नहीं लगता शांति वार्ता की जरूरत है… बशर्ते?
विशेष टिप्पणी। सुरेश महापात्र। बस्तर में माओवादियों के साथ संघर्ष का लंबा इतिहास रहा है। इसमें ना जाने कितने लोगों की मौत दर्ज है। किसे शहीद कहें और किसे मौत? यह भी बड़ा सवाल रहा है। चार दशक पुराने इस माओवादी इतिहास में बस्तर एक अघोषित युद्ध क्षेत्र की तरह ही रहा है। अब पहली बार ऐसा साफ दिखाई दे रहा है कि बस्तर में लंबे समय तक बैकफुट पर रहे सशस्त्र बलों का आत्मबल कामयाबी से बढ़ा है। हर उस इलाके में सशस्त्र बलों का अब दबदबा साफ दिखाई
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