District Beejapur

मांगों को लेकर माड़ में मुखर हुए हजारों आदिवासी… ताड़बल्ला मुठभेड़ को फर्जी ठहराते मनाई बरसी… सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोढ़ी भी पहुँची…

इंपैक्ट डेस्क.

बीजापुर। कैम्प, पुल, पुलिया, सड़क और मुठभेड़ के नाम पर नरसंहार के खिलाफ ग्रामीणों का आंदोलन सिलगेर से शुरू होकर बुरजी और बेचापाल के रास्ते अब अबुझमाड़ तक पहुंच चुका है। अबुझमाड़ के ताकीलोड़ में पिछले एक सप्ताह तक चले आदिवासियों के इस आंदोलन को अब तक का बस्तर में सबसे बड़ा आंदोलन माना जा रहा है। इस आंदोलन में ग्रामीणों के साथ-साथ स्थानीय आदिवासी नेतृत्व के अलावा प्रदेशभर के आदिवासी नेता शिरकत करने पहुंचे थे। ताकीलोड़ में हुए आंदोलन के अंतिम दिन ताड़बल्ला में मारे गए दस आदिवासियों की बरसी के साथ आंदोलन को समाप्त किया गया। साथ ही आगे वृहद आंदोलन की रूपरेखा भी तैयार की गई। मूलवासी बचाओ मंच ताकीलोड़ के अध्यक्ष आदेश ने बताया कि करीब सात से आठ हजार ग्रामीण एक सप्ताह से अपनी दस सूत्रीय मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे थे और ताडबल्ला में मारे गए आदिवासियों की बरसी के साथ इस आंदोलन को समाप्त किया गया।

मूलवासी बचाओ मंच के अध्यक्ष नेबताया कि दस सूत्रीय मांगों में प्रमुख रूप स ेजल-जंगल-जमीन पर संपूर्ण अधिकार, बस्तर में नरसंहार को बंद करने की मांग, रावघाट खदान और रेल लाइन को बंद करना, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली सभी परियोजनाओं को बंद करना, धारा मेट्टा पर्यटन स्थल की योजना को वापस लेना, मुठभेड़ के नाम पर निर्दोष ग्रामीणों की हत्याओं को बंद करना, इंद्रावती नदी पर बनने वाले पुल-पुलियों को बंद करना, माड़ में सेना प्रशिक्षण केंद्र बनाने के लिए भारतीय सेना को 750 वर्ग किमी जमीन देने वाले समझौते को रद्द करना, माड़ क्षेत्र सहित तमाम बस्तर क्षेत्र को छठवीं अनुसूची का दर्जा देना और जेल में बंद आदिवासियों को रिहा करने की मांगें शामिल हैं। आदेश ने यह भी बताया कि उन्हें बस्तर में विनाश नहीं बल्कि विकास चाहिए। क्षेत्र में थाना और कैपों के बजाए स्कूल और अस्पताल की स्थापना की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं होती है तो इस आंदोलन को वृहद तौर पर आगे बढ़ाया जाएगा और क्रमबद्ध तरीके से आंदोलन का विस्तार किया जाएगा। वही आदिवासी नेत्री सोनी सोढ़ी ने बस्तर में चल रहे आंदोलनों को लेकर कहा कि इन आंदोलनों का आने वाले चुनाव में बहुत बड़ा असर देखने को मिल सकता है या फिर यह भी हो सकता है कि आदिवासियों के हक की लड़ाई के लिए चल रहे इन आंदोलनों के चलते संपूर्ण बस्तर में चुनावों का बहिष्कार हो जाए और बस्तर में चुनाव या मतदान की प्रक्रिया ही स्थगित हो जाए।