युवा पीढ़ी को, किताबी और तकनीकी ज्ञान के साथ ही धर्म का ज्ञान होना ज़रूरी : प्रमोद दुबे…
इंपेक्ट डेस्क.
रायपुर में पहली धर्म संसद में जुटे देश भर के साधु-संत,सनातन धर्मियों को एकत्रित करने कर रहे हैैं चर्चा.
रायपुर। राजधानी रायपुर में पहली बार दो दिवसीय धर्म संसद का आयोजन किया जिसमें देश भर से आए साधु-संत शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने सनातन धर्मियों को एकत्रित कर संत समाज कर रह चर्चा करने पर जोर दिया। धर्म संसद के आयोजन किए जाने के उद्देश्य के बारे में जानकारी देते हुए रायपुर नगर निगम के अध्यक्ष प्रमोद दुबे ने कहा कि धर्म के ज्ञान से ही हम संस्कारवान होते हैं। श्री दुबे ने कहा कि बच्चों और युवाओं को किताबी और तकनीकी ज्ञान के साथ ही धर्म का ज्ञान देना जरूरी है। धर्म के ज्ञान से ही हमारी आने वाली पीढ़ी संस्कारी होंगे। संस्कारवान होने से ही हमारे व्यक्तित्व का समुचित विकास होता है और हम समाज और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी से अवगत होतें हैं। शनिवार को इस आयोजन में शोभायात्रा निकाली गई। इस यात्रा में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह, गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष रामसुंदर दास, संसदीय सचिव और विधायक विकास उपाध्याय समेत हजारों की संख्या में धर्मभीरू शामिल हुए। रविवार को इस आयोजन में प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के भी शामिल होने की जानकारी मिली है।
धर्म संसद का आयोजन रावणभाठा मैदान में श्री नीलकंठ सेवा संस्थान छत्तीसगढ़ और हिंदू समाज संगठन के सहयोग से किया जा रहा है।
श्री नीलकंठ सेवा संस्थान के संस्थापक पं. नीलकंठ त्रिपाठी ने बताया कि सनातन धर्मियों को एकत्रित करने के लिए संत समाज चर्चा कर रहे हैं। इसके लिए संत महात्मा सनातन धर्म के लिए दिशा-निर्देश, सनातन धर्मियों के मार्गदर्शक बनेंगे।
धर्म संसद में बाघम्बरी मठ लेटे हुए हनुमान मंदिर, प्रयागराज से महंत बलवीर गिरी महाराज, काली पुत्र महाराष्ट्र से संतकाली चरण महाराज, सुश्री साध्वी रंजना, बैजनाथ धाम के महामंडलेश्वर श्री प्रकाशचंद महाराज, महंत हनुमानगद्दी अयोध्या से रामदास महाराज, दिगम्बर अनी अखाड़ा चित्रकुट धाम से महंत श्री दिव्य जीवनदास महाराज, नागा साधु कांशी के राष्ट्रीय महासचिव महंत राहुल गिरी महाराज,चित्रकूट धाम से महंत भरतदास महाराज वृंदावन से आचार्य सूरज महाराज,वृंदावन से आचार्य राम गोपाल महाराज,अयोध्या से जगत गुरु श्रीधराचार्य, ग्वालियर हरिद्वार से महामंडललेश्वर राजगुरू संतोषानंद एकादश रूद्रपीठ शामिल हुए।