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मजहब बदलने पर भी दलितों से होता है भेदभाव… आंखें नहीं बंद कर सकते : SC जज…

इम्पैक्ट डेस्क.

मुसलमान और ईसाई बने दलितों को भी आरक्षण का लाभ दिए जाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को राजी हो गया है। शीर्ष अदालत इन याचिकाओं पर जुलाई से सुनवाई का फैसला लिया है। सिख और बौद्ध बने दलितों को लेकर भी यही मांग की गई है। बुधवार को इस मामले की विस्तार से सुनवाई हुई। इसी दौरान बेंच में शामिल जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने कहा कि मतांतरण के बाद भी सामाजिक भेदभाव जारी रह सकता है। ऐसे में हम संवैधानिक मामले को लेकर अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते। 

जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा, ‘धार्मिक और सामाजिक भेदभाव अलग-अलग चीजें हैं। मैं किसी अलग मकसद से दूसरे धर्म में जा सकता हूं। लेकिन उसके बाद भी यदि सामाजिक भेदभाव जारी रहता है तो फिर अनुसूचित जाति के आरक्षण की बात आती है। ऐसे में अदालत इस बात पर विचार क्यों नहीं कर सकती कि इन लोगों को अलग से आरक्षण दिया जाए या नहीं। जमीनी स्तर पर धर्मांतरण के बाद भी भेदभाव हो सकता है। इसलिए हम ऐसे जरूरी संवैधानिक मसले पर अपनी आंखें बंद नहीं रख सकते।’

वहीं केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे अडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट में सभी पहलुओं पर विचार नहीं किया गया था। जिसके आधार पर मतांतरित दलितों को भी आरक्षण देने की मांग हो रही है। इस पर जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा, ‘यह रिपोर्ट उतने भी अनमने ढंग से तैयार नहीं की गई है, जितना आप कह रहे हैं। आपको पूरी रिपोर्ट को एक बार फिर से पढ़ना चाहिए। आप उस रिपोर्ट के बारे में बेहद सामान्यीकरण वाला बयान दे रहे हैं।’ 

क्या है रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट, किस सरकार में बना

यूपीए सरकार के कार्यकाल में भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर स्टडी के लिए अक्टूबर 2004 में रंगनाथ मिश्रा आयोग का गठन किया था। पूर्व चीफ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा ने अपनी रिपोर्ट में मजहब बदलने के बाद भी दलितों के साथ भेदभाव की बात कही थी। उनका कहना था कि इन लोगों के कल्याण के लिए इन्हें भी दलित वर्ग को मिलने वाले आरक्षण में हिस्सा दिया जाना चाहिए।