हत्याओं से सामने आया जुडूम के दौर में मची हिंसा का मंजर, बीजापुर में एक माह के भीतर सर्वाधिक हत्याएं, बड़ा सवाल: नक्सलवाद पर अंकुश कब तक…?
गणेश मिश्रा. बीजापुर।
नक्सली नेता रमन्ना की मौत के बाद बस्तर से माओवादियों के पांव उखड़ने के कयास लगाए जा रहे थे। यह पुख्ता और भी हो गया था जब माओवादियों के थिंक टैंक के रूप में चर्चित गणपति के समर्पण की बात आई थी, हालांकि माओवादियों की तरफ से इसे खारिज किए जाने के बाद अटकलों पर विराम लग गया है।
रमन्ना की मौत से नक्सली वारदातों में कमी आने जैसे पुलिसिया दावा फेल हो गया है। बीते एक महीने के भीतर बीजापुर में नक्सली नरसंहार की जो भयावह तस्वीरें सामने आई हैं, उसने जुडूम के शुरूआती दौर की हिंसा के मंजर को फिर से सामने ला खड़ा कर दिया है।
एक महीने के भीतर बीजापुर में पुलिस, वन कर्मी समेत नक्सलियों 15 लोगों की नृषंस हत्या की है, यह आंकड़े पुलिसिया है, इससे अलहदा विष्वस्त सूत्रों के हवाले से जो आंकड़े मिले हैं हत्याएं 30 से अधिक हुई है।
कुटरू साप्ताहिक बाजार में सहायक आरक्षक की हत्या से शुरू हुआ सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। हत्याओं के पीछे माओवादियों की रणनीति क्या है, पुलिस इसे भी भांप नहीं पाई है। बीजापुर में बढ़ती नक्सली हत्याओं पर राज्य ही नहीं बल्कि केंद्र भी संज्ञान लेने विवश है।
राज्य के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने अपने बयान में हत्याओं के लिए नक्सलियों की बौखलाहट और पतन को कारण बताया है, जबकि पुलिस खुफिया तंत्र इसके पीछे आपसी विष्वासघात को भी वजह मान रही है। हालांकि नक्सलियों की तरफ से हत्याओं के बाद पुलिस मुखबिरी का आरोप लगाए जा रहे हैं।
बहरहाल लगातार बढ़ती घटनाओं से बीजापुर में जुडूम का हिंसक दौर वापस लौटता दिख रहा है। चूंकि हत्याओं से संबंधित इलाकों में नक्सलियों के खिलाफ व्यापक जनाक्रोश पनपने की बातें भी सामने आ रही हैं। ऐसे में नक्सलियों के कोहराम के खिलाफ जनता मुखर होती है तो यह बस्तर में निष्चित तौर पर जुडूम दो की उत्पत्ति के कारण माने जाएंगे।
आंकड़ों पर नजर डाले तो जुडूम के शुरूआती दौर में जितनी हत्याएं हुई हैं, वर्षों बाद माओवादी पुरानी हिंसा की नीति पर बढ़ते दिख रहे हैं। पुलिस के मुताबिक माओवादियों ने महज मुखबिरी के नाम पर 294 ग्रामीणों की हत्या की है। वर्ष 2005 में सलवा जुडूम की शुरूआत के बाद ग्रामीणों का बड़ा हिस्सा सरकार द्वारा बसाए गए राहत शिविरों में आकर रहने लगा।
एक हिस्सा गांव छोड़कर पलायन कर गया या माओवादियों की शरण में चला गया। वर्ष 2005 से जुलाई 2020 तक पुलिस मुखबिरी के शक में नक्सलियों के हाथों मारे गए ग्रामीणों के आंकड़ों पर नजर डाले तो 14 साल में कुल 294 ग्रामीणों की हत्या की गई है। राहत षिविरों में रहने वाले ग्रामीणों को भी सलवा जुडूम कार्यकर्ता बताकर 272 ग्रामीणों की हत्या की गई।
मुखबिरी का आरोप लगाकर पांच ठेकेदारों को भी मौत के घाट उतारा गया। वर्ष 2006 में तीन, 2007 में 19, 2008 में 43, 2009 में 39, 2010 में 53, 2011 में 37, 2012 में 20, 2013 में 10, 2014 में 15, 2015 में 12, 2016 मंे 11, 2017 में छह, 2018 में 10, 2019 में नौ और 2020 में जुलाई माह तक सात ग्रामीणों की हत्या शामिल है।