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1980 का भी था, जब चुनाव महज 4 दिनों में ही संपन्न हो गए

नईदिल्ली
25 अक्टूबर 1951 और 21 फरवरी 1952, भारत के राजनीतिक इतिहास में इन दो तारीखों को याद रखना बेहद जरूरी है। दरअसल, ये चार महीने ही थे जिस दौरान देश पहले लोकसभा चुनाव का गवाह बना। हालांकि, देश हमेशा इतने लंबे चुनावी दौर से नहीं गुजरा। एक समय 1980 का भी था, जब चुनाव महज 4 दिनों में ही संपन्न हो गए। अब जब भारत 2024 में 18वीं लोकसभा चुनने की तैयारी कर रहा है, तो इतिहास के पन्ने पलटना भी अहम हो गया है।

2024 का चुनावी कार्यक्रम
भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने शनिवार को तारीखों का ऐलान किया। इसके तहत चुनाव 7 चरणों में होंगे, जिनका आगाज 19 अप्रैल से हो जाएगा और 1 जून तक जारी रहेगा। 4 जून को नतीजे घोषित किए जाएंगे। खास बात है कि यह भारत का दूसरा सबसे लंबा चुनाव है, जो 44 दिनों तक चलेगा।

देश का पहला और सबसे लंबा चुनाव
1951-52 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 364 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। वहीं, सीपीआई 16 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर थी। करीब 120 दिनों की अवधि के दौरान 489 सीटों पर 68 चरणों में चुनाव संपन्न हुआ था। कहा जाता है कि अधिकांश जनता के चुनाव प्रक्रिया से वाकिफ नहीं होने के चलते सितंबर 1951 में एक मॉक इलेक्शन भी कराया गया था।

क्या थी इतने लंबे चुनाव की वजह
25 राज्यों में फैली 401 संसदीय क्षेत्रों में लॉजिस्टिक्स से जुड़ी चुनौतियों और मौसम की वजह से पहला लोकसभा चुनाव करीब 4 महीनों तक चला। जब नतीजे घोषित हुए। माना जाता है कि भले ही चुनाव की प्रक्रिया 25 अक्टूबर से शुरू हो गई थी, लेकिन जनता ने जनवरी-फरवरी के दौरान वोटिंग में जनता ने सबसे ज्यादा हिस्सा लिया था।

जब महज 4 दिनों में ही हो गया चुनाव
1980 आते-आते भारत लगभग 6 आम चुनावों का अनुभव ले चुका था। फिर 7वीं लोकसभा चुनने के लिए जनवरी 1980 में भारत लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत तैयार हुआ। तब कांग्रेस ने 350 से ज्यादा सीटें जीतकर दर्ज की और जनता पार्टी का आंकड़ा 32 सीटों पर पहुंचा। बहरहाल, नतीजों से ज्यादा 80 दशक का वो चुनाव अवधि के कारण चर्चा में रहा।

2024 में क्यों है इतना लंबा चुनावी कार्यक्रम
इस बार निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा से लेकर मतगणना होने तक तक चुनाव प्रक्रिया कुल 82 दिनों में पूरी होगी। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने संवाददाता सम्मेलन में मतदान की इतनी लंबी अवधि के बारे पूछे जाने पर कहा कि चुनावों की तारीखें क्षेत्रों तथा सार्वजनिक अवकाश, त्योहारों एवं परीक्षाओं को ध्यान में रखकर तय की गई है।