओवादियों द्वारा नुकसान पहुंचाए जाने से पहले ही सोनी सोरी और लिंगाराम कोड़ोपी फोर्स के टार्गेट में शामिल हो चुके थे। इसी दौरान जुलाई 2011 में एस्सार के पाइप लाइन को माओवादियों ने भारी नुकसान पहुंचा दिया। अंदरूनी गांवों में हालात पूरी तरह बिगड़े हुए थे। एस्सार प्रबंधन जल्दबाजी में रहा कि किसी भी तरह से इस काम को जल्द से जल्द पूरा किया जाए। ताकि स्लरी पाइप लाइन से निर्बाध परिवहन होता रहे।

इस पर सभी की निगाह लगी थी। पुलिस की भी। अचानक खबर आई कि किरंदुल के एक ठेकेदार बीके लाला ने एस्सार के पाइप लाइन के मरम्मत का काम करवा दिया है। वहीं यह भी खबर बाहर आई कि बीके लाला को एस्सार में और भी बड़े काम मिलने शुरू हो गए हैं। कुल मिलाकर यह पूरा मसला संदेहास्पद लगने लगा… बीके लाला ने किसी काम को लेकर किसी दूसरे ठेकेदार को यह भी कह दिया कि अब उसे कोई काम करने से रोक नहीं सकता… बस इसी के बाद… पुलिस ने अपना काम शुरू किया।

इधर पुलिस की घेराबंदी कई तरह से चल रही थी। तमाम घटनाक्रम के बाद भी सोनी सोरी का अरनपुर इलाके में निर्बाध स्कूल संचालित करना, लिंगा राम कोड़ोपी का ताड़मेटला, तिम्मापुर और मोरपल्ली की घटना को सार्वजनिक करना और एस्सार जैसे संस्थान का काम बीके लाला की मदद से पुलिस के हस्तक्षेप के बगैर हो जाना… संभवत: यही वजह रही होगी। एस्सार—नक्सली नोट कांड की थ्योरी गढ़ने में…
 
खैर एनआईए की विशेष अदालत ने दंतेवाड़ा पुलिस द्वारा दर्ज मामले से चारों आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया है सो यह माना जाना चाहिए कि सोनी सोरी और डीवीसीएस वर्मा समेत चारों के लिए यह एक नई सुबह के समान है। मैंने जिस दिन एस्सार के कर्मियों को अपने जीएम की गिरफ्तारी पर फफक-फफक कर रोते हुए देखा था तब से ही यह महसूस कर रहा था कि इनके ये आंसू निर्दोष ही होंगे…

इधर सलवा जुड़ूम के जोर पकड़ने के बाद माओवादी आक्रामक हुए और हर उस चीज पर हमले शुरू किए जिनसे उनके लिए खतरा हो सकता था। उनमें वे स्कूल, आश्रम और छात्रावास भवन भी शामिल थे जहां फोर्स सुरक्षा के लिहाज से ठहरने लगी थी। वे उन स्कूल बिल्डिंग को भी ध्वस्त करने लगे जिनमें फोर्स के ठहरने का इंतजाम हो सकता था। (2)

क्रमश: