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ये जो हिजाब है ना… काश विद्रुप राजनीति के चेहरे को ढंक पाती!

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  • सुरेश महापात्र।

हिंदुस्तान में चुनाव और विवाद का गहरा नाता रहा है। हमने गधे, गोबर से लेकर हर बार किसी ना किसी ऐसे मुद्दे पर एकमत होने की कोशिश की है जिसका हमारी दैनिक जिंदगी से कोई वास्ता नहीं रहता। इस बार पांच राज्यों में चुनाव के दौरान कर्नाटक के हिजाब वाले घटनाक्रम को लेकर बहस जारी है।

हाईकोर्ट ने बड़ी बैंच को केस सुनवाई के लिए रिकमेंड किया है। और बड़ी बैंच ने हिजाब पर अंतरिम रोक लगा दी है। इधर सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई से फिलहाल इंकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट चाहती है कि पहले इस मामले पर कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला आ जाए।

कुल मिलाकर चुनावी मौसम में जिस गंध की कमी थी वह अब पूरी हो गई है। इस बार देश रोजगार, विकास, किसानी आय की जगह हिजाब को लेकर चिंता में है। खैर यह मसला अलग ही है।

डिजिटल जमाने में आप कहीं भी बैठकर कहीं भी पहुंच सकते हैं और आप कब ट्रेंड करने लगेंगे यह तय कर पाना कठिन है। दरअसल इसी बुनियाद पर अब लोकतंत्र खड़ा हो रहा है। मुद्दे गढ़े जा रहे हैं और बहसें करवाई जा रही है।

जरा सोचिए कितना कामन मसला है। हमने सड़क, बाजार, स्कूल और कॉलेज में स्कार्फ और हिजाब से ढंकी लड़कियों को कई दफे आते—जाते देखा है। पर कभी यह सोचा ही नहीं कि यह भी एक दिन देश के लोकतांत्रिक बहस में अपनी जगह बना सकेगा!

शायद यह अब लोगों का पता चल रहा है कि स्कार्फ और हिजाब में गहरा फर्क है। स्कार्फ धर्मनिरपेक्ष है और हिजाब धार्मिक। पर दोनों का काम एक जैसा ही है।

एक समय तो लड़कियों के स्कार्फ पहनकर निकलने पर भी पाबंदी का मसला उठा था तब यह कहीं से राजनैतिक मुद्दा ही नहीं बना। दरअसल ढंके हुए लबादे में कौन क्या है और किस नियत का है पता करना कठिन है। सो समाज खुले चेहरे को तरजीह देता है।

जब से वैलेंनटाइन डे चलन में आया तब से स्कार्फ और भी खतरनाक हो गया है। सड़क में चलते यह जान पाना असंभव हो गया है कि कौन किसके साथ कहां जा रहा हैृ? दरअसल यह भी समाज की जायज चिंता ही है कि आजादी के तमाम दलीलों के बाद भी कोई भी मां नहीं चाहती कि उसकी बेटी के कारण परिवार और उसके समाज को नीचा देखना पड़े। यही वजह है कि स्कार्फ को लेकर व्यापक चिंतन और मंथन का दौर चला।

पुलिस के साथ लेडी पुलिस तैनात रहकर बेटियों के चेहरे से स्कार्फ निकालने के लिए कहती थीं। यह कई दफे देखा गया पर समाज ने इस पर कभी आपत्ति नहीं जताई। कई स्कूल और कालेज के प्रांगण में लड़कियों के स्कार्फ पर पाबंदी लगाई गई थी। यह उस संस्थान की व्यवस्था का मसला था। तब भी कहीं विवाद जैसी कोई स्थिति निर्मित नहीं हुई।

पर इस बार हो गया… हिजाब को लेकर हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक बहस चल रही है। सोशल मीडिया के प्लेटफार्म अटे पड़े हैं। धार्मिक स्वतंत्रता से लेकर संवै​धानिक अधिकार तक मामला पहुंच गया है।

हाल ही में पुरी ​दुनिया ने अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद उत्पन्न हालात को देखा है। वहां की दुकानों में लगी महिला माडल की तस्वीरों को मिटाते और तालिबानी आदेश में हिजाब के बगैर निकलने पर पाबंदी को लेकर महिलाओं की आजादी का मसला भी उठाते देखा है।

हिंदुस्तान की बात ही कुछ अलग है यहां दरअसल कभी भी कुछ भी मुद्दा बनाया जा सकता है। क्योंकि यहां की राजनैतिक व्यवस्था में इतनी आजादी है कि राजनी​ति अपनी विद्रुपता से गाय के गोबर से लेकर ऐसे किसी भी विषय को बहस का केंद्र बना सकती है जिसकी कल्पना आम इंसान कर ही नहीं सकते।

कर्नाटक में हिजाब को लेकर सुनियोजित तरीके से विवाद का केंद्र बनाया गया। लडकों की एक भीड़ खड़ी की गई। उन्हें केसरिया गमछे बांटे गए। वे एक छात्रा जो हिजाब पहनकर पहुंची थी उसका पीछा करते हुए ‘जयश्री राम’ के नारे का उद्घोष करने लगे। यही विडियो वायरल हुआ। जवाब में युवती ने ‘अल्लाह हू अकबर’ का उद्घोष किया।

छात्रा ने बीबीसी से चर्चा में यह स्पष्ट किया कि जब भी वह डरती है तो ‘अल्लाह हू अकबर’ बोलने लगती है। पर लड़कों ने यह नहीं कहा कि जब किसी को डराना होता है तो वे जयश्री राम के नारे लगाते हैं। क्योंकि श्रीराम तो ऐसे हैं ही नहीं कि उनके नाम को लेकर किसी को डराया जा सके। वे तो मर्यादा पुरूषोत्तम हैं। उन्होंने स्त्री सम्मान के लिए मर्यादा की रेखा स्थापित की है।

पर जो विडियो वायरल हुआ है उसमें लड़कों की भीड़ जयश्री राम के उद्घोष के साथ किसी युवती को डराती दिख रही है। यह साफ दिख रहा है। वे युवक कौन थे और किसके कहने पर यह करने पहुंचे थे? अब यह बहस में कहीं नहीं दिख रहा है।

लोग हिजाब और जयश्री राम को लेकर ही उलझे हुए हैं। राजनीति अपनी विद्रुपता के साथ चुनावी मोड पर है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पंचायतें सजीं हैं। मीडिया के दृश्य और पन्नों पर हिजाब ढका ही हुआ है। राजनीति की विद्रुपता साफ दिख रही है। और हम लोकतंत्र का महापर्व मना रहे हैं… ये जो हिजाब है ना… काश विद्रुप राजनीति के चेहरे को ढंक पाती!