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‘मावा नाटे-मावा राज’ से परे ‘हमर राज’ की #अरविंद पॉलिटिक्स की एनालिसिस…

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सुरेश महापात्र।

अरविंद नेताम अपनी नई राजनैतिक पार्टी के गठन की प्रक्रिया को आगे बढ़ा चुके हैं। उन्होंने अपनी पार्टी का नाम ‘हमर राज’ बताया है। ‘हमर राज’ पार्टी के गठन की प्रक्रिया को लेकर चुनाव आयोग में उन्होंने अपना आवेदन भी दे दिया है।

अब सवाल यह उठता है कि अरविंद नेताम ने आखिर यही नाम ‘हमर राज’ को ही क्यों चुना? इस नाम के साथ उनका रिश्ता क्या है और वे बस्तर में क्या संदेश देना चाहते हैं? इसका बेहतर जवाब तो स्वयं अरविंद नेताम ही दे सकते हैं।

बस्तर में ‘सर्व आदिवासी समाज’ की राजनीति करने वाले अरविंद नेताम के राजनैतिक दल का नाम आदिवासी समाज से ना जोड़कर क्या हासिल चाहते हैं? इससे बड़ा सवाल यह है कि ‘हमर राज’ से उन्हें क्या हासिल होने का अनुमान है! यह जानना भी जरूरी है कि बस्तर की बुनियाद पर राजनीति की नई पारी का ऐलान करने वाले अरविंद नेताम को क्यों लगा कि दल के नाम में छत्तीसगढ़िया पुट जरूरी है।

इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश तो सभी कर रहे होंगे पर हमें यह देखने और समझने की जरूरत होगी कि क्या वजह है कि वे छत्तीसगढ़ की 50 सीटों पर अपना कैंडिडेट उतारना चाह रहे हैं? क्या वजह है कि ‘सर्व आदिवासी समाज’ के सामाजिक दायरे से बाहर आदिवासी 29 और सामान्य 21 सीटों को टारगेट कर रहे हैं। इससे भी बड़ा सवाल है हासिल क्या होगा?

1942 में जन्में अरविंद नेताम अब 81 बरस के हो चुके हैं। आदिवासी बहुल बस्तर के सबसे कद्दावर राजनैतिक चेहरा हैं पर फिलहाल उनकी राजनैतिक पकड़ बेहद ढीली मानी जा रही है। यानी अपने दम पर 12 में से किसी भी एक सीट पर नई पार्टी से अपने प्रत्याशी को जीताने की क्षमता से है। नेताम अपनी राजनीतिक पारी में इंदिरा गांधी से लेकर नरसिंहराव तक दो बार वे केंद्रीय मंत्रीमंडल में चेहरा रहे। अविभाजित मध्यप्रदेश के दौर में इस समय कांग्रेस के सीएम फेस कमलनाथ के बेहद करीबी रहे। तब कमलनाथ केंद्रीय पर्यावरण मंत्री रहे।

इससे पहले मध्य प्रदेश के राजनीति में बड़ा बदलाव आया। 1989 में मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनीं। सुंदरलाल पटवा सीएम बने। 1992 में मुख्यमंत्री सुंदर लाल पटवा ने बस्तर के मावलीभाटा में एसएस डायकेम कंपनी के लिए स्टील प्लांट का ऐलान कर दिया। भूमिपूजन करने के बाद भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई।

मावलीभाटा में एसएम डायकेम को लेकर विरोध का दौर शुरू हुआ। विरोध को नेतृत्व देने का काम अविभाजित बस्तर के पूर्व कलेक्टर डा. ब्रम्हदेव शर्मा ने की। विरोध के केंद्र में एसएम डायकेम हेतु भूमि अधिग्रहण के लिए चिन्हित वे सभी ग्राम पंचायत विरोध में शामिल हुए। विरोध को देखते हुए बस्तर में पहली बार उद्योग समर्थक और उद्योग विरोधियों के बीच सीधी लड़ाई शुरू हो गई। उद्योग के विरोध को हवा देने के कारण उद्योग समर्थकों ने डा. ब्रम्हदेव शर्मा पर हमला बोल दिया। इस हमले से पहले उद्योग समर्थकों को एहसास ही नहीं था कि उन्होंने किसके साथ क्या कर दिया है?

घटना के बाद कलेक्टर जेपी व्यास जब कोतवाली पहुंचे तो देखा फटे हुए कपड़ों के साथ डा. ब्रम्हदेव शर्मा वहां मौजूद हैं। डा. शर्मा ने कहा ‘व्यास! तो ऐसे चलेगा शासन और प्रशासन?’ कलेक्टर जेपी व्यास केवल सर! सर! करते रह गए थे। और हमले के बाद कलेक्टर जेपी व्यास का बस्तर से तबादला हो गया।

इसके बाद मावलीभाटा डा. ब्रम्हदेव शर्मा के प्रतिशोध का केंद्र बन गया। जिस जगह पर एसएम डायकेम के लिए शिलान्यास किया गया था वहां माता गुड़ी स्थापित कर दी गई। मावलीभाटा डा. ब्रम्हदेव शर्मा के भारत जन आंदोलन का मुख्यालय बन गया। बुरूंगपाल में एक कुटिया बनाई गई यहां से भारत जन आंदोलन संचालित किया जाने लगा।

डा. ब्रम्हदेव शर्मा और अरविंद नेताम का कनेक्शन केंद्रीय स्तर पर गहरा रहा। इस गांव से एक आवाज़ उठी ‘मावे नाटे, मावा राज’ गोंडी के इस बोल का मतलब ‘हमारे गांव में हमारा राज’ है। दरअसल चर्चा अरविंद नेताम की नई पार्टी ‘हमर राज’ के केंद्र में है तो यह जानना बेहद जरूरी है कि नेताम के नजरिए से इसके मायने क्या हो सकते हैं।

1993 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने से पहले अरविंद नेताम का जो कद रहा उसे मटियामेट करने का काम सीएम दिग्विजय सिंह के दौर में हुआ। 1995 के बाद बस्तर में आज भी मालिक मकबूजा के जख्म अरविंद नेताम को दर्द का ऐहसास कराते हैं। अरविंद नेताम की दिग्विजय सिंह के साथ कभी निभी नहीं। इसकी सबसे बड़ी वजह मालिक मकबूजा का मामला है जिसकी रिपोर्ट तत्कालीन बस्तर कलेक्टर बी राजगोपाल नायडू ने तैयार की ​थी। इसके बाद उन्हें सबसे बड़ी राजनैतिक नुकसान झेलना पड़ा था।

बस्तर में आदिवासियों के खेतों में खड़े सागौन पेड़ों की कटाई के इस मामले में नेताम पर सबसे बड़ा दाग आदिवासी समाज को छलने का ही लगा था। आदिवासियों के जमीनों के औने—पौने में सौदा कर उनके खेतों में खड़े सागौन के पेड़ों को काटकर बड़ी राशि हासिल करने का आरोप रिपोर्ट में लगा था।

इससे ठीक पहले सीएम पटवा के दौर में एसएम डायकेम के मामले को लेकर जो विवाद शुरू हुआ इसे राजनीतिक तौर पर अरविंद नेताम ने संरक्षण दिया। इसके बाद बस्तर में एक दौर आया जब बस्तर में छठवीं अनुसूचि के प्रावधान लागू किए जाने की कम्यूनिस्ट पार्टी की मांग का अरविंद नेताम ने समर्थन कर दिया। उनके इस समर्थन के बाद यकायक बस्तर में आदिवासी और गैरआदिवासी की बहस खड़ी हो गई।

जल—जंगल—जमीन पर आदिवासियों हक को लेकर आंदोलन तेज हो गया। भारत जन आंदोलन के बैनर तले ‘मावा नाटे—मावा राज’ की मुहीम ने जोर पकड़ना शुरू किया। मध्य बस्तर से लेकर दक्षिण—पश्चिम बस्तर तक यह मांग तेज हो गई। इस मुहीम का सबसे बड़ा समर्थक अरविंद नेताम माने गए। पर भाषीय लिहाज से अरविंद नेताम को गोंडी बोली कहते आज तक कहीं सुना नहीं गया है। वे आदिवासी इलाके में हिंदी में ही भाषण देते हैं। कांकेर इलाके से होने के कारण उन्हें छत्तीसगढ़ी में बोलते साफ देखा सुना जा सकता है। ‘मावा राज’ की मूल भावना ‘हमर राज’ ही है।

बस्तर में सर्वाधिक बोली जाने वाली बोलियों में गोंडी, हल्बी, भतरी, दोरली है। यहां के आदिवासी जनजातियों में माड़िया और गोंड जाति की प्रमुख बोली गोंडी है। मुरिया जनजाति के लोगों में हल्बी बोली जाती है। मध्य बस्तर का उड़ीसा सीमावर्ती क्षेत्र में भतरी बोली की प्रमुखता है। कोंटा इलाके में दोरला जनजाति बहुल होने के कारण यहां दोरली बोली का प्रभाव देखा जाता है। बड़ी बात तो यही है कि इन इलाकों में छत्तीसगढ़ी बोली का प्रभाव बिल्कुल भी नहीं है।

पर केशकाल घाट से नीचे वाले इलाके में कांकेर से लेकर भानुप्रतापपुर ओर अंतागढ़ तक ज्यादातर हिस्सों में छत्तीसगढ़ी बोली जाती है। यही वह इलाका है जहां अरविंद नेताम का प्रभाव क्षेत्र भी है। अरविंद नेताम राजनीतिक तौर पर हासिल करने के लिए भले ही सर्व आदिवासी समाज के मुखिया के तौर पर खुद को खड़ा करते दिखते हें पर बस्तर की गोंडी, हल्बी, भतरी बोली के प्रभावक्षेत्र के कारण खुद की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को खतरे में नहीं डाल सकते।

इससे साफ दिखाई दे रहा है कि बस्तर की 12 विधानसभा सीटों में से उत्तर बस्तर में जो उनका प्रभाव क्षेत्र है वहां अरविंद नेताम निश्चित तौर पर हमर राज पार्टी के बैनर तले राजनीतिक पारी की शुरूआत करेंगे। पर मध्य और दक्षिण बस्तर में वे स्थानीय स्तर पर प्रभाववाली राजनैतिक पार्टी के पक्ष में अपने राजनैतिक ताकत का समर्थन देकर कांग्रेस और भाजपा के लिए नुकसान की गुंजाइश तलाश रहे हैं।

मसलन कोंटा और दंतेवाड़ा में सीपीआई, बीजापुर में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, जगदलपुर में ‘हमर राज’ पार्टी के उम्मीदवार को सीपीआई और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के समर्थन से उतारने की तैयारी कर सकते हैं। इसी तरह से नारायणपुर, कोंडागांव, केशकाल में अपने प्रत्याशी सीधे उतारकर कांग्रेस के लिए पेंच खड़ा करने की योजना साफ है। इसमें से नारायणपुर और कोंडागांव में कांग्रेस—भाजपा के बीच का फासला करीबी है। जिससे परिणाम सीधे तौर पर प्रभावित हो सकता है।

उत्तर बस्तर कांकेर जिला में अरविंद नेताम अपनी राजनीतिक भूमि को मजबूत करने के लिए पूरी ताकत झोंक सकते हैं। इस इलाके में हमर राज पार्टी के नाम पर भी वोट का गणित साफ खेला जा सकता है। कांग्रेस के लिए इन सीटों में जीत हार के लिए अरविंद नेताम का गणित निश्चित तौर पर नुकसान दायक दिखाई दे रहा है।

आसन्न विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी के लिए अरविंद नेताम की नई राजनैतिक शुरूआत प्राणवायु के तौर पर महसूस की जा रही है। इस संबंध में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और प्रदेश के मुख्यमंत्री दोनों ने अपनी राय जाहिर भी कर दी है।

आदिवासियों के गढ़ में ‘सर्व आदिवासी समाज’ का बैनर आदिवासी और गैरआदिवासी के बीच नहीं बल्कि आदिवासी और धर्मांतरित आदिवासियों के बीच सीधे तौर पर जमीन पर लड़ रहा है। कांग्रेस इस मामले में खुलकर बोलने से बच रही है और भाजपा अपने लिए अवसर की तलाश में लगी है। बस्तर संभाग के कांकेर, नारायणपुर और बस्तर जिला में इस मुद्दे को लेकर जबरदस्त संघर्ष चल रहा है।

बस्तर में आदिवासियों का सर्वाधिक धर्मांतरण ईसाई समुदाय में हुआ है। धर्मांतरित आदिवासियों के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश का माहौल बना हुआ है। सीधी शर्त है आदिवासी रहना है तो किसी भी धर्म से अपना संबंध छोड़ो। ऐसा नहीं है कि इस विवाद का दुष्प्रभाव केवल कांग्रेस के हिस्से है। भाजपा भी जमीनी तौर पर इस मामले को लेकर जूझ ही रही है। भाजपा ईसाई वाले मामले में खुलकर आदिवासियों के साथ है पर हिंदु वाले मामले में भाजपा के भीतर स्पष्ट तौर पर संदेश है कि आदिवासी हिंदु हैं।  

कांग्रेस के साथ भी कमोबेश यही स्थिति है पर धर्मांतरण के मसले पर किसी भी पक्ष से बोलकर कांग्रेस बस्तर में भाजपा के लिए मैदान खोलने से बचना चाह रही है। और बीते पांच वर्षों में अरविंद नेताम ने यही बीज बोया और अब जब फसल पकने की स्थिति है तो वे साफ तौर पर आदिवासियों के समाज के प्रमुख के तौर पर भाजपा और कांग्रेस के लिए चुनावी गणित बिगाड़ने की मैकेनिज्म उतारने को तैयार हैं।

कांग्रेस को छोड़ने के लिए अरविंद नेताम ने विश्व आदिवासी दिवस का दिन चुना। इसके लिए वे साफ तौर पर अपने समाज को संदेश देना चाह रहे थे कि वे अपने समाज के लिए मुख्यधारा की राजनीति से परे अपनी सामाजिक राजनीति की भूमि तैयार करने के लिए उतर रहे हैं। उन्हें यह भरोसा है कि आदिवासी समाज ‘हमर राज’ पार्टी के नाम को ‘मावा राज’ की वैचारिक समझ के साथ आगे बढ़ाएगा…

पर बस्तर की राजनीतिक फिजा में अब बस्तर की बेटी लता उसेंडी भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद को सुशोभित कर रही हैं। बस्तर सांसद दीपक बैज पर पूरे प्रदेश में कांग्रेस की जिम्मेदारी है। और अरविंद नेताम के पास आदिवासी वर्सेस कंवर्टेड आदिवासी की बुनियादी सोच है। जिसे आगे बढ़ाकर वे बस्तर की नई तस्वीर की कल्पना है। 

भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री के तौर पर आदिवासी समाज के लिए पिटारा खोलने का काम किया है पर बस्तर में माओवादी—आदिवासी—फोर्स के मसले पर सुलगते कुछ इलाकों का जवाब अब तक नहीं है ऐसे में 2023 में बस्तर का जनादेश ही बहुत कुछ साफ कर सकेगा। यह तो उम्मीद की ही जा सकती है।