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वर्मी—कुर्मी, #ED-CD और सिंहदेव—हसदेव फार्मुला के 2023 का मैदान मारने की तैयारी में लगी भाजपा को भानुप्रतापपुर में झटका… देहव्यापार के इस संगीन मामले में छत्तीसगढ़ सरकार पर भी आंच…!

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  • सुरेश महापात्र।

भानुप्रतापपुर के विधायक मनोज मंडावी के निधन से खाली हुई सीट पर उपचुनाव चल रहा है। इस उपचुनाव को भारतीय जनता पार्टी ने अपने लिए 2023 के चुनाव की बुनियाद रखने वाला बनाने की तैयारी की थी। इस तैयारी को फिलहाल भाजपा के प्रत्याशी ब्रम्हानंद नेताम पर लगे बलात्कार के आरोप से झटका लगा है। भाजपा बावजूद इसके मैदान छोड़ने की बजाय ज्यादा आक्रामक होकर मैदान में उतर रही है। पार्टी के कर्ताधर्ता साफ—साफ यह बता रहे हैं कि किसी व्यक्ति के बारे में लोगों की राय ज्यादा महत्वपूर्ण होती है ना कि इस तरह के आरोपों से लोग मान ही लेते हैं कि व्यक्ति वैसा ही है जैसा बताया जा रहा है। यानी यह साफ है कि भानुप्रतापपुर के उप चुनाव में भाजपा अपनी पूरी ताकत लगाएगी। एक कदम भी पीछे हटने का कोई सवाल ही नहीं है।

इस मामले को लेकर कांग्रेस के प्रवक्ता आरपी सिंह ने हाल ही में पत्रकारों की जमघट के दौरान हल्के—फुल्के अंदाज में कहा ​था कि ‘वे अगर आफताब को मुद्दा बना रहे हैं तो उसकी काट तो यही (ब्रम्हानंद नेताम पर बलात्कार के दर्ज आरोप) हैं। कोई भी बेवजह इस तरह के मामले का राजनीतिकरण नहीं चाहता।’

चुनाव के दौरान यकायक मुद्दों का बदल जाना कई दफा बेहद चौंकाता है। बस्तर में हो रहे इस दूसरे उप चुनाव में भाजपा आदिवासी समाज के प्रभावशाली नेता ब्रम्हानंद को प्रत्याशी बनाने से पहले कम से कम यही सोचा होगा कि आदिवासियों के आरक्षण के मुद्दे को लेकर ​चौतरफा घिरी भूपेश सरकार को बस्तर से यह सीट पराजित कर ना केवल आदिवासियों का जवाब स्थापित किया जाए बल्कि 2023 के चुनाव की बुनियाद भी खड़ी कर दी जाए।

चुनाव के दौरान दावा—आपत्ति का समय निकलने के बाद कांग्रेस के हाथ लगी एक तहरीर ने कांग्रेस को आरक्षण के मुद्दे पर मुखर भाजपा के खिलाफ एक बड़ा काट दे दिया। पार्टी के प्रत्याशी के खिलाफ झारखंड में वर्ष 2019 में दर्ज बलात्कार के एक मुकदमें की कॉपी हासिल हुई। इसमें कुल 10 आरोपी दर्ज हैं जिसमें दसवें नंबर पर ब्रम्हानंद नेताम का नाम शामिल है। उनके नाम के सामने भूतपूर्व विधायक भानुप्रतापपुर भी स्पष्ट तौर पर दर्ज है। इस मामले में 5 आरोपियों को जेल हो चुकी है और शेष पांच फरार हैं।

सवाल यह उठ रहा है कि यह तहरीर ऐन चुनाव के वक्त ही बाहर कैसे आई? सवाल बड़ा है इसे लेकर भाजपा के भीतर विभिषणों की खोज—खबर भी ली जा रही है। इससे बड़ा सवाल है जो तहरीर में दर्ज है उसके मुताबिक क्राइम स्पॉट छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर है। यहां झारखंड से एक नाबालिक को लाया गया। जिसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया। बताया जा रहा है कि देह व्यापार के दलाल उसे यहां तक लेकर पहुंचे थे और उसके बाद उसके साथ यह सब कुछ किया गया।

टेल्को थाना अपराध क्रमांक 84/2019 दिनांक 15 मई 2019 को दर्ज मामले में नगर पूर्वी सिंहभूम, जमशेदपुर के पुलिस अधीक्षक द्वारा 30 अगस्त 2019 को दिए गए प्रतिवेदन के अनुसार नाबालिक पीड़िता के साथ 2013 से दैहिक शोषण चल रहा था। इस पीड़िता को दलाल द्वारा अप्रेल 2019 में रायपुर लाया गया। जहां इसके साथ दैहिक शोषण का कारोबार किया जाता रहा। मजेदार बात तो यह है कि इस मामले के दर्ज होने और 2019 के पुलिस अधीक्षक के प्रतिवेदन के बाद भी यदि झारखंड और छत्तीसगढ़ सरकार ने संज्ञान में नहीं लिया तो और भी गंभीर मसला है। जिस पुलिस कर्मी को दो दिन पहले निलंबित किया गया उस पर यह आरोप 2019 से ही दर्ज है।

छत्तीसगढ़ में देह व्यापार को लेकर सरकार की जवाबदेही इस बात से खत्म नहीं हो जाती कि भानुप्रतापपुर के भाजपा प्रत्याशी और पूर्व विधायक ब्रम्हानंद नेताम पर इस सामूहिक बलात्कार कांड के आरोप दर्ज हैं। जिस इलाके के आरोपी रहवासी हैं उसी इलाके के एक फ्लेट में पीड़िता के साथ दैहिक शोषण का मामला है। आशंका है कि इसी के किसी हिस्से में पीड़िता के साथ दै​हिक शोषण का कृत्य किया गया।

इस मामले के सामने आने के बाद छत्तीसगढ़ की पुलिस का रवैया बेहद निराशाजनक माना जाना चाहिए। नाबालिग के साथ अनाचार की इस जघन्य घटना में देह व्यापार की कहानी छिपी है। देह व्यापार के लिए छत्तीसगढ़ की राजधानी माकूल जगह कैसे हो सकती है। और रही बात यदि 2019 में झारखंड में मामला दर्ज किया गया तो क्या छत्तीसगढ़ पुलिस से इस संबंध में किसी भी तरह का पत्र व्यवहार करना उचित नहीं समझा गया। जबकि इस मामले में यहां के आरोपियों की स्पष्ट शिनाख्त पुलिस अधीक्षक के प्रतिवेदन में दर्ज है।

एक बात और कि जिस दौरान यह मामला झारखंड में दर्ज किया गया उस समय झारखंड में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। रघुवर दास मुख्यमंत्री थे। यह सवाल भी उठना लाजिमी है कि क्या वहां की सरकार ने जानबूझकर इस मामले को ठंडे बस्ते में डाले रखा?

सवाल तो कई हैं पर सबसे बड़ा मसला छत्तीसगढ़ में आगामी चुनावी वैतरणी का है जिसे लेकर यह रस्साकसी का खेल चल रहा है। उपचुनाव के दौरान भाजपा के खेमे में देहव्यापार की इस कहानी ने भारी बेचैनी पैदा कर दी है। इस बात को लेकर भारी संशय उत्पन्न हो गया है कि आने वाले दिनों में भाजपा अपनी चुनावी रणनीति में किस तरह का बदलाव करेगी। जिससे यकबयक इस तरह के हालात को उत्पन्न होने से रोका जा सके।

भाजपा के खेमे में यह पक्की खबर है कि भूपेश सरकार ने सभी 90 विधानसभा सीटों के लिए भाजपा के संभावित सभी उम्मीदवारों की फाइले तैयार करवा रही है। ताकि इसका इस्तेमाल ऐन चुनाव के वक्त किया जा सके। वहीं भाजपा ने भी एक प्रस्ताव स्वीकार किया है कि आगामी विधान सभा चुनाव के लिए वर्मी—कुर्मी, ईडी—सीडी और सिंहदेव—हसदेव के सूत्र पर चुनाव लड़ा जाएगा।

भाजपा 2023 का चुनाव किसी भी कीमत पर गंवाना नहीं चाहती। इसके लिए हर तहर की जोरआजमाईश की जाएगी। भानुप्रतापपुर उप चुनाव से काफी पहले इसे लिए प्रदेश भाजपा ने प्रस्ताव पास किया था जिसमें नीचे लिखे मुद्दों को लेकर साफ रणनीति बाहर दिखाई दे सकती है। आप भी समझें

  • वर्मी — गाय, गोबर, गोठानों के मामले में गड़बड़ी उजागर किया जाएगा।
  • कुर्मी — जिस तहर से जातिगत समीकरणों को साधने की तैयारी भूपेश सरकार कर रही है उसमें आरक्षण के मुद्दे को लेकर आक्रामक तरीके से घेराबंदी की जाएगी।
  • ईडी — आयकर और ईडी के छापे भी इसी रणनीति का एक अह्म हिस्सा हैं।
  • सीडी — भूपेश बघेल ओर विनोद वर्मा पर चल रहे सीबीआई में दर्ज मामला सेक्स सीडी कांड को लेकर पूरी तरह घेरने। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सीडी कांड को लेकर सीबीआई की अपील को लेकर 8 सप्ताह का समय जवाब देने के लिए तय कर दिया है। इसे फायनल आदेश के लिए लिस्टेड कर दिया गया है। यदि इस मामले में सीबीआई को इजाजत मिलती है तो छत्तीसगढ़ से बाहर इसकी सुनवाई की जा सकेगी।
  • सिंहदेव — भूपेश सरकार के पार्टी के ​भीतर विरोधियों की पहचान कर साधने के लिए इसे कोड किया गया है।
  • हसदेव — जल—जंगल—जमीन को लेकर आने वाले दिनों में भूपेश सरकार पर भाजपा चुनाव से पहले हमलवार होने की रणनीति में जुटी है।

खैर अभी मसला भानुप्रतापपुर उपचुनाव में पार्टियों की साख का है। इसमें कांग्रेस का पलड़ा थोड़ा भारी हुआ है और भाजपा को अपनी खामी छिपाने के लिए मुद्दों की तलाश है। आदिवासियों का आरक्षण के मुद्दे को लेकर आक्रामक होना कांग्रेस के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। साथ ही आदिवासी समाज जिस तरह से हाल ही में मुखर होता दिख रहा है उससे भाजपा अपने भविष्य की राह तलाश रही है।