भरी गर्मी में 550 किलोमीटर सफर तय करने मजबूर हुआ दुर्लभ ‘ब्लैक बाज’
- विभाग की कार्यशैली पर उठ रही उंगलियां
- चिकित्सक के बजाए बीट गार्ड के भरोसे छोड़ा
- पहले भी हो चुकी है दुर्लभ गिध्द की मौत
पी रंजन दास. जगदलपुर।
बस्तर संभाग में बाज की दुर्लभ प्रजाति में शुमार ‘ब्लैक बाजा’ नामक एक पक्षी को वन कर्मियों ने जंगल से बरामद किया है। उक्त बाज घायल अवस्था मे मिला है और पूरी तरह से वयस्क भी नही हुआ है। दो दिन पहले ही वनकर्मियों ने ग्रामीणों की सूचना पर इसे बरामद किया है। इधर घायल अवस्था मे मिलने के बाद भी समुचित उपचार दिए बगैर पक्षी को करीब 550 किलोमीटर दूर नन्दनवन जू भिजवा दिया गया है। सूत्र बताते है कि पक्षी को इतनी दूर भिजवाने वन विभाग की ओर से किसी तरह के उचित प्रबंध नहीं किए गए थे। केवल वाहन में बीट गार्ड के भरोसे इतनी गर्मी में बाज को करीब 550 किलोमीटर दूर भेजा गया। जबकि जो पक्षी घायल अवस्था में मिला था लिहाजा चिकित्सक की निगरानी में उसे भेजा जाना चाहिए था मगर वन अमले ने इस पर अमल नहीं किया।
ब्लैक बाज बस्तर में पाई जाने वाली बाज की दुर्लभ प्रजातियों में से एक
क्रो फाउंडेशन के रवि नायडू का कहना है कि ब्लैक बाज बस्तर में पाई जाने वाली बाज की दुर्लभ प्रजातियों में से एक है। कांगेरवेली, दंतेवाड़ा के अलावा बीजापुर के पटनम इलाके में एक दो बार यह पक्षी देखा गया है। चूंकि इसका नैसर्गिक आवास भी यहाँ जंगल है । अन्यत्र शिफ्ट किया जाने से यह आवश्यक नही की वह उसके लिए माकूल प्रवास स्थल हो। गौरतलब है कि इससे पूर्व गीदम वन परी क्षेत्र में एक दुर्लभ गिद्ध भी वन कर्मियों को मिला था जिसे उच्च प्राथमिक उपचार के बाद भेजा गया था, लेकिन उसकी जान नहीं बच पाई थी।
पक्षी को पकड़ लाने की कार्रवाई टेरिटोरियल
“ब्लैक बाजा’ मिलने की पुष्टि कर रहे आईटीआर के प्रभारी उपनिदेशक शर्मा का कहना है कि पक्षी को पकड़ लाने की कार्रवाई टेरिटोरियल की है। उनके कहे अनुसार जब सामान्य वन मंडलाधिकारी साहू से जानकारी हेतु फोन पर सम्पर्क किया गया तो व्यस्तता का हवाला देते बाद में बात करने की बात कही।
दरसल भरी गर्मी में पक्षी को बगैर चिकित्सक की निगरानी में बीजापुर से करीब 550 किलोमीटर दूर भेजने की कार्रवाई से यह पूरा मामला चर्चा का विषय बन गया है। वन्य प्रेमियों का कहना है कि इस तरह के दुर्लभ पक्षी यदि मिलते हैं तो उनका समुचित उपचार करा उन्हें यही जंगल मे छोड़ दिया जाना चाहिए था मगर वन विभाग ने ऐसा ना करते हुए जू में भेजने की जिस तरह की जल्दबाजी दिखाई , वह समझ से परे है।