भ्रष्टाचार के आरोपों की बुनियाद पर 2023 के लिए राजनीतिक युद्ध की शुरुआत… पूर्व सीएम रमन की जन्मदिन से ठीक पहले दीपावली का प्री गिफ़्ट बताते नार्को टेस्ट की सीडी पेश की सीएम भूपेश ने… देखें विडियो…
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इम्पेक्ट न्यूज़। रायपुर।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बीच भ्रष्टाचार को लेकर आरोप-प्रत्यारोप व्यक्तिगत स्तर तक पहुँच गया है। ईडी के छापे के बाद दोनों के बीच आई तल्ख़ी आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ की राजनीतिक फ़िज़ा को गर्म रखेगी।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शुक्रवार शाम रायपुर के प्रियदर्शिनी सहकारी बैंक घोटाले के एक आरोपी के नार्को टेस्ट का वीडियो जारी किया। इसके साथ उन्होंने लिखा-हियर इज स्पेशल प्री दिवाली गिफ्ट फार भ्रष्टाचार के अंतरराष्ट्रीय पितामह।
इस वीडियो में इंदिरा प्रियदर्शिनी महिला सहकारी बैंक घोटाले की कहानी और एक आरोपी उमेश सिन्हा के नार्को टेस्ट का वीडियोग्राफी का हिस्सा है। यह घोटाला 2007 में सामने आया था वह भी बैंक बंद होने के बाद।
आरोप है कि बैंक प्रबंधन और संचालक मंडल ने 54 करोड़ रुपयों का हेरफेर कर लिया था। इस मामले में आंदोलनों के बाद एफआईआर हुई।
पुलिस ने प्रबंधन से जुड़े कई लोगों को गिरफ्तार किया लेकिन सभी जमानत पर बाहर आ गए। उसी दौरान पुलिस ने बैंक के प्रबंधक उमेश सिन्हा का नार्को टेस्ट कराया था। इसमें उसने बताया था कि मामले को दबाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह सहित चार मंत्रियों को चार करोड़ रुपए दिए गए थे।
Here is a special pre diwali gift for "भ्रष्टाचार के अंतरराष्ट्रीय पितामह"
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) October 14, 2022
pic.twitter.com/eUxJpMVSFs
बैंक प्रबंधक उमेश सिन्हा ने मुख्यमंत्री रमन सिंह के अलावा तत्कालीन गृह एवं सहकारिता विभाग के मंत्री रामविचार नेताम, मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और अमर अग्रवाल का नाम लिया था। इसमें तत्कालीन डीजीपी ओपी राठौर को भी एक करोड़ रुपए दिए जाने की बात आई थी। छत्तीसगढ़ पुलिस ने नार्को टेस्ट की यह सीडी कभी न्यायालय में पेश ही नहीं की। करीब पांच साल बाद 2013 में यह सीडी बाहर आई।
महिलाओं के लिए संचालित इंदिरा प्रियदर्शिनी महिला नागरिक सहकारी बैंक 1995 में खुला। इसका मुख्यालय सदर बाजार में था। शहर में इसकी दो अन्य शाखाएं थीं। यह बैंक अच्छा कारोबार कर रहा था। उसके अंतिम दिनों में भी 25 हजार से अधिक ग्राहक इससे जुड़े थे। बाद में संचालक मंडल और बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से घोटाले की बात सामने आई। रकम के घालमेल की वजह से 2006 में यह बैंक बंद हो गया। सरकार ने परिसमापक बिठा दिया।