छत्तीसगढ़ लीग में स्लॉग ओव्हर की बैटिंग करते कांग्रेस की मुसीबत और धारदार बालिंग कर रही भाजपा की फांस…
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सुरेश महापात्र।
दबी जुबां से…
बमुश्किल आठ माह बाद छत्तीसगढ़ में पांचवी बार विधानसभा चुनाव का ऐलान हो जाएगा। यानी कांग्रेस सरकार के लिए नया जनादेश पाने के लिए स्लाग ओव्हर का खेल ही बचा है। ऐसे समय में छत्तीसगढ़ की पिच पर विपक्ष की ओर से जबरदस्त बाउंसर और यार्कर गेंद फेंके जा रहे हैं।
ईडी और आईटी की फिल्डिंग सजी हुई हैं। कांग्रेस की ओर से विकेट कीपर कप्तान भूपेश बघेल फिलहाल मैदान में डटे हुए हैं। ओपनर बल्लेबाज टीएस सिंहदेव पवेलियन लौट चुके हैं और वे बीच—बीच में कमेंट्री बाक्स में पहुंचकर रन चेज करती टीम की खामियों को गिना भी रहे हैं। टीम मैनेजमेंट सिंहदेव की टिप्पणियों को गंभीरता से लेने की कोशिश करते ही भूपेश अपने हेलिकाप्टर शॉट से जीत की उम्मीद जगाए हुए हैं।
मजेदार बात तो यह है कि विपक्ष की टीम में खेल रहे बहुत से चेहरे अगले मैच में रहेंगे नहीं यह तय माना जा रहा है। फिलहाल विपक्ष की ओर से बॉलिंग की जिम्मेदारी आर्थिक अपराध से जुड़ी केंद्रीय जांच एजेंसी के साथ उन संगठनों के हिस्से है जिनसे धार्मिक आस्था सीधे तौर पर जुड़ी हुई है। कोच दिल्ली में बैठकर रणनीति बना रहे हैं और उसी हिसाब से छत्तीसगढ़ लीग खेला जा रहा है। मैच में जैसे—जैसे खेल आगे बढ़ रहा है उसकी रोमांचकता भी बढ़ती जा रही है।
कुछ इसी तरह का हाल फिलहाल छत्तीसगढ़ में साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। राजनीति के महारथियों में से एक अजित जोगी 2023 में नहीं होंगे। यह पहला मौका होगा जब बिना तीसरी ताकत के छत्तीसगढ़ में सीधे चुनाव की तैयारी होगी। बीते 50 माह में भूपेश सरकार ने छत्तीसगढ़ की जो भी रूपरेखा खिची है वे उसी आधार पर आगामी चुनाव होगा यह तय है। फिलहाल गांव, गरीब, गाय, गोबर, गोठान, किसान, मजदूर, पिछड़ा, दलित, आदिवासी, छत्तीसगढ़िया की बुनियाद पर यह सरकार खड़ी दिखाई दे रही है।
बीते इन सवा चार बरस में कोई ऐसी विकास योजना या निर्माण की छाप इस सरकार ने अब तक खड़ी नहीं की है जिसके लिए दावे से कहा जा सके कि ‘हां, यह तो कर दिया है!’ पर एक बात तो साफ है कि कांग्रेस की सरकार ने माता कौशल्या की आड़ में जिस तरह से साफ्ट हिंदुत्व का एक नया स्वरूप गढ़कर दिखाया है जिसमें विपक्ष थोड़ा उलझी पर अपनी आक्रामक हिंदुत्व की छवि के साथ पूरे प्रदेश में इस रामनवमीं में सशक्त मौजूदगी भी दिखा दी है।
मौजूदा दौर में बस्तर की सभी 12 सीटें कांग्रेस के पास हैं। सरकार के पास हर सर्वे की रिपोर्ट कह रही है कि इस बार हालत बिल्कुल विपरित है। कुछ सीटों पर तो जितने अंतर से विजय दर्ज थी करीब उतना ही अंतर इस बार पराजय में दिखाई दे रहा है। सर्वे सरकार और पार्टी दोनों ने करवाई है। रिपोर्ट के आधार पर एक—एक को साफ संदेश भी दिया जा रहा है कि अभी भी समय है जमीन पर सुधार करें।
कमोबेश यही हाल सरगुजा इलाके का भी है। यहां के बाबा को जिस तरह से कांग्रेस सरकार ने हाशिए पर रखा है उसका परिणाम किस तरह का रहेगा यह तो जनता ही बताएगी। इस इलाके में कांग्रेस की दुखती रग फिलहाल टीएस सिंहदेव ही हैं। जो बेहद सौम्य और सरल राजनेता है। इनकी जुबान से आफ दी रिकार्ड और आन दी रिकार्ड अब तक किसी ने अपशब्द नहीं सुना है। जय और वीरू की इस जोड़ी की तस्वीर जो बस्तर के चित्रकोट में ली गई थी वह आखिरी तस्वीर रही जिसमे संबंधों में ईमानदारी की झलक साफ दिखाई दे रही थी।
छत्तीसगढ़ में मौजूदा दौर में संभवत: बस्तर के इकलौते विधायक लखेश्वर बघेल हैं जिनके रायपुर और बस्तर के निवास व कार्यालय में भूपेश बघेल के सामानंतर टीएस सिंहदेव की तस्वीर लगाकर रखी है। मतलब साफ है कि ढाई बरस के फार्मुले को लेकर जिस तरह से गुगली फेंकी गई थी उसमें टीएस सिहदेव आउट हुए। उनकी पीड़ा यही है कि एंपायर ने जिस बॉल पर एलबीडब्लू बता दिया वह बॉल विकेट के बाहर टप्पा खाकर स्टंप के उपर से निकल रही थी।
छत्तीसगढ़ में ऐसा नही है कि भूपेश बघेल ने कुछ भी नहीं किया है बल्कि भूपेश बघेल ने धान के मामले में सबसे बड़ी लकीर खिंच दी है। यह लकीर डा. रमन सिंह की सोच से बाहर की है। बीते चार बरस में धान खरीदी को लेकर सोशल मीडिया पर भाजपा लिखती पढ़ती दिखी पर जमीन पर एक बार भी सफल प्रदर्शन कर यह स्थापित करने में पूरी तरह असफल रही कि सरकार ने धान के सिस्टम में किस तरह की कमी की है?
उल्टे यह साफ दिखाई दे रहा है कि धान के मामले को हैंडल करने में इस सरकार ने अब तक का सबसे बेस्ट प्रदर्शन किया है। धान के उठाव ओर मिलिंग को लेकर तो यह देखा ही जा सकता है। यह कहा जा सकता है कि डा. रमन के ‘चाउर वाले बाबा’ की छवि को तोड़ने के लिए ‘धान’ ने ब्रम्हास्त्र का काम किया है।
मौजूदा सत्र के दौरान भूपेश बघेल ने विधानसभा में अगले खरीफ फसल में प्रति एकड़ बीस क्विंटल धान खरीदी का वादा किया है। यह वादा भूपेश के पक्ष में साफ दिखाई दे रहा है। बेरोजगारी भत्ता को लेकर पहली अप्रेल से शुरू की गई योजना के मौजूदा लाभान्वितों के लिए इस सरकार के आखिरी दस माह और अगली सरकार के 14 माह तक जारी रहेगी।
यह भी देखा जा सकता है कि राज्य सरकार ने कई योजनाओं को संचालित किया जिसके परिणाम में केवल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की छवि ही दिखाई दे रही है। पर हर सीट से भूपेश ही चुनाव लड़ें ऐसा तो संभव नहीं है। मंत्रीमंडल स्तर पर मोहम्मद अकबर को छोड़ किसी दूसरे मंत्री का प्रभाव इस सरकार में कम ही दिखाई पड़ा। कहने को तो अमरजीत भगत, शिव डहरिया, कवासी लखमा मीडिया में यदा कदा स्थान पाने में कामयाब रहे पर मंत्री के तौर पर उनकी उपलब्धि क्या है यह किसी को नहीं पता!
प्रदेश की सभी 90 विधानसभा सीटों में कांग्रेस भले ही जुबानी आंकड़ों से दुबारा सरकार बनाने का दावा कर रही है पर बहुत सी सीटों पर कांग्रेसी विधायकों की छवि इस कदर बिगड़ी हुई है कि मुख्यमंत्री भूपेश का मुखौटा भी उनके काम शायद ही आ सके…। सोशल मीडिया के इस सबसे तेज दौर में कांग्रेस के मंत्री और विधायकों की मौजूदगी नगण्य ही है। संगठन का आईटी सेल भाजपा के आईटी सेल के सामने पानी तक नहीं मांगता…।
ईडी और इनकम टैक्स के छापों से सरकार की छवि पर तो असर पड़ा ही है। अफसरों और नेताओं पर दाग लगने से छवि भी धूमिल हुई है। कोयला और शराब को लेकर राज्य सरकार लाख सफाई दे पर जनता के मन में प्रभाव तो पड़ा ही है। इसके चलते अनियंत्रित पॉलिटिकल कंट्रोल के कारण जिलों में बैठे कलेक्टर राजा बन बैठे हैं। विशेषकर डीएमएफ के खर्च के मामले में। वे वहां हर काम के पीछे सीधे हाउस के निर्देश का हवाला देते हैं पर हाउस के नाम पर जो वसूली हो रही है उसका पता हाउस को है भी या नहीं यह कोई नहीं जानता…!
कुल मिलाकर भाजपा अपने तीसरे कार्यकाल में जिस तरह से बेनकाब हुई। भाजपा की फांस उनके वे पुराने चेहरे हैं जिन पर जनता को कतई एतबार नहीं है। उसी तर्ज पर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की मौजूदा सरकार पर खतरा मंडरा रहा है। यही कांग्रेस की सबसे बड़ी मुसीबत है। ऐसे में भूपेश के लिए स्लॉग ओव्हर की ताबड़तोड़ बैटिंग के बाद भी मैच का परिणाम एक तरफा नहीं है।
और अंत में…
दो ठेकेदार आपस में मोबाइल पर बात कर रहे थे। बात में कलेक्टर विषय रहे। ठेकेदार ने कुछ दिन बाद कलेक्टर से मुलाकात की तो कलेक्टर ने मोबाइल की बात ठेकेदार को सुना दी… सरकार चाहे तो मैं ठेकेदार और कलेक्टर का नाम बता सकता हूं… पर सवाल यह है कि फोन टैपिंग किसने की?