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‘औपनिवेशिक युग के प्रतीकों’ से मुक्ति, नेवी के मेस में अब कुर्ता-पायजामा होगा आधिकारिक पोशाक

नई दिल्ली
‘औपनिवेशिक युग के प्रतीकों’ को त्यागने और सैन्य परंपराओं और रीति-रिवाजों को ‘भारतीयकरण’ करने की दिशा में सरकार ने एक कदम और बढ़ा दिया है। सरकार के निर्देश के आधार पर, नौसेना में कुर्ता-पायजामा की एंट्री होने जा रही है। नौसेना ने अपने सभी कमांडों और प्रतिष्ठानों को आदेश जारी किया है कि अधिकारियों और नाविकों को अधिकारियों की मेस और नाविक संस्थानों में स्लीवलेस जैकेट और जूते या सैंडल के साथ कुर्ता-पायजामा की एथनिक पोशाक पहनने की अनुमति दी जाए।

एक आदेश के अनुसार, कुर्ता-पायजामा के रंग, कट और आकार के बारे में सख्त दिशानिर्देश हैं। इन्हें मेस में ‘निर्धारित रिग अनौपचारिक (खुला कॉलर) या कैज़ुअल’ होने पर पहना जा सकता है। यह एक ‘सॉलिड टोन’ कुर्ता होना चाहिए। कुर्ते की लंबाई सिर्फ घुटनों तक हो। आस्तीन पर बटन या कफ-लिंक के साथ कफ हो। इसमें ‘मैचिंग या कंट्रास्ट टोन’ तंग पायजामा का डिजाइन है। इसमें लोचदार कमरबंद और साइड जेब के साथ पतलून के अनुरूप होना चाहिए। स्लीवलेस और स्ट्रेट-कट वास्कट या जैकेट में ‘मैचिंग पॉकेट स्क्वायर’ का यूज किया जा सकता है।

महिला अधिकारियों के लिए भी ऐसे ही निर्देश हैं जो ‘कुर्ता-चूड़ीदार’ या ‘कुर्ता-पलाजो’ पहनना चाहती हैं। एक अधिकारी ने कहा कि यह नया ड्रेस कोड युद्धपोतों या पनडुब्बियों के लिए लागू नहीं है। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने सितंबर में रिपोर्ट दी थी कि एडमिरल आर हरि कुमार की अध्यक्षता में नौसेना कमांडरों के सम्मेलन में अधिकारियों और नाविकों के लिए कुर्ता-पायजामा को “राष्ट्रीय नागरिक पोशाक” के रूप में अनुमति देने के विकल्प पर चर्चा की गई थी। सेना, वायुसेना और नौसेना के मेस में अब तक पुरुष कर्मियों के साथ-साथ मेहमानों के लिए कुर्ता-पायजामा पर सख्ती से प्रतिबंध है। हालांकि, नौसेना 2022 से पीएम मोदी के ‘गुलामी की मानसिकता से मुक्तिट के निर्देश के अनुरूप औपनिवेशिक युग की प्रथाओं और प्रतीकों को सक्रिय रूप से पहचानने और समाप्त करने में सबसे आगे रही है।

हालांकि, नौसेना की तरफ से इस वाक्यांश का बार-बार उल्लेख कई दिग्गजों को पसंद नहीं आया। पूर्व प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश (रिटायर्ड) ने `एक्स’ पर पोस्ट किया था कि तथाकथित गुलामी की विरासत (गुलामी की विरासत) का राग अलापना अनावश्यक है। इसकी वजह है कि यह देशभक्त भारतीय नौसेना कर्मियों की स्वतंत्रता के बाद की पीढ़ियों पर आक्षेप लगाता है जिन्होंने नौसेना और राष्ट्र की सेवा की है, युद्ध लड़े हैं और खून बहाया है।