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गवर्नरों को जनता नहीं चुनती : समय पर फैसले क्यों नहीं हो रहे, बिलों के लटकने पर सुप्रीम कोर्ट सख्त…

इम्पैक्ट डेस्क.

पंजाब सरकार के 7 बिलों को अटका कर रखने के आरोपों में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तल्ख टिप्पणी करते हुए गवर्नर से जवाब मांगा। अदालत ने कहा कि शुक्रवार तक आप बताएं की सरकार की ओर से दिए गए 7 विधेयकों पर अब तक आपने क्या ऐक्शन लिया है। इसके साथ ही चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि गवर्नरों को सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचने के बाद ही काम शुरू नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार और राज्यपालों को अपने विवाद आपसी चर्चा से ही निपटा लेने चाहिए। 

इसके अलावा बेंच ने कहा कि गवर्नरों को भले ही विधेयकों को वापस करने का अधिकार है, लेकिन वे उसे अटका कर नहीं बैठ सकते। बेंच ने कहा कि गवर्नर चुनी हुई सरकार जैसे नहीं हैं और उन्हें समय पर बिलों को मंजूरी देने या फिर वापस लौटाने पर फैसला लेना चाहिए। दरअसल पंजाब की आप सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसमें उसने गवर्नर बनवारी लाल पुरोहित पर आरोप लगाया है कि वह 7 विधेयकों पर फैसला नहीं ले रहे हैं, जो उन्हें मंजूरी के लिए भेजे गए थे। पंजाब सरकार ने कहा कि 4 विधेयक जून में भेजे गए थे, जबकि तीन मनी बिलों को सदन में लाने से पहले ही भेजा गया था।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा, ‘सभी गवर्नरों को इस पर विचार करना चाहिए। वे चुने हुए लोग नहीं होते। यहां तक कि मनी बिलों को रोकने के लिए तो एक समयसीमा है। आखिर सरकारों को सत्र आहूत करने की मंजूरी के लिए भी अदालत क्यों आना पड़ रहा है। ये ऐसे मामले हैं, जिन्हें सीएम और राज्यपाल को ही बैठकर निपटना लेना चाहिए।’ इस मामले में अगली सुनवाई अदालत में 10 नवंबर को होगी। तब तक गवर्नर को बताना होगा कि उन्होंने लंबित बिलों को लेकर अब तक क्या ऐक्शन लिया है। 

राज्यपाल को कोई बिल सरकार को वापस भेजने का भी अधिकार 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को कोई बिल सरकार को वापस भेजने का भी अधिकार है लेकिन मामला कोर्ट तक आने से पहले राज्यपालों को निर्णय लेना चाहिए। कोर्ट ने पंजाब में विधानसभा सत्र लगातार चालू रखने पर भी सवाल उठाए और कहा कि यह संविधान में दी गई व्यवस्था नहीं है। इस पर पंजाब के सॉलिसीटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राज्यपाल ने सभी 7 बिल पर फैसला ले लिया है। जल्द ही सरकार को इसकी जानकारी दे दी जाएगी। राज्य सरकार की दलील थी कि राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधेयकों को रोक नहीं सकते हैं और संविधान के अनुच्छेद-200 के तहत प्राप्त उनकी शक्तियां सीमित हैं।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के बाद राज्यपाल का यू-टर्न

पंजाब के राज्यपाल द्वारा पंजाब विधानसभा का सरकार द्वारा बुलाया गया विशेष सत्र
गैरकानूनी घोषित करने और बिलों को पारित न करने को लेकर पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाने के पंजाब सरकार के फैसले के बाद राज्यपाल का यू-टर्न सामने आया। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर सफाई दी थी कि वह पंजाब के हित में पंजाब सरकार द्वारा लाये जाने वाले बिलों पर विचार करने को तैयार हैं।