बोधघाट परियोजना के 40 बरस : बहुत बह गया इंद्रावती का पानी…
विशेष रिपोर्ट. दंतेवाड़ा/बारसूर।
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में पुरातात्विक धरोहर बारसूर के समीप इन्द्रावती नदी पर वर्ष 1979 में प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई ने बोधघाट जल विद्युत परियोजना का शिलान्यास किया था।
90 मीटर ऊंचा बांध बना कर 124 मेगावाट की चार यूनिट स्थापित करने की योजना थी।
वर्ष 1983 में इस परियोजना की संभावित लागत 475 करोड़ थी।
परियोजना हेतु लंबी सुछत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में पुरातात्विक धरोहर बारसूर के समीप इन्द्रावती नदी पर वर्ष 1979 में प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई ने बोधघाट जल विद्युत परियोजना का शिलान्यास किया था।
90 मीटर ऊंचा बांध बना कर 124 मेगावाट की चार यूनिट स्थापित करने की योजना थी।
वर्ष 1983 में इस परियोजना की संभावित लागत 475 करोड़ थी।
इस रिपोर्ट में देखिए पूरी कहानी
परियोजना हेतु लंबी सुरंगों के अलावा सैकड़ों आवास और पक्की-चौड़ी सड़कों का निर्माण किया गया था।
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की आपत्ति के चलते बोधघाट परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।
अब इस बाधित बोधघाट परियोजना को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार ने पहल की है।
बस्तर की जीवन रेखा इन्द्रावती नदी में प्रस्तावित बोधघाट परियोजना के लिए सरकार का अनुमान है कि इससे 3 लाख 66 हजार हेक्टेयर में सिंचाई उपलब्ध होगा।
इसमें दंतेवाड़ा जिले के 51, बीजापुर जिले के 218 और सुकमा जिले के 90 इस प्रकार कुल 359 गांव लाभान्वित होंगे।
वहीं इस परियोजना से दंतेवाड़ा और बस्तर के 28 गांव पूर्ण रूप से तथा 14 गांव आंशिक रूप से डूबान में आएंगे। सुकमा जिले का कोई भी गांव डूबान से प्रभावित नहीं हो रहा है।
सरकार का मानना है कि इन तीनों जिलों में खरीफ की फसल के लिए एक लाख 71 हजार 75 हेक्टेयर भूमि को सिंचित किया जा सकेगा।
इसी तरह से रबी की फसल के दौरान एक लाख 31 हजार 75 हेक्टेयर तथा गर्मी में 64 हजार 430 हेक्टेयर भूमि सिंचित क्षेत्र में शामिल हो जाएगी।
इन सभी को मिलाकर कुल 3 लाख 66 हजार 580 हेक्टेयर में सिंचित क्षेत्र के विकास की योजना सरकार ने बनाई है।
सरकार ने ‘सिंचाई में वृद्धि-राज्य की समृद्धि’ के तहत इस महत्वाकांक्षी परियोजना के अंतर्गत पेयजल, पर्यटन एवं नौका विहार आदि सुविधा भी उपलब्ध कराने को अपनी प्राथमिकता में रखा है।
साथ ही इसमें लिफ्ट इरीगेशन को भी शामिल किया है। इसके माध्यम से बस्तर के शेष जिलों को भी सिंचाई एवं निस्तार के लिए जल उपलब्ध कराया जाएगा।
बोधघाट बहुउद्देशीय परियोजना को लेकर सरकार का विचार है कि यह कई उद्देश्यों की एक साथ पूर्ति कर सकता है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का मानना है कि ‘बोधघाट ऐसा प्रोजेक्ट है, जिसका लाभ सिर्फ और सिर्फ बस्तर के लोगों को मिलेगा।’
वे मानते हैं कि अब तक बस्तर में जितने भी उद्योग और प्रोजेक्ट लगे हैं, उसका सीधा फायदा बस्तर के लोगों को नहीं मिला।
वे कहते हैं बोधघाट पहला ऐसा प्रोजेक्ट है, जो बस्तर के विकास और समृद्धि के लिए है। इसका सीधा फायदा बस्तरवासियों को मिलेगा।
सरकार कह रही है 40 वर्षों से लंबित इस प्रोजेक्ट को बस्तर के सिंचित क्षेत्र विकास को ध्यान में रखते हुए नए सिरे से तैयार किया गया है। इस परियोजना में इंद्रावती नदी के जल का सदुपयोग करना प्राथमिकता है। जिसका लाभ बस्तर संभाग के ग्रामीणों और किसानों को मिलेगा।
पुनर्वास एवं व्यवस्थापन के लिए सरकार का कहना है कि लोगों से चर्चा कर रूपरेखा तैयार की जाएगी। विस्थापितों को उनकी जमीन के बदले बेहतर जमीन, मकान के बदले बेहतर मकान दिए जाएंगे।
कोशिश की जा रही है कि इस प्रोजेक्ट के नहरों के किनारे की सरकारी जमीन प्रभावितों को मिले, ताकि वह खेती-किसानी बेहतर तरीके से कर सकें।
इंद्रावती के पानी का मसला
ओड़िशा के कालाहांडी जिले से निकली इंद्रावती नदी का प्रवाह छत्तीसगढ़ में कुल 264 किलोमीटर है। यह नगरनार के पास से छत्तीसगढ़ में प्रवेश लेने के बाद बस्तर संभाग के बस्तर, दंतेवाड़ा और बीजापुर जिलों से होकर तेलंगाना की सीमा में गोदावरी नदी में समाहित हो जाती है। बीजापुर जिले के भोपाल पट्टनम के पास तेलंगाना सीमा भद्राकाली के करीब इंद्रावती—गोदावरी नदी का संगम है। इंद्रावती नदी को गोदावरी की मुख्य सहायक नदी माना गया है।
इंद्रावती में जल बंटवारा
करीब दो दशक से इंद्रावती नदी के जल बंटवारे को लेकर ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के मध्य विवाद है। ओड़िशा ने इंद्रावती नदी पर खातीगुड़ा सहित कई जगहों पर छोटे-बड़े बांध बना लिए हैं। वहीं बस्तर की सीमा से ठीक पहले जोरा नाला के पास से इंद्रावती की धारा प्राकृतिक तरीक से परिवर्तित होकर जोरानाला की ओर ही मुड़ गई है। जोरा नाला आगे जाकर सबरी नदी में समाहित हो जाती है।
इंद्रावती नदी में जल का प्रवाह बना रहे इसके लिए छत्तीसगढ़ और ओड़िसा सरकार के जल संसाधन विभाग की देख रेख में नगरनार से पहले स्ट्रक्चर का निर्माण किया गया है। ताकि एक निश्चित मात्रा में इंद्रावती के जल का प्रवाह नियमित बना रहे।
बावजूद इसके इंद्रावती की मूल धारा जोरा नाला की ओर परिवर्तित होने के कारण अब इंद्रावती में विशेषकर गर्मियों के दिनों में जलधारा बेहद कम हो जाती है। जिससे बस्तर संभाग के तीन जिलों में सीधा प्रभाव पड़ रहा है। बोधघाट के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की प्रस्तावित योजना में निश्चित तौर पर इंद्रावती में जल का मुद्दा भी आगे जाकर बड़ा होगा। क्योंकि यदि नदी में पानी ही नहीं होगा तो पूरी योजना ही कबाड़ हो जाएगी।
रंगों के अलावा सैकड़ों आवास और पक्की-चौड़ी सड़कों का निर्माण किया गया था।
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की आपत्ति के चलते बोधघाट परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।
अब इस बाधित बोधघाट परियोजना को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार ने पहल की है।
बस्तर की जीवन रेखा इन्द्रावती नदी में प्रस्तावित बोधघाट परियोजना के लिए सरकार का अनुमान है कि इससे 3 लाख 66 हजार हेक्टेयर में सिंचाई उपलब्ध होगा।
इसमें दंतेवाड़ा जिले के 51, बीजापुर जिले के 218 और सुकमा जिले के 90 इस प्रकार कुल 359 गांव लाभान्वित होंगे।
वहीं इस परियोजना से दंतेवाड़ा और बस्तर के 28 गांव पूर्ण रूप से तथा 14 गांव आंशिक रूप से डूबान में आएंगे। सुकमा जिले का कोई भी गांव डूबान से प्रभावित नहीं हो रहा है।
सरकार का मानना है कि इन तीनों जिलों में खरीफ की फसल के लिए एक लाख 71 हजार 75 हेक्टेयर भूमि को सिंचित किया जा सकेगा।
इसी तरह से रबी की फसल के दौरान एक लाख 31 हजार 75 हेक्टेयर तथा गर्मी में 64 हजार 430 हेक्टेयर भूमि सिंचित क्षेत्र में शामिल हो जाएगी।
इन सभी को मिलाकर कुल 3 लाख 66 हजार 580 हेक्टेयर में सिंचित क्षेत्र के विकास की योजना सरकार ने बनाई है।
सरकार ने ‘सिंचाई में वृद्धि-राज्य की समृद्धि’ के तहत इस महत्वाकांक्षी परियोजना के अंतर्गत पेयजल, पर्यटन एवं नौका विहार आदि सुविधा भी उपलब्ध कराने को अपनी प्राथमिकता में रखा है।
साथ ही इसमें लिफ्ट इरीगेशन को भी शामिल किया है। इसके माध्यम से बस्तर के शेष जिलों को भी सिंचाई एवं निस्तार के लिए जल उपलब्ध कराया जाएगा।
बोधघाट बहुउद्देशीय परियोजना को लेकर सरकार का विचार है कि यह कई उद्देश्यों की एक साथ पूर्ति कर सकता है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का मानना है कि ‘बोधघाट ऐसा प्रोजेक्ट है, जिसका लाभ सिर्फ और सिर्फ बस्तर के लोगों को मिलेगा।’
वे मानते हैं कि अब तक बस्तर में जितने भी उद्योग और प्रोजेक्ट लगे हैं, उसका सीधा फायदा बस्तर के लोगों को नहीं मिला।
वे कहते हैं बोधघाट पहला ऐसा प्रोजेक्ट है, जो बस्तर के विकास और समृद्धि के लिए है। इसका सीधा फायदा बस्तरवासियों को मिलेगा।
सरकार कह रही है 40 वर्षों से लंबित इस प्रोजेक्ट को बस्तर के सिंचित क्षेत्र विकास को ध्यान में रखते हुए नए सिरे से तैयार किया गया है। इस परियोजना में इंद्रावती नदी के जल का सदुपयोग करना प्राथमिकता है। जिसका लाभ बस्तर संभाग के ग्रामीणों और किसानों को मिलेगा।
पुनर्वास एवं व्यवस्थापन के लिए सरकार का कहना है कि लोगों से चर्चा कर रूपरेखा तैयार की जाएगी। विस्थापितों को उनकी जमीन के बदले बेहतर जमीन, मकान के बदले बेहतर मकान दिए जाएंगे।
कोशिश की जा रही है कि इस प्रोजेक्ट के नहरों के किनारे की सरकारी जमीन प्रभावितों को मिले, ताकि वह खेती-किसानी बेहतर तरीके से कर सकें।
इंद्रावती के पानी का मसला
ओड़िशा के कालाहांडी जिले से निकली इंद्रावती नदी का प्रवाह छत्तीसगढ़ में कुल 264 किलोमीटर है। यह नगरनार के पास से छत्तीसगढ़ में प्रवेश लेने के बाद बस्तर संभाग के बस्तर, दंतेवाड़ा और बीजापुर जिलों से होकर तेलंगाना की सीमा में गोदावरी नदी में समाहित हो जाती है। बीजापुर जिले के भोपाल पट्टनम के पास तेलंगाना सीमा भद्राकाली के करीब इंद्रावती—गोदावरी नदी का संगम है। इंद्रावती नदी को गोदावरी की मुख्य सहायक नदी माना गया है।
इंद्रावती में जल बंटवारा
करीब दो दशक से इंद्रावती नदी के जल बंटवारे को लेकर ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के मध्य विवाद है। ओड़िशा ने इंद्रावती नदी पर खातीगुड़ा सहित कई जगहों पर छोटे-बड़े बांध बना लिए हैं। वहीं बस्तर की सीमा से ठीक पहले जोरा नाला के पास से इंद्रावती की धारा प्राकृतिक तरीक से परिवर्तित होकर जोरानाला की ओर ही मुड़ गई है। जोरा नाला आगे जाकर सबरी नदी में समाहित हो जाती है।
इंद्रावती नदी में जल का प्रवाह बना रहे इसके लिए छत्तीसगढ़ और ओड़िसा सरकार के जल संसाधन विभाग की देख रेख में नगरनार से पहले स्ट्रक्चर का निर्माण किया गया है। ताकि एक निश्चित मात्रा में इंद्रावती के जल का प्रवाह नियमित बना रहे।
बावजूद इसके इंद्रावती की मूल धारा जोरा नाला की ओर परिवर्तित होने के कारण अब इंद्रावती में विशेषकर गर्मियों के दिनों में जलधारा बेहद कम हो जाती है। जिससे बस्तर संभाग के तीन जिलों में सीधा प्रभाव पड़ रहा है। बोधघाट के लिए छत्तीसगढ़ सरकार की प्रस्तावित योजना में निश्चित तौर पर इंद्रावती में जल का मुद्दा भी आगे जाकर बड़ा होगा। क्योंकि यदि नदी में पानी ही नहीं होगा तो पूरी योजना ही कबाड़ हो जाएगी।