तो क्या आईना दिखा रहे हैं डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव…?
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दिवाकर मुक्तिबोध.
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार के पिछले साढ़े चार वर्षों में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बाद यदि दूसरा कोई नेता या मंत्री विभिन्न कारणों से सर्वाधिक सुर्खियों में रहा है तो वे टी एस सिंहदेव हैं, सरकार के वरिष्ठ मंत्री और अब डिप्टी सीएम जिन्हें यह कुर्सी तब मिली जब राज्य विधानसभा चुनाव के लिए महज तीन चार माह ही शेष रह गए थे। 17 दिसंबर 2018 को भूपेश बघेल के सरकार की कमान संभालने के पहले और बाद में प्रदेश की राजनीति में यह खबर तैरती रही कि बघेल के मुख्यमंत्री के रूप में ढाई साल पूर्ण होने के बाद अगले ढाई वर्षों के लिए टी एस बाबा मुख्यमंत्री बनेंगे। इस पूरी अवधि तक टीएस इस मुद्दे पर लगभग खामोश रहे। मीडिया के सामने उन्होंने न कभी हां कहा न ना पर अखबारों के जरिए वे चर्चा में बने रहे।
सरकार के ढाई वर्ष पूर्ण होने पर दिल्ली में जो सत्ता संघर्ष हुआ, उसमें अंततः भूपेश बघेल की जीत हुई। टीएस हाथ मलते रह गए फिर भी ढाई साल के सवाल पर उन्होंने चुप्पी कायम रखी अलबत्ता आलोचना के हथियार तेज कर दिए। उन्होंने सरकार के कामकाज पर तल्ख टीका टिप्पणियां देनी शुरू कर दीं। जाहिर है इस वजह से भी वे लगातार सुर्खियां बटोरते रहे। और जब उन्हें डिप्टी सीएम बनाने की अप्रत्याशित खबर सामने आई तो प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में भूचाल सा आ गया। सुर्खियों पर सुर्खियां चलती रहीं जिसने अब एक नई राह पकड़ ली है जिसके केंद्र में खुद टीएस हैं, उनका सरगुजा है, विधानसभा चुनाव है, टिकिट का मुद्दा है , कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं और वे विधायक भी जिन्होंने उनके खिलाफ डिप्टी बनने के पूर्व तक मोर्चा खोल रखा था तथा उन पर गंभीर व अपमानजनक टिप्पणियां की थीं, आरोप जड़ें थे।
टीएस बाबा अपनी साफगोई के लिए जाने जाते हैं। नपी तुली बातें करते हैं। कभी संयम का दामन नहीं छोड़ते और न ही किसी के प्रति अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करते हैं। बलरामपुर के कांग्रेसी विधायक बृहस्पति सिंह ने जब उन पर हत्या का आरोप लगाया था तब भी वे संयमित रहे। इसका उन्होंने शालीन तरीके से विरोध व्यक्त किया था। लेकिन अब उन्होंने अपने प्रभाव वाले सरगुजा के उन विधायकों को अपने तरीक़े से निपटाने का काम शुरू कर दिया है जो उनके खिलाफ जहर उगल रहे थे। पहले क्रम पर है, बृहस्पति सिंह, सामरी के विधायक चिंतामणि महाराज और बैंकुठपुर के विधायक अंबिका चरण सिंह। राजपुर के हाल ही के अपने दौरे व कार्यकर्ताओं से भेंट मुलाकात के दौरान उन्होंने अपनी बातों से प्रदेश कांग्रेस कमेटी व हाई कमान को मैसेज दे दिया कि सरगुजा सहित प्रदेश में टिकिट वितरण के समय उनकी मंशा व सुझावों को महत्व मिलना चाहिए।
बीते समय में सरगुजा संभाग के राजपुर व प्रदेश के अन्य स्थानों में उन्होंने अलग-अलग मंच पर जिस बेबाकी से अपने विचार रखें वे बड़ी सुर्खियां बनीं। पहली बार सार्वजनिक रूप से उन्होंने साढ़े चार वर्षों तक सरगुजा संभाग व प्रदेश के अन्य भागों में फैले अपने समर्थक कार्यकर्ताओं व पार्टी के पदाधिकारियों की उपेक्षा को रेखांकित किया और उनके असंतोष को सामने रखा। सत्ता के करीब आने के लिए पाला बदलने वाले विधायकों का बिना नाम लिए, उन्होंने उन्हें आडे़ हाथों लिया।
इसमें अप्रत्यक्ष रूप से बलरामपुर विधायक बृहस्पति सिंह द्वारा उन्हें तथा परिवार को अपमानित करने की घटना का हवाला देते हुए उन्हें माफ न करने, सामरी के विधायक चिंतामणि महाराज का खुलकर विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं को चुनाव में मनमाफिक निर्णय लेने की स्वतंत्रता देने के साथ ही यह स्पष्ट कर दिया कि कार्यकर्ताओं की नाराजगी अकर्मण्य विधायकों से है, पार्टी से नहीं। मीडिया से बातचीत में उन्होंने यहां तक कहा कि सरगुजा में पिछले चुनाव के नतीजों को दुहराना संभव नहीं है। अलबत्ता यदि सब कुछ ठीक ठाक रहा तो यहां 14 में से अधिकतम 11 सीटें कांग्रेस को मिल सकती है अन्यथा 7 से अधिक नहीं।
टीएस की स्पष्टवादिता पार्टी नेतृत्व को संकेत है कि पार्टी के अंदरूनी हालात वैसे नहीं हैं जैसे कि बताए जाते हैं। अतः टिकिट बांटते समय प्रत्येक पहलू पर विचार करना जरूरी होगा, विशेषकर जनता के बीच प्रत्याशियों की छवि के मामले में। उनकी बातों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि साढ़ेचार साल तक केवल मलाई छानते रहे अलोकप्रिय व दागी चेहरों को पुनः टिकिट नहीं दी जाएगी। जहां तक उनके अपने क्षेत्र सरगुजा की बात है, यहां भी बदलाव की बयार बहेगी। इसका मूल कारण है उन मौजूदा विधायकों को बाहर का रास्ता दिखाना जो नाकाबिल तो है ही पर जिन्होंने स्थानीय नेताओं व कार्यकर्ताओं की घनघोर उपेक्षा की, उनका कोई काम नहीं किया।
टीएस के राजपुर दौरे में सामरी के नेताओं व कार्यकर्ताओं ने एलान किया कि वे पुनः अपने विधायक का चेहरा नहीं देखना चाहते। इस पर भी उन्हें टिकिट मिलती है तो वे उन्हें उनके हाल पर छोड़ देंगे। उनके लिए काम नहीं करेंगे। यह बड़ी घटना है। इससे साफ है कि टिकिट के मामले तय करना पार्टी के लिए आसान नहीं है। चयन प्रक्रिया के दौरान यदि राज्य के प्रमुख कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों की राय को नजरअंदाज किया गया तो उसका फल पार्टी को चुनाव में भुगतान पडे़गा। इन परिस्थितियों में यद्यपि डिप्टी सीएम के रूप में टीएस सिंहदेव की टिकिट वितरण में प्रभावी भूमिका रहेगी पर ऐसा प्रतीत होता है कि सरगुजा में उनकी न सुने जाने पर वे किसी प्रकार की जवाबदेही लेना नहीं चाहेंगे।
हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने वह कर दिखाया जो अब तक छत्तीसगढ़ में कोई नेता नहीं कर पाया था। 2018 के चुनाव में वे पार्टी चुनाव घोषणा पत्र समिति के प्रमुख थे जो कांग्रेस की विशाल जीत का प्रमुख आधार बना था। टीएस के दम पर सरगुजा में पार्टी ने भाजपा का बुरी तरह सफाया करके सभी 14 सीटें जीतीं जिसका श्रेय उन्हें मिला लेकिन इस मुद्दे पर वे स्पष्टतः कह चुके हैं कि उस समय की राजनीतिक परिस्थितियां अलग थीं जिसका फायदा कांग्रेस को मिला पर अब वह बात नहीं रही, वह वातावरण नहीं रहा। अब जो भिन्नता नज़र आ रही है, वह जीत की दृष्टि से यद्यपि कांग्रेस के पक्ष में है किंतु भाजपा से मुकाबला तगडा है।
टीएस के पिछले मीडिया वक्तव्यों जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री बनते की इच्छा से इंकार नहीं किया है , से जाहिर है कि आगामी विधानसभा चुनाव में भी बंपर जीत (75 सीटें) का कांग्रेसी नेताओं का दावा खोखला है बशर्ते सत्ता व संगठन के बीच सही तालमेल न बैठ जाए जैसा कि सिंहदेव कह रहे हैं। हाल ही में एबीपी व सी वोटर्स के चुनाव पूर्व हुए सर्वेक्षण में कांग्रेस को 90 में से अधिक से अधिक 54 सीटें मिलती दिख रही है जो 46 के बहुमत से केवल 8 सीटें ज्यादा हैं।
भाजपा मामूली अंतर के बहुमत को कैसे ध्वस्त करती है इसका एक उदाहरण मध्यप्रदेश है जहां दलबदल के जरिए कमलनाथ की सरकार को गिराने में उसे अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ी थी। अतः यदि टीएस सिंहदेव कांग्रेस की मौजूदा राजनीतिक स्थिति की समीक्षा के आधार पर मीडिया से बातचीत करते रहते हैं तो केवल साथ सुर्खियां बटोरने नहीं बल्कि नेतृत्व को वस्तुस्थिति से अवगत कराने ताकि यह भ्रम न रहे कि पार्टी 2023 का भी चुनाव आसानी से जीत रही है।
लेखक : छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ संपादक एवं राजनीतिक टिप्पणीकार हैं।