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मुद्दा : तिरूपति लड्डू मामले में जो हो रहा है वह दूषित प्रसाद खाने से भी ज्यादा घिनौना…

सुरेश महापात्र। राजनीति में एक स्थापित सत्य है कि यह दो शब्दों का मिलन है जिसमें ‘राज’ और ‘नीति’ शामिल हैं। बीते कुछ समय से राजनीति की विद्रुपता चरम पर है। ‘राज’ अपनी ‘नीति’ स्थापित करने के लिए जिस तरह से घिनौना होता जा रहा है उससे हर तथ्य पर अब संदेह होने लगा है। ऐसा ही संदेह विश्वप्रसिद्ध तिरूपति बालाजी मंदिर के प्रसादम को लेकर उत्पन्न कर दिया गया है। जिन लोगों ने बीते कुछ बरसों में प्रसिद्ध ​तीर्थ स्थल में पूजा अर्चना की और वहां का भोग प्रसाद

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उन्मादित भीड़ या आल्हादित जनता? शपथ ग्रहण समारोह का हाल ए बयां…

सुरेश महापात्र। “उन्मादित भीड़ या आल्हादित जनता” यह तय कर पाना निहायत कठिन सा हो गया था आज! जब हम सभी शपथ ग्रहण कार्यक्रम का हिस्सा रहे। नेता या पार्टी की जीत से बड़ी विचारधारा की जीत या हार होती है। लोकतंत्र में विचारधारा ही मूल मंत्र है। हम यह मानते और जानते रहे हैं कि राजनीतिक दलों की अपनी एक विचारधारा होती है। मैंने बीते कुछ अरसे में यह जानने में सफलता पाई है कि “कांग्रेस” और “कांग्रेसी” सही मायने में विचारहीन राजनीतिक दल की श्रेणी में आती है।

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