छत्तीसगढ़ में पत्ता वाला मास्क की रिपोर्टिंग पर प्रशासन ने करवाई FIR… ग्रामीणों ने कहा गलत है FIR… मीडिया संगठनों का आरोप FIR से प्रशासन ने मीडिया से बदला लिया…
- इम्पेक्ट न्यूज. रायपुर।
कांकेर जिला के आमाबेड़ा तहसील में कोरोना संक्रमण से बचने के लिए ग्रामीणों को मास्क और सैनेटाईजर जैसे आवश्यक वस्तुओं का अभाव हो गया तो आदिवासियों ने सरई के पत्तों से मास्क बनाकर पहन लिया। इसकी रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के विरुद्ध धारा 188 और 34 के तहत अपराध कायम किया गया है। पत्रकारों पर आरोप है कि उन्होंने धारा 144 का उल्लंघन किया।
ग्रामीणों द्वारा पत्ते का मास्क पहनकर बचाव की सूचना कांकेर के पत्रकारों को दी। सूचना के बाद मौके पर पहुंचे पत्रकारों ने पत्ता का मास्क पहने ग्रामीणों का विडियो बनाया और बात की। जिसे डिजिटल, प्रिंट और इलेक्ट्रानिक माध्यमों से प्रचार भी मिला। बहुत से वेब पोर्टल, समाचार पत्र और टीवी चैनलों में समाचार प्रकाशित और प्रसारित हुआ।
इसके बाद कांकेर जिला प्रशासन के निर्देश पर आमाबेड़ा के नायाब तहसीलदार ने थाने में पत्रकारों के विरूद्ध मामला पंजीबद्ध करवा दिया है। जब इस बात की जानकारी ग्रामीणों को मिली तो ग्रामीण भी थाने पहुंच गए और पत्रकारों के विरुद्ध दर्ज FIR को रद्द करने की मांग की है।
क्या आप जानते हैं कि छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन का मुख्य कारण अफसरशाही ही रही। एक बार फिर अफसरशाही ने अपना पुराना रवैया अपनाने की कोशिश की है। इसके लिए कोरोना के आपातकाल को अवसर की तरह भुनाया जा रहा है।
बात केवल यही नहीं है कि पत्रकारों के विरुद्ध सीधे FIR कर दिया गया। बल्कि इसके पीछे एक बड़ी कहानी सामने आई है। बताया जा रहा है कि कांकेर के जिला अधिकारी पत्रकारों से बेहद नाराज थे।
कलेक्टर और पत्रकारों के बीच तब से मामला उलझा हुआ है जब से सीएम भूपेश बघेल का प्रवास कांकेर में हुआ था तब कलेक्टर ने ग्रीन हाउस समय पर ना बनने को लेकर लोक निर्माण विभाग के कार्यपालन अभियंता को थाने में बिठवा दिया था।
तब जिन पत्रकारों ने इस मामले को उठाया था, वे ही पत्रकार आमाबेड़ा तहसील में आदिवासियों के पत्ता वाला मास्क की खबर पर भी सामने आए थे। माना जा रहा है कि मीडिया से बदला लेने और दबाव बनाने का यही सही वक्त है। इसके बाद उच्चाधिकारियों के निर्देश पर तहसीलदार ने थाने में FIR करवा दी।
मीडिया संगठनों का कहना है नायाब तहसीलदार बिना उच्चाधिकारियों के जिसमें तहसीलदार, एसडीएम अथवा कलेक्टर की सहमति के प्राथमिकी दर्ज नहीं करवा सकते. इसके अलावा किसी थाने में पत्रकारों के विरुद्ध अगर प्राथमिकी दर्ज की जानी है तो निश्चित मानें यह काम पुलिस अधीक्षक की सहमति के बगैर नहीं हो सकता। इस मामले के सामने आने के बाद मीडिया संगठनों का आरोप है कि यानी कांकेर में पत्ता वाली स्टोरी को लेकर प्रशासन ने मीडिया को उसकी औकात दिखाने की कोशिश की है।
कांकेर के वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला कहते हैं छत्तीसगढ़ में मीडिया प्रतिनिधि के विरुद्ध किसी भी प्रकरण को दर्ज करने के लिए बकायदा आईजी से अनुमोदन और जांच की प्रक्रिया का निर्धारण किया गया है। जिसका पालन भी इस मामले में नहीं किया गया है।
विधि विशेषज्ञों द्वारा माना जा रहा है कि किसी संज्ञेय अपराध के लिए लागू इस नियम को कलेक्टर व पुलिस अधीक्षक को धारा 144 के प्रभाव के लिए दिए गए अधिकारों का उपयोग या दुरुपयोग किया गया है। यह साफ दिखाई दे रहा है।