तेलंगाना: कांग्रेस जीत की लय कायम रखने की कोशिश में, भाजपा व बीआरएस को बाजी पलटने की उम्मीद
हैदराबाद,
सत्तारूढ़ कांग्रेस, बीआरएस और भाजपा तेलंगाना में 13 मई को होने वाले लोकसभा चुनावों में प्रभावशाली प्रदर्शन करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, जिससे दक्षिणी राज्य में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है।राज्य में पिछले साल एक दशक के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ है।
राज्य में 2023 के विधानसभा चुनावों में अपनी जीत से उत्साहित कांग्रेस अच्छे प्रदर्शन को दोहराने के लिए उत्सुक है। राज्य में 10 वर्षों तक शासन के बाद भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) अब दलबदल से जूझते हुए बाजी पलटने के लिये कड़ी मेहनत कर रही है। पिछले विधानसभा चुनावों में सीटों और मत प्रतिशत के लिहाज से अपने बेहतर प्रदर्शन से उत्साहित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राज्य में अपनी चुनावी पैठ को मजबूत करने की कोशिश में है।
भाजपा और बीआरएस ने पहले ही राज्य की सभी 17 लोकसभा सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, वहीं कांग्रेस ने अब तक 14 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं।
लोकसभा चुनाव तीनों पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर बीआरएस के लिए जो पिछले साल नवंबर में हुए विधानसभा चुनावों में अप्रत्याशित हार के बाद अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है।यह चुनाव मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में अपनी जीत के बाद उस लय को बरकरार रखने की जरूरत है।
उत्तरी राज्यों में अपनी करारी हार की पृष्ठभूमि में, कांग्रेस को तेलंगाना से उसकी झोली में महत्वपूर्ण योगदान की उम्मीद है।
भाजपा के लिए कर्नाटक के बाद दक्षिण में तेलंगाना ही ऐसा राज्य है, जहां उसे अच्छी संख्या में सीटें जीतने की संभावना दिख रही है।
विधानसभा चुनावों में अपनी अप्रत्याशित हार के बाद, बीआरएस अब अपने पिछले शासन के दौरान फोन टैपिंग और भ्रष्टाचार के आरोपों में घिर गयी है। अब रद्द की जा चुकी दिल्ली की आबकारी नीति से जुड़े धनशोधन मामले में पार्टी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव की बेटी कविता की गिरफ्तारी ने उसकी मुसीबतें बढ़ा दी हैं।
फोन टैपिंग से जुड़े मामले के संबंध में अब तक चार पुलिस अधिकारी गिरफ्तार किए जा चुके हैं। भाजपा ने इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की है।
इन मुद्दों से संसदीय चुनावों में पार्टी की संभावना पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका है। इसके अलावा हाल में पार्टी के सांसदों व विधायकों समेत कई वरिष्ठ नेताओं के सत्ताधारी कांग्रेस या भाजपा का दामन थामने के कारण भी उसकी चुनौतियां बढ़ गई हैं।
बीआरएस के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी में श्रीहरि की बेटी कादियाम काव्या ने वारंगल लोकसभा क्षेत्र के लिए उनकी उम्मीदवारी की घोषणा के बाद इसे छोड़ दिया। वह अब इसी सीट से कांग्रेस की उम्मीदवार हैं।बीआरएस हालांकि अब एक बार फिर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है और पानी की कमी और खेती से जुड़े मुद्दे उठा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव भी ऐसे इलाकों का दौरा कर रहे हैं।
पार्टी के कुछ नेता तो पार्टी का पुराना नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) फिर से अपनाने की भी मांग कर रहे हैं।
बीआरएस ने 2019 के लोकसभा चुनावों में 17 में से नौ सीटों पर जीत हासिल की थी।इस बीच, विधानसभा चुनावों में अपनी जीत से उत्साहित कांग्रेस को अधिकतर सीटें जीतने की उम्मीद है। उसने 2019 में 17 लोकसभा सीटों में से तीन पर जीत हासिल की थी।
मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के आक्रामक प्रचार अभियान के साथ, पार्टी द्वारा जाति और अन्य प्रमुख कारकों के आधार पर उम्मीदवारों के चयन से उसको चुनाव में जीत हासिल करने में मदद की उम्मीद है।
इस बीच, भाजपा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार की उपलब्धियों और राम मंदिर निर्माण जैसे मुद्दों पर भरोसा कर रही है।पार्टी प्रवक्ता एन वी सुभाष ने कहा कि भाजपा अपने उम्मीदवारों की घोषणा करने वाली पहली पार्टी है जिन्होंने पहले ही प्रचार शुरू कर दिया है।
पार्टी ने पिछले चुनावों में राज्य में चार सीटों पर जीत हासिल की थी।
राजनीतिक विश्लेषक रामू सुरवज्जुला का मानना है कि कम से कम राज्य के कुछ हिस्सों में 'मोदी लहर' चरम पर है तथा माहौल भाजपा के पक्ष में है।उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के आरोप, कविता की गिरफ्तारी और फोन टैपिंग के आरोपों का बीआरएस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
दक्षिणी तेलंगाना में अपनी हालिया यात्रा का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि लोगों ने पार्टी विचारधारा की परवाह किए बिना आंतरिक सुरक्षा और संबंधित मुद्दों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।