कोर्ट इसके लिए सही मंच नहीं, लोग करें फैसला… समलैंगिक विवाह पर बोले कानून मंत्री…
इम्पैक्ट डेस्क.
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मामले में केंद्र इस विरोध में खड़ा है कि इसको लेकर कोर्ट को फैसला करना चाहिए। केंद्र सरकार का कहना है कि इस तरह के मामलों में जनप्रतिनिधियों को सहमति बनाकर फैसला लेना चाहिए। इस बात को लेकर केंद्र सुप्रीम कोर्ट में अड़ा हुआ है। इसी बीच बुधवार को कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि इस तरह के मामलों के लिए अदालतें सही मंच नहीं हैं।
बता दें कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि इस मामले को संसद पर छोड़ दिया जाए। किरण रिजिजू ने कहा, अगर पांच बुद्धिमान व्यक्ति किसी बात को लेकर फैसला करते हैं जो कि उनके मुताबिक सही है तो उनके खिलाफ कोई टिप्पणी तो नहीं की जा सकती। लेकिन अगर लोग किसी चीज को स्वीकार नहीं करते हैं तो यह उनपर जबरदस्ती थोपी नहीं जा सकती।
रिजिजू ने कहा, यह एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दा है। विवाह की संस्था के बारे में फैसला करने का अधिकार देश के लोगों के पास है। सुप्रीम कोर्ट कुछ दिशानिर्देश दे सकता है। अगर कोई बात रह जाती है तो उसको लेकर फैसला भी सुनाया जा सकता है लेकिन जब बात देश के सभी नागरिकों से जुड़ी हुई है तो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट सही मंच नहीं है। उन्होंने कहा, मैं इस मुद्दे को सरकार बनाम अदालत नहीं बनाना चाहता। लेकिन यहां सवाल लोगों की इच्छा की है।
उन्होंने कहा, संसद और विधानसाभाओं में लोगों के चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं। वहीं इसके बारे में चर्चा करवाई जा सकती है। सदस्य अपने इलाके के लोगों के विचारों को रख सकते हैं। संविधान जजों को चुने जाने की बात नहीं कहता। लेकिन हम सभी लोगों की इच्छा का सम्मान करते हैं। जजों को बदलने का भी कोई सिस्टम नहीं है और ना ही किसी जज की जिम्मेदारी तय करने का कोई सिस्टम है। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच में एक लक्ष्मणरेखा है। मोदी सरकार कभी उसको पार नहीं करती।
उन्होंने कहा, मोदी सरकार से पहले ऐसा किया जा चुका है। जजों का बड़ी संख्या में ट्रांसफर किया गया था। हालांकि इस सरकार में किसी के दायरे में नहीं जाया जाता। हम केवल संवैधानिक भूमिका का निर्वहन करते हैं। सभी जज भी हमारे साथ बहुत ही सहज रहते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि हमारे इरादे साफ हैं।