District Beejapur

बीजापुर की शिक्षा कथा : कागज़ों के स्कूल झोपड़ियों में चल रहे… सलवा जुड़ूम के बाद खोले गए स्कूल बदहाल हो रहे…

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गणेश मिश्रा। बीजापुर।

प्रदेश के मुख्यमंत्री और मंत्रियों को स्कूल शिक्षा की फोटोग्राफी और वीडियो ग्राफी की चकाचौंध दिखाकर किस तरह गुमराह किया जाता है अगर यह कला आपको सीखनी है तो एक बार बीजापुर जरूर आइये,यहाँ शिक्षा विभाग के कारनामे इतने हैं कि गिनाते गिनाते उंगलियां थक जाएगी।

सलवा जुडूम के दौरान बंद किए गए तकरीबन 350 स्कूलों में से करीब 290 से अधिक स्कूलों को खोल तो जरूर दिया गया है और इन स्कूलों को खोलकर जमकर वाह वाही भी लूटी गई, परंतु नवसंचालित स्कूलों की दुर्दशा क्या है यह तो उन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे और शिक्षक ही जानते, आज भी कई स्कूल झोपड़ियों में संचालित हो रहे हैं तो कई स्कूलों को तो झोपड़ी भी नसीब नहीं है।

आधे से अधिक स्कूलों में नियमित शिक्षकों की पोस्टिंग तक नहीं की गई है तो कहीं सिर्फ 12 वीं पासशिक्षा दूतों के भरोसे कई कक्षाएं संचालित की जा रही है।

दरअसल आज हम उस स्कूल की कहानी बताने जा रहे हैं जो 2005 से बंद बड़े 350 स्कूलों में से एक है और जब पुनः स्कूल संचालन का अभियान शुरू किया गया तो सबसे पहले इसी स्कूल का संचालन शुरू किया गया, यह दास्ताँ गंगालूर क्षेत्र के ग्राम पंचायत पदमुर की है।

यहां 2018-19 में बन्द पड़े स्कूल का पुनः संचालन किया गया और इस स्कूल की शुरुआत तकरीबन 76 बच्चों से की गई थी और उन्ही बच्चों में से आज तकरीबन 28 बच्चे छठवीं कक्षा में प्रवेश कर चुके हैं और इसी वर्ष पदमुर में माध्यमिक शाला की भी शुरुआत छठवीं के 28 बच्चों के साथ की गई थी।

विडंबना तो देखिए सरकार के सामने बेहतर शिक्षा व्यवस्था और बेहतर शिक्षा सुविधाओं का स्वांग रचने वाला बीजापुर शिक्षा विभाग पिछले पांच महीनों में माध्यमिक शाला पदमुर के लिए एक नियमित शिक्षक की भी व्यवस्था नहीं कर पाया है परिणाम स्वरूप एकमात्र शिक्षा दूत छठवीं कक्षा के 28 बच्चों के लिए सभी विषयों की क्लास ले रहा है।

बात स्कूल लगे या न लगे यहां पर बात सिर्फ शिक्षा व्यवस्था और जिम्मेदार विभाग प्रमुखों की उदासीनता और लापरवाही की हो रही है शिक्षा व्यवस्था से जुड़े इस दुर्भाग्यपूर्ण खबर को लोगों तक पहुंचाने के लिए मुझे उपनते नदी को पार कर तकरीबन 10 किलोमीटर (आना-जाना) का पैदल सफर तय करना पड़ा था तब जाकर यह सच्चाई बाहर आई।

पदमुर माध्यमिक शाला शिक्षा व्यवस्था के उदासीनता की भेंट चढ़ चुका है, वहां के ग्रामीण बताते हैं कि माध्यमिक शाला के शुरू होने के बाद स्कूल के लिए एक महिला शिक्षक की पोस्टिंग की गई थी परंतु महिला शिक्षक ने स्वास्थ्यगत कारणों से और उम्र दराज होने के कारण स्कूल ना पहुंच पाने की असमर्थता जताते हुए अन्य स्कूलों में अपनी पोस्टिंग करवा लिया। उसके बाद एक अन्य शिक्षक की पोस्टिंग की गई परंतु। वह शिक्षक राजनीतिक पहुंच वाला निकला और बस्तर सांसद के माध्यम से अधिकारी को फोन करवा कर उसने भी अपनी व्यवस्था बना ली।

अब उस पूरे माध्यमिक शाला और 28 बच्चों की जिम्मेदारी एकमात्र शिक्षा दूत पर है और शिक्षा दूत भी बेहद ईमानदारी के साथ रोजाना स्कूल जाकर 28 बच्चों को सभी विषयों की शिक्षा दे रहा है, यह भी बताया गया कि स्कूल में दो शिक्षा दूतों को नियुक्त किया गया था परंतु एक माह कार्य लेने के बाद जिला शिक्षा अधिकारी के मौखिक आदेश पर दूसरे शिक्षा दूत को हटा दिया गया।

जिसके चलते अब माध्यमिक शाला पदमुर एकल शिक्षक की नही बल्कि एकल शिक्षादूत की तर्ज पर चल रहा है ग्रामीणों की माने तो नए सत्र को शुरू हुए 5 महीने बीत चुके हैं। माध्यमिक शाला में अध्यनरत छठवीं के बच्चों के लिए आज तक बीजापुर शिक्षा विभाग पठन सामग्री उपलब्ध नहीं कर पाया। जिसके चलते शिक्षा दूत ने पोटाकेबिन से बच्चों के लिए पाठ्यपुस्तक उधारी मांग कर बच्चों की शिक्षा को आगे बढ़ा रहा है स्कूल के लिए फर्नीचर के अलावा शासन प्रशासन और शिक्षा विभाग अब तक कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करा पाई है।

सबसे बड़ी विडंबना तो देखिए की माध्यमिक शाला पदमुर के लिए ना तो अलग से भवन स्वीकृत किया गया है और ना ही उसके लिए कोई अलग व्यवस्था की गई है मजबूरन माध्यमिक शाला के छठवीं के बच्चों को प्राथमिक शाला पदमुर के उधारी के कमरों में पढ़ने को मजबूर होना पड़ रहा है और दूसरी ओर शिक्षा विभाग वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी की चकाचौंध दिखाकर सरकार को गुमराह करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है।

बीजापुर में शिक्षा व्यवस्था बेहतर और सुचारू ढंग से संचालित हो रहा है। परंतु इसकी जमीनी हकीकत तो यही है कि आज भी नव संचालित स्कूलों की स्थिति सुविधाओ के मामलों में जीरो है। शायद शिक्षा व्यवस्था की इस उदासीनता का खामियाजा देश की आने वाला पीढ़ी भुगते या ना भुगते पर इन कामचलाऊ व्यवस्थाओं को लेकर बच्चे और ग्रामीण शासन प्रशासन और सरकार को जरूर कोसते हुए नजर आ रहे हैं।

चार महीनों से नही मिला वेतन

दिवाली से पहले छत्तीसगढ़ सरकार भले ही सभी विभागों के अधिकारी कर्मचारियों को बोनस और तोहफा प्रदान कर रही है पर शायद सरकार को यह नहीं मालूम होगा या फिर अधिकारियों ने गुमराह कर रखा होगा की नव संचालित स्कूलों को सुचारू रूप से संचालित करने वाले शिक्षा दूतों को पिछले चार महीना से वेतन तक नहीं दिया गया है जबकि दिवाली ठीक सामने है और सभी विभागों को सरकार तोहफा और बोनस प्रदान कर रहा है क्या ऐसे में ईमानदारी से काम करने वाले शिक्षादूत अपने मेहनत का मेहताना या वेतन पाने के हकदार नहीं है?