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दयालु था, दुष्कर्म के बाद बच्ची को जिंदा छोड़ा, हाईकोर्ट ने पहले की थी यह टिप्पणी, अब किया सुधार…

इम्पैक्ट डेस्क.

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने चार साल की बच्ची से दुष्कर्म के मामले में की गई अपनी एक टिप्पणी में सुधार किया है। उच्च न्यायालय ने 18 अक्टूबर को दिए अपने फैसले में कहा था कि दोषी ने ‘दुष्कर्म के बाद बच्ची को जिंदा छोड़ दिया’ यह उसकी दयालुता थी। इस वजह से दोषी को दी गई आजीवन कैद की सजा को 20 साल के कठोरतम कारावास में बदला जा सकता है। हाईकोर्ट के इंदौर बेंच की इस टिप्पणी की आलोचना की जा रही थी। अब अदालत (Madhya Pradesh High Court) ने उक्त टिप्पणी में सुधार के साथ फैसले में भी संशोधन किया है।

अदालत ने ‘दयालु था, दुष्कर्म के बाद बच्ची को जिंदा छोड़ा’ टिप्पणी को हटा दिया है, साथ ही दुष्कर्म के अपराधी की सजा को आजीवन कारावास से घटाकर 20 साल कैद में बदलने के आदेश को संशोधित किया है। अदालत (Madhya Pradesh High Court) का कहना है कि अनजाने में उसके फैसले में गलती हुई है।

27 अक्टूबर को दिए गए संशोधित आदेश में न्यायाधीश सुबोध अभ्यंकर और सत्येंद्र कुमार सिंह की डबल बेंच ने कहा कि यह संज्ञान में लाया गया है कि इस अदालत की ओर से 18 अक्टूबर को दिए गए फैसले में अनजाने में गलती हुई है, जहां प्रकार की टिप्पणी का इस्तेमाल उस अपीलकर्ता के लिए किया गया है जिसको दुष्कर्म के अपराध में दोषी ठहराया गया है। 

18 अक्टूबर को अपने फैसले में अदालत ने कहा था कि उसे ट्रायल कोर्ट द्वारा सबूतों और अपीलकर्ता के राक्षसी कृत्य पर विचार करने में कोई त्रुटि नजर नहीं आती है। दोषी जिसके मन में एक महिला की गरिमा के लिए कोई सम्मान नहीं है और जो 4 साल की बच्ची के साथ भी यौन संबंध रखने की प्रवृत्ति रखता है।

हालांकि, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि अभियोजक ने बच्ची को जिंदा छोड़ दिया, यह उसकी दयालुता थी। यही वजह है कि यह अदालत मानती है कि मुजरिम के आजीवन कारावास की सजा को कम किया जा सकता है। हालांकि उसे 20 साल कठोरतम कारावास काटनी होगी। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। अपीलकर्ता को कानून के अनुसार 20 साल की सजा भुगतनी होगी। 

उक्त फैसले की आलोचनाओं के बाद अदालत ने 27 अक्टूबर को अपनी चूक मानते हुए कहा कि यह स्पष्ट है कि उपरोक्त गलती अनजाने में हुई है, क्योंकि यह अदालत पहले ही अपीलकर्ता के कृत्य को राक्षसी मान चुकी है। ऐसी परिस्थिति में यह अदालत सीआरपीसी की धारा 362 के तहत प्रदत्त अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए, उपरोक्त पैराग्राफ को संशोधित करती है। हालांकि, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि अपीलकर्ता ने पीड़ित को कोई अन्य शारीरिक चोट नहीं पहुंचाई, इस पर अदालत की राय है कि दोषी के आजीवन कारावास को 20 साल के कठोर कारावास तक कम किया जा सकता है।