अनुकंपा नियुक्ति पर केरल हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की, बार-बार दावा नहीं कर सकता मृतक का परिवार
तिरुवनंतपुरम
अनुकंपा नियुक्ति पर केरल हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। अदालत का कहा है कि मृतक सरकारी कर्मचारी का परिवार बार-बार अनुकंपा नियुक्ति की मांग नहीं कर सकता है। हाल ही में इससे जुड़े एक मामले की सुनवाई उच्च न्यायालय में हुई, जहां अदालत ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का तरीका नहीं, बल्कि इसका मकसद मृतक के परिवार को परेशानी से उबारना है। याचिका पर सुनवाई कर रहे जस्टिस ईश्वरन एस ने कहा, 'ऐसा नहीं माना जा सकता कि अनुकंपा नियुक्ति की योजना परिवार के सदस्यों को नियुक्ति के लिए बार-बार दावा करने की अनुमति देती है। यह याद रखा जाना चाहिए अनुकंपा नियुक्ति का तरीका नहीं, इसका उद्देश्य मृतक के परिवार को अभाव से बाहर लेकर आना है।' RPF में कॉन्स्टेबल रहे आर बालचंद्र पिल्लई का साल 2006 में निधन हो गया था। अब उनके बेटे की तरफ से याचिका दाखिल की गई है। यह बताया गया है कि साल 2006 में पत्नी की तरफ से आवेदन दिया गया था, जिसमें अनुकंपा के लिए बेटी का नाम आगे बढ़ाया गया था। बेटी ने न तो उस नियुक्ति का इस्तेमाल किया और न ही दावा छोड़ा।
इसके बाद साल 2012 में पत्नी की तरफ से एक और आवेदन दिया गया, जिसमें बेटे को अनुकंपा नियुक्ति के लिए नॉमिनेट किया गया था। साल 2014 में पत्नी ने बेटी को मिली पिछली नियुक्ति को रद्द कर बेटे को देने की बात कही थी। तब अधिकारियों ने अनुरोध अस्वीकर कर दिया था और कहा था कि साल 2016 में बेटे को अनुकंपा नियुक्ति पर विचार नहीं किया जा सकता। इसके बाद साल 2018 में एक रिट याचिका दाखिल हुई। याचिका के जवाब में अधिकारियों की तरफ से भी एक याचिका दाखिल की गई, जिसमें आरोप लगाए गए कि 2016 में पास आदेश के खिलाफ अदालत आने बेवजह देरी की है। साथ ही यह भी कहा गया कि बेटी अनुकंपा नियुक्ति के मौके दिए गए थे, जिनका उन्होंने इस्तेमाल नहीं किया।
कोर्ट ने भी 2016 के आदेश के खिलाफ 2018 में अदालत आने में देरी की बात कही। कोर्ट ने कहा कि रिट याचिका दाखिल करने अनुच्छेद 226 के तहत कोई समयसीमा नहीं होती, लेकिन कोर्ट हर मामले के तथ्यों के आधार पर विलंब पर विचार कर सकता है। अस्पष्ट देरी पर कोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया। इस दौरान अदालत ने खासतौर से नादिया डिस्ट्रिक्ट प्राइमरी स्कूल काउंसिल बनाम सृष्टिधर विश्वास के 2007 के मामले का जिक्र किया।
कोर्ट ने कहा कि पत्नी ने बेटे के बालिग होने का इंतजार किए बगैर पहले बेटी के नाम को आगे बढ़ाया। साथ ही कहा कि पत्नी ने बेटी को दिया नामांकन वापस नहीं लिया और न ही बेटी नियुक्ति पर दावा छोड़ा। कोर्ट ने साफ किया कि बेटे को अनुकंपा नियुक्ति देना अनुकंपा नियुक्ति को नियंत्रित करने वाले मूल सिद्धांतों का उल्लंघन होगा। साथ ङी कहा कि 2006 में मौत हुई थी और 18 सालों के बाद अदालत अधिकारियों को बेटे को अनुकंपा नियुक्ति देने का आदेश नहीं दे सकती।
कोर्ट ने साफ किया है कि अनुकंपा नियुक्ति सिर्फ नियमों के आधार पर की जानी चाहिए और अधिकार के तौर पर इसका दावा नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि बेटी की तरफ से नियुक्ति को नहीं स्वीकारना और दावा छोड़ने के लिए इच्छुक नहीं होना बेटे को अनुकंपा नियुक्ति के दावे से वंचित करता है।