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राहुल से बातचीत में बोले अभिजीत बनर्जी- अर्थव्यवस्था पुनर्जीवित होगी या नहीं, यह वास्तविक चिंता…

न्यूज डेस्क. नई दिल्ली।

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कोरोना वायरस के कहर और इस वायरस की वजह से देश में लगे लॉकडाउन की वजह से हुए आर्थिक नुकसान को लेकर आज मंगलवार सुबह 9 बजे नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी से बातचीत की। इससे पहले राहुल गांधी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन से भी बातचीत कर चुके हैं। कोरोना वायरस और लॉकडाउन को लेकर राहुल गांधी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर लगातार हमलावर हैं और सरकार की नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं।

राहुल ने बनर्जी से कहा कि- मैं आपके साथ हमारी गरीब जनता पर COVID संकट, लॉकडाउन और आर्थिक तबाही के प्रभाव के बारे में चर्चा करना चाहता था। हमें इसके बारे में कैसे सोचना चाहिए। भारत में कुछ समय के लिए नीतिगत ढांचा था, खासकर UPA शासन में, जब गरीब लोगों के लिए एक प्लेटफार्म था। उदाहरण के लिए, मनरेगा, भोजन का अधिकार आदि और अब उसका बहुत कुछ उल्टा होने वाला है, क्योंकि हमारे सामने ये महामारी है और लाखों-करोड़ों लोग वापस गरीबी में जाने वाले हैं। इस बारे में कैसे सोचना चाहिए?  

जवाब में अभिजीत ने कहा कि मेरे विचार दोनों को अलग कर सकते हैं। वास्तविक समस्या यह है कि वर्तमान समय में यूपीए द्वारा लागू की गई ये अच्छी नीतियां भी अपर्याप्त साबित हो रही हैं और सरकार ने उन्हें वैसा ही लागू किया है। इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं था। यह बहुत स्पष्ट था कि यूपीए की नीतियों का आगे उपयोग किया जाएगा। 

ये सोचना होगा कि जो इनमें शामिल नहीं है, उनके लिए हम क्या कर सकते हैं। ऐसे बहुत लोग हैं- विशेष रूप से प्रवासी श्रमिक। यूपीए के अंतिम वर्षों में विचार था- आधार योजना को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना, जिसे इस सरकार ने भी स्वीकारा, ताकि उसका उपयोग पीडीएस और अन्य चीजों के लिए किया जा सके। आधार कार्ड के जरिए आप जहाँ भी होंगे, पीडीएस के पात्र होंगे। ये बेहतर होता। इससे बहुत सारी मुसीबतों से बचा जा सकता है।

आधार दिखाकर लोग स्थानीय राशन की दुकान पर पीडीएस का लाभ उठा पाते। वो मुंबई में इसका लाभ उठा सकते, चाहे उनका परिवार मालदा, दरभंगा या कहीं भी रहता हो। ये मेरा दावा है। ऐसा नहीं हुआ, इसका मतलब है- एक बहुत बड़े वर्ग के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।

मुंबई में मनरेगा नहीं है, इसलिए वो इसके पात्र नहीं हैं। पीडीएस के पात्र नहीं हैं, क्योंकि वो वहां के निवासी नहीं हैं। समस्या का हिस्सा यह है कि नीतिगत ढाँचे की संरचना इस विचार पर आधारित थी कि कोई भी व्यक्ति जो वास्तव में जहाँ काम कर रहा है, वहां उसकी गिनती नहीं है और इसलिए आमदनी कमाने के कारण आपको उनके बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है और ये विचार विफल हो गया है।

 

जहां तक गरीबी का सवाल है, मैं स्पष्ट नहीं हूँ कि अगर अर्थव्यवस्था में सुधार होता है, तो गरीबी पर इसका प्रभाव पड़ेगा। वास्तविक चिंताएं हैं- क्या अर्थव्यवस्था पुनर्जीवित होगी और विशेष रूप से, कोई इस प्रक्रिया के माध्यम से इस महामारी के संभावित समय के बारे में कैसे सोचता है। मुझे लगता है कि हमें देश की समग्र आर्थिक समृद्धि की रक्षा के बारे में आशावादी होना चाहिए।इसपर राहुल बोले- लेकिन इनमें से बहुत से लोगों को छोटे और मध्यम व्यवसायों से अपनी नौकरी मिलती है, जिनको नकदी की समस्या होने जा रही है। और बहुत से व्यवसाय इस झटके के कारण दिवालिया हो सकते हैं। इसलिए इन व्यवसायों को होने वाले आर्थिक नुकसान और इन लोगों की नौकरी बनाए रखने की क्षमता के बीच सीधा संबंध है।

 अभिजीत ने कहा- यही कारण है कि, हम में से बहुत से लोग कहते रहे हैं कि हमें प्रोत्साहन पैकेज की आवश्यकता है। अमेरिका, जापान, यूरोप यही कर रहे हैं। हमने बड़े प्रोत्साहन पैकेज पर निर्णय नहीं लिया है। हम अभी भी जीडीपी के 1% पर हैं, अमेरिका 10% तक चला गया है। हमें MSME सेक्टर के लिए ज्यादा करने की आवश्यकता है। ऋण भुगतान पर रोक लगाकर बुद्धिमानी का काम किया है,  इससे ज्यादा किया जा सकता था। इस तिमाही के लिए ऋण भुगतान रद्द किया जा सकता था और सरकार उसका भुगतान करती।

ताकि लोगों को एक तिमाही के लिए भुगतान न करना पड़े। वास्तव में इसे स्थगित करने के बजाय स्थायी रूप से रद्द किया जाए। ऐसा किया जा सकता था। लेकिन इससे परे, यह स्पष्ट नहीं है कि MSME पर ध्यान केंद्रित करना सही प्रणाली है। यह मांग को पुनर्जीवित करने का मसला है। हर किसी को पैसा दिया जाए, ताकि वो सामान खरीद सकें। तो MSME इनका उत्पादन करेगा।

लोग खरीद नहीं रहे हैं। यदि उनके पास पैसा है या सरकार उन्हें पैसे देने का वादा करती है, तो आवश्यक नहीं कि अभी पैसा दिया जाए। रेड जोन में सरकार कह सकती है कि जब भी लॉकडाउन खत्म होने पर लोगों के खाते में ₹10,000 होंगे और वो इसे खर्च कर सकते हैं। अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए खर्च बढ़ाना सबसे आसान तरीका है। क्योंकि जब MSME को पैसा मिलता है, वे इसे खर्च करते हैं और फिर इसकी सामान्य Keynesian chain reaction होती है।

राहुल बोले- हमारे यहां अन्न आपूर्ति का मुद्दा थोड़ा अलग है। बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं। एक तर्क है कि गोदाम में जो अनाज है, उसे वितरित किया जाए, क्योंकि नई फसल के आते ही भंडारण बढ़ जाएगा, इसलिए उस पर तुरंत कदम उठाएं।

बनर्जी ने जवाब में कहा- रघुराम राजन और अमर्त्य सेन के साथ हमने जरूरतमंदों के लिए अस्थायी राशन कार्ड का विचार रखा था। वास्तव में अन्य राशन कार्ड को रोक कर, अस्थायी राशन कार्ड शुरू किए जाएं। जिसे जरूरत हो, उसे दिया जाए। अभी 3 महीने के लिए और आवश्यकता पड़ने पर इसका 3 महीने के लिए नवीनीकरण किया जा सकता है। सभी को राशन कार्ड दीजिए। और आपूर्ति के आधार के रूप में उपयोग करें।

मुझे लगता है कि हमारे पास पर्याप्त स्टॉक है। मुझे लगता है हम थोड़े समय तक इसे चला सकते हैं। इस बार रबी की फसल अच्छी रही है, इसलिए हमारे पास कई टन गेहूं और चावल होंगे। इसलिए कम से कम लोगों को ये तो दिए ही जा सकते हैं। मुझे नहीं पता कि हमारे पास पर्याप्त दाल है या नहीं। लेकिन शायद सरकार ने दाल का वादा किया था। इसलिए उम्मीद है कि हमारे पास पर्याप्त दाल और खाद्य तेल आदि हैं। लेकिन हाँ, हमें निश्चित रूप से सभी को अस्थायी राशन कार्ड देना चाहिए।

राहुल ने सवाल किया कि एक बार महामारी खत्म होने के बाद या अब से 6 महीने बाद गरीबी के नजरिए से आप इसे कैसे देखते हैं? जिस समय आर्थिक तंगी की संभावना है। वर्तमान समय की तुलना में मध्यम अवधि में आप इसे कैसे देखते हैं? बनर्जी बोले- हम जिस चीज के बारे में बात कर रहे थे, वह मांग में कमी का सवाल है। दो चिंताएं हैं- दिवालिया होने के सिलसिले से कैसे बचें।

हो सकता है कि बहुत सारे ऋण माफ करना एक तरीका है, जैसा कि आपने उल्लेख किया था। अन्य है- मांग में कमी और लोगों के हाथों में कुछ नकदी पहुंचाकर अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने का सबसे अच्छा तरीका है। यूएस आक्रामक रूप से ऐसा कर रहा है। यह एक रिपब्लिकन प्रशासन है, जो वित्तीय जानकारों द्वारा चलाया जाता है।

यदि वे इसे करने को तैयार हैं, तो हमें जरूर करना चाहिए। यह सामाजिक उदारवादियों के समूह  द्वारा नहीं चलाया जा रहा है, बल्कि उन लोगों द्वारा चलाया जा रहा है जो वित्तीय क्षेत्र में काम करते थे। लेकिन उन्होंने तय किया है कि सिर्फ आर्थिक अस्तित्व के बचाव के लिए लोगों के हाथों में पैसा पहुंचाना होगा। मुझे लगता है हमें इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।

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