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उपचुनाव : रायपुर दक्षिण बृजमोहन के जिम्मे…

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दिवाकर मुक्तिबोध।

छत्तीसगढ की राजधानी रायपुर की दक्षिण विधान सभा सीट के लिए उपचुनाव की तारीख अभी घोषित नहीं हुई है किंतु राज्य में सत्तारूढ भाजपा व प्रमुख विपक्ष कांग्रेस की जिस तौर तरीके से तैयारियां चल रही हैं, उसे देखते हुए सहज कहा जा सकता है कि यह उपचुनाव सर्वाधिक संघर्षपूर्ण चुनावों में से एक होगा.

बीते वर्ष, 2023 में सम्पन्न हुए विधान सभा चुनाव में भाजपा ने अपनी परम्परागत सीट रायपुर दक्षिण से बेमिसाल जीत दर्ज की थी. बृजमोहन अग्रवाल ने कांग्रेस के महंत रामसुंदर दास को 67,719 वोटों से हराकर कीर्तिमान स्थापित किया था. इस सीट पर हुए पिछ्ले तमाम चुनावों में हार-जीत का इतना बड़ा फासला कभी नहीं रहा. चुनाव में भाजपा की बंपर जीत के बाद विष्णुदेव साय सरकार में बृजमोहन केबिनेट मंत्री बनाए गए

लेकिन चार माह बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने उन्हें रायपुर संसदीय सीट की टिकिट दे दी. बृजमोहन ने लोकसभा चुनाव में भी जीत का रिकॉर्ड स्थापित किया. उनके हाथों कांग्रेस के विकास उपाध्याय 5 लाख 75 हजार से अधिक वोटों से पराजित हुए थे. बृजमोहन के सांसद बनने से रिक्त हुई यह विधान सभा सीट अब भाजपा व कांग्रेस दोनों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है. कांग्रेस को खोने के लिए कुछ नहीं है, उसे पाना ही पाना है जबकि यहां अपनी जीत की लय को बनाए रखना भाजपा के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण है।

विशेषकर निजी तौर पर सांसद बृजमोहन अग्रवाल के लिए जो 2003 से 2023 तक अर्थात लगातार पांच विधान सभा चुनाव यहां से जीतते रहे हैं. वे कुल पांच बार के विधायक रहे हैं. हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक सवाल के जवाब में उन्होंने विनोदी स्वर में कहा कि रायपुर दक्षिण में वे ही चुनाव लड़ेंगे. इसका मतलब है कि वे इस उपचुनाव में वे पूरी ताकत लगाएंगे. इससे यह भी संकेत मिलता है उपचुनाव की बागडोर बृजमोहन के हाथों में रहेगी तथा पार्टी प्रत्याशी भी उनकी पसंद का होगा. यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि 15 वर्षों के रमन शासनकाल में जितने भी उपचुनाव हुए उनकी रणनीति व संचालन की कमान बृजमोहन को सौंपी गई थी. पार्टी ने उन पर जो भरोसा जताया था, उसमे वे खरे उतरे थे.

यह देखा गया है कि राज्य में होने वाले उपचुनावों के नतीजे सामान्यतः सत्तारूढ दल के पक्ष में जाते हैं. इस दृष्टि से भाजपा अतिरिक्त लाभ की स्थिति में है. अपवाद स्वरूप बाजी पलट जाए तो बात अलग है. कांग्रेस इसी कोशिश में है कि रायपुर दक्षिण विधान सभा क्षेत्र की स्थिति बदलनी चाहिए. इस एक सीट के बहाने उसके पास खुद को साबित करने का मौका है. इसलिए वह यह उपचुनाव पूरी शक्ति के साथ लड़ना चाहती और इसीके अनुरूप उसकी तैयारियां चल रही है. चूंकि राज्य में केवल इसी एक सीट पर उपचुनाव होने वाला है लिहाज़ा पूरे संगठन की ताकत व एकजुटता यहां नज़र आएंगी.

इसके साथ ही अधिक महत्वपूर्ण बात है कि पार्टी किसे टिकिट देगी ? इस जटिल सवाल पर मंथन का दौर जारी है. इस संदर्भ में कन्हैया अग्रवाल वह व्यक्ति है जिसके खिलाफ 2018 के विधान सभा चुनाव में बृजमोहन अग्रवाल केवल 17 हजार वोटों से जीत पाए थे जबकि नये चेहरे के रूप में कन्हैया अग्रवाल का वह पहला ही चुनाव था. जाहिर है, वे इस उपचुनाव में कांग्रेस की पहली पसंद हो सकते हैं.

हालांकि छत्तीसगढ के मध्यप्रदेश में रहते हुए एवं पृथक राज्य बनने के बाद बृजमोहन के खिलाफ जो भी कांग्रेसी लड़ा, वह हार गया. अब जब बृजमोहन अग्रवाल ने, उनके कहे अनुसार, दक्षिण का बीडा उठा लिया है तो भाजपा की टिकिट किसी को भी मिले, सारथी की तरह बृजमोहन उसके पीछे खड़े रहेंगे. यानी कांग्रेस की दिक्कतें बढ़ना तय है.

इस उपचुनाव में कुछ और बातें महत्वपूर्ण रहेंगी. मसलन पिछले आठ-दस महीनों में राज्य में आपराधिक घटनाएं बेतहाशा बढ़ी हैं, कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठे हैं, शासन-प्रशासन निष्प्रभावी है और इसके खिलाफ कांग्रेस ने जोरदार मोर्चा खोल रखा है. सवाल है क्या उसका प्रभाव दक्षिण के मतदाताओं पर पड़ेगा ? इस मुद्दे पर राजनीतिक माहौल गर्म है क्या उसकी तपिश चुनाव तिथि की घोषणा के बाद तक कायम रहेगी ? अथवा कौन से ऐसे कारण रहेंगे जिन पर मतदाता विचार करेंगे ? इस बारे में फिलहाल कुछ भी कहना मुश्किल है

लेकिन सामान्यत: मतदाता वोट करते समय यह देखता है कि प्रदेश में किस पार्टी की सरकार है. और वह उसके पक्ष में वोट करता है. चूंकि विष्णुदेव साय सरकार को सत्ता संभाले अभी दस माह ही हुए हैं अत: यह सोचना कठिन है कि रायपुर दक्षिण के मतदाता कोई उलटफेर करेंगे. यद्यपि सरकार के अब तक के कामकाज के आधार पर जनता के बीच यह संदेश चला गया है कि यह सरकार, ढीली सरकार है जिसका नौकरशाहों पर नियंत्रण नहीं है विशेषकर पुलिस-तंत्र पर, जो बेकाबू है तथा गैरजिम्मेदार ढ़ंग से व्यवहार कर रहा है.

एकमात्र यही मुद्दा है जो रायपुर दक्षिण के वोटरों को आंदोलित कर सकता है. कांग्रेस चुनाव तक इन सवालों को कितनी हवा दे सकती है, यह उसकी रणनीति और चुनाव प्रचार पर निर्भर है. उसे उन नेताओं को प्रचार से दूर रखना होगा जिन्होंने नवंबर 2023 के विधान सभा चुनाव में रायपुर दक्षिण से बृजमोहन की जीत बहुत आसान कर दी थी.

विशेषकर रायपुर नगर निगम के मेयर एजाज ढेबर के अभियान को वोटरों ने सख्त नापसन्द किया था. जिसकी वजह से वोटों का जबरदस्त ध्रुवीकरण हुआ. यदि कांग्रेस ने यह गलती दुबारा दुहराई तो यह माना जाना चाहिए कि बृजमोहन से पार पाना पहले भी मुश्किल था, इस बार भी मुश्किल रहेगा.

लेखक छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार/संपादक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।फ़ेसबुक वॉल से साभार