समग्र शिक्षा फालोअप : 15 दिन की जाँच चार माह बाद भी अधूरी… भुगतान की प्रक्रिया के बीच बिल बदले गए…?
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इम्पेक्ट न्यूज़। रायपुर।
समग्र शिक्षा अभियान के तहत व्यावसायिक शिक्षा घोटाले की जाँच अधर में अटका दी गई है। मई में जाँच के लिए कमेटी बनाई गई पर चार माह बाद भी जाँच रिपोर्ट का कोई पता नहीं है। केंद्रीय मद से संचालित इस विभाग में राज्य सरकार का पूरा नियंत्रण रहता है। वित्तीय गड़बड़ी रोकने के लिए वित्त नियंत्रक की पदस्थापना की गई है। बड़ी बात यही है कि जाँच पर आँच की वजह भी यही दिख रहा है।
व्यवसायिक शिक्षा का उद्देश्य प्रधानमंत्री जी के आत्मनिर्भर भारत के उद्देश्य को पूरा करना है जिसमे बच्चे को व्यवसायिक पाठ्यक्रम के माध्यम से आसपास के क्षेत्रों में संचालित उद्योग से जोड़ना और स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करना है इस पाठ्यक्रम को रोचक और व्यवहारिक बनाने के लिए आद्योगिक भ्रमण और संबंधित क्षेत्र के अनुभवी या विशेष योग्यता वाले व्यक्तियों का व्याख्यान हेतु राशि जारी किया जाता रहा है।
छत्तीसगढ़ में सबसे बड़ा विवाद तब खड़ा हुआ जब मार्च 2024 में औद्योगिक भ्रमण के बिलिंग की फाइल भुगतान हेतु आगे बढ़ाई गई और बिल का भुगतान भी हो गया। भुगतान फाइल की प्रक्रिया पूरी होने के दौरान एक फर्म को अतिरिक्त दस लाख रुपए भुगतान होने की जानकारी मिली। हड़कंप तब मचा जब फर्म ने स्वयं अप्रेल 2024 में विभाग को इस बात की सूचना दी।
इसके बाद विभाग ने पड़ताल शुरू की। फाइल खंगाले गए। वित्त शाखा प्रोग्रामर हलधर साहू और वोकेशनल शाखा कंप्यूटर आपरेटर प्रेम ठाकुर को कार्रवाई करके हटा दिया गया है। ये दोनों ही कर्मी आउटसोर्सिंग के माध्यम से यहां नियुक्त थे। इसके साथ ही वित्त नियंत्रक धीरज नशीने, उप संचालक डीके कौशिक, सहायक संचालक अजय देशपांडेय, सहायक संचालक मंजू साह, सहायक कार्यक्रम समन्वयक अनुराधा ठाकुर समेत नौ को नोटिस जारी करके जवाब मांगा गया।
बड़ी बात तो यह है कि केवल आईसेक्ट का ही बिल बदला नहीं गया बल्कि दो और कंपनियों के बिल भुगतान की प्रक्रिया के बीच में बदले गए। उन कंपनियों ने बिल मुताबिक भुगतान को स्वीकार कर लिया। जबकि केवल एक अनुबंधित फर्म ने इसे अस्वीकार किया है।
यदि फर्म की जानकारी के बगैर बिल बदला गया तो संभव है कि यह केवल तकनीकी त्रूटि ना होकर बड़ा आपराधिक कृत्य है। यदि कंपनियों के द्वारा जब बिल बदलकर दिया गया तो सीधे किससे संपर्क किया गया और क्यों किया क्या बदले हुए बिल का भुगतान प्रक्रिया में शामिल प्रबंध संचालक के अनुमति से हुआ।
यह मामला केवल तकनीकी त्रूटि का नहीं हो सकता! चूंकि एक संस्था ने अतिरिक्त भुगतान की सूचना दी तो यह पता चल सका कि गड़बड़ी हुई है। जून 2024 में एक जांच कमेटी बनाई गई जिसे 15 दिन में जांच रिपोर्ट देकर यह बताना था कि इस मामले में केवल तकनीकी त्रूटि है अथवा आपराधिक साजिश? पर जांच कमेटी की जांच अब तक ठंडे बस्ते में ही पड़ी हुई है।
तात्कालिक तौर प्लेसमेंट एजेंसी से काम कर रहे दो कर्मी को हटाया गया है। किंतु इस भुगतान के कई आयाम अधूरे दिख रहे है । सुस्त गति से चल रही जांच से सही निष्कर्ष निकल पाना वर्तमान में दिख नही रहा है। कुछ सवाल है जो जानना बेहद जरूरी है
1. आईसेक्ट के अतिरिक्त भुगतान का बिल समग्र कार्यलय को किसने दिया और क्यों दिया?
2. किसके कहने पर ये बिल को भुगतान के लिए शामिल किया गया?
3. क्या अतिरिक्त भुगतान के देयक की जानकारी शाखा के सहायक संचालक को दिया गया?
4. क्या बाकि दो कंपनियों का बिल की जांच होगी?
4. क्या जांच में सभी के बयान दर्ज हो गया?
5. जांच कब तक पूरी होने की उम्मीद है?
ये सभी प्रश्न का जवाब आने से ही स्तिथि स्पष्ट हो पायेगा जांच में देरी कुछ बड़े गड़बड़ी की आशंका को जन्म दे रहा है जिसे दबाने के लिए समग्र शिक्षा विभाग एक जुट दिख रहा है।