यह महज पाठ्य पुस्तक निगम का मसला नहीं बल्कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार का मवाद है जो अब बह रहा है…
- मुद्दा / सुरेश महापात्र।
छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम के महाप्रबंधक अशोक चतुर्वेदी के आरोप पत्र के जवाब में कई पत्र मेरे वाट्स एप पर भेजे गए हैं। जिनके अध्ययन से एक बात तो तय है कि मसला महज थोड़ा बहुत अहं की लड़ाई का नहीं है बल्कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल में 15 बरस तक निगम मंडल की आड़ में भ्रष्टाचार का जो खेल होता रहा उसका मवाद बह रहा है।
वर्तमान कांग्रेस सरकार ने फिलहाल सभी निगम मंडलों को सीधे मंत्रियों के अधीन दे रखा है। इससे यह कहना सही नहीं होगा कि भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा। बल्कि कुछ इस तरह के तथ्य भी सामने आए हैं कि भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुके निगमों का सिस्टम ही ऐसा हो चुका है जो धारा के विपरित बहेगा वह बदनाम भी होगा और धारा से बाहर भी हो जाएगा।
पापुनि के महाप्रबंधक अशोक चतुर्वेदी की कहानी का मजमून कुछ ऐसा ही बयां करता दिख रहा है। जरा सोचिए कि क्या केवल एक व्यक्ति के इशारे पर पूरी सरकार एक के बाद एक गलत कदम उठा सकती है। यह तभी संभव है जब इस गलत कदम का हिस्सा आदि से अंत तक बराबर बंटता रहा हो। भ्रष्टाचार की पहली शर्त यही है कि यदि आप लाभान्वित हैं तो आपको उसकी आड़ में होने वाली गड़बड़ियों पर मुंह खोलने का अधिकार ही नहीं है।
BIG BREAKING : पाठ्य पुस्तक निगम में छपाई के खेल पर महाप्रबंधक का संगीन आरोप पत्र… यानी गफलत में बड़े—बड़े नाम शामिल…
अशोक चतुर्वेदी से सीजी इम्पेक्ट ने बात की और उनका भी पक्ष लिया। उनसे उन पर लगाए गए इल्जाम पर भी सीधी बात की। वह फिर कभी पर जो आरोप उन पर लगाए गए हैं उसकी इबारत पेश करना भी पत्रकारिता का ही धर्म है। इस इबारत को प्रस्तुत करते हुए मुझे यह महसूस हुआ कि पाठकों को यह भी बताया जाना उचित होगा कि पाठ्य पुस्तक निगम छत्तीसगढ़ शासन के शिक्षा विभाग के अधीन आता है जिसके पूर्व अध्यक्ष देवजी भाई पटेल थे और शिक्षा मंत्री के तौर पर बस्तर के केदार कश्यप।
वर्तमान में शिक्षा मंत्री डा. प्रेमसाय सिंह के पास निगम का दायित्व है। बीते करीब डेढ़ बरस से आईएएस गौरव द्विवेदी के पास इस निगम का दायित्व है। पहले वे केवल शिक्षा विभाग के तहत ही काम देखते थे अब वे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के भी करीबी हैं।
अशोक चतुर्वेदी की नियुक्ति देवजी भाई पटेल ने अपने समय में करवाई। यानि वे उनके विश्वस्त रहे। जब अशोक चतुर्वेदी ने काम संभाला तब वहां सुभाष मिश्रा जो अब सेवा निवृत्त हो चुके हैं वे वहां का काम देखते थे। सुभाष मिश्रा के दौर में जिस तरह से प्रिंटर्स का काम चलता था उसी तरह की उम्मीद अशोक चतुर्वेदी से भी होने लगी।
निश्चित तौर पर कुछ प्रिंटर्स चतुर्वेदी के करीबी हुए और कुछ के साथ अहं का टकराव शुरू हुआ। प्रिंटर्स के नाम इसलिए नहीं दिए जा रहे ताकि किसी भी प्रकार के विवाद में किसी संस्थान के नाम को जबरन घसीटे जाने का आरोप ना लगे। क्योंकि संस्थान का काम नियमों के मुताबिक काम करना होता है।
बात यहीं से शुरू हुई कि अशोक चतुर्वेदी ने महाप्रबंधक निुयक्त होने के बाद पाठ्य पुस्तक निगम में अपने तरीके से काम करना शुरू किया। इन पर कुछ संस्थाओं को नियम के विरुद्ध ज्यादा काम देने और नियम के विपरित कई काम करने के आरोप लगाए गए हैं। जिसे लेकर विवाद खड़ा होना शुरू हुआ।
छत्तीसगढ़ में सरकार बदलने के बाद जैसे ही मंत्री के पद पर डा. प्रेमसाय सिंह की ताजपोशी हुई उसके बाद एक इनोवा वाहन को गिफ्ट करने का आरोप चतुर्वेदी पर लगाया गया है। यह कितना सही है या गलत इसकी पुष्टि तो नहीं की जा सकती पर पूरे निगम में इस बात की जानकारी सभी को है।
आईएएस गौरव द्विवेदी के सहयोग और समर्थन के बगैर पाठ्य पुस्तक निगम के महाप्रबंधक अशोक चतुर्वेदी अपने दम पर कोई बड़ा कदम उठाने में सक्षम होते यह मानना भी कठिन है। यानी जो भी कदम उठाए गए उसमें कमोबेश श्री द्विवेदी की सहमति तो रही ही होगी।
निगम का पूरा मामला तब बिगड़ा जब प्रिंटिंग के व्यापार में सत्ता का साथ पाने वाले कुछ मजबूत लोगों के साथ अशोक चतुर्वेदी की अनबन शुरू हुई। मामला छापा मारने से लेकर बदनाम करने के बाद सीधे अहं की लड़ाई से जुड़ गया। इसके बाद पाठ्य पुस्तक निगम के अंदर खाने की हर बात बाहर आ गई। यहां तक की अशोक चतुर्वेदी के साथ आर्थिक गठजोड़ के मामले भी सुर्खियां बटोरने लगे। विधान सभा चुनाव के समय अन्य बेनामी किस्म के स्त्रोतों से पैसे निकालकर खर्च करने और संपत्ति अर्जित करने का आरोप भी लगा।
इस संबंध में खुर्सीपार थाने में दर्ज शिकायतों की कापी भी सीजी इम्पेक्ट को प्राप्त हुई है। गुरूवार को पूरे दिन रायपुर का खाक छानने के बाद कई तथ्य सामने आए जिसके अनुसार अशोक चतुर्वेदी के संबंध में प्रिंटर्स और प्रशासनिक तंत्र में दो धाराओं की बात सामने आ सकी है।
प्रिंटर्स का एक धड़ा अशोक चतुर्वेदी को सही मानता है और अपने ही प्रिंटर्स साथियों को इस पूरे मामले को जबरन हल्ला मचाने के लिए दोषी भी मानता है। कुछ फर्जी प्रिंटर्स का जिक्र भी किया गया। जिसके बारे में यह दावा किया गया कि ये संस्थाएं स्वयं चतुर्वेदी ने अपने लाभ के लिए बनवाई। यानी पूरा का पूरा मसला भ्रष्टाचार के फोड़े का मवाद बनकर बह रहा है। इस मामले में संलिप्तता को देखें तो मंत्री, अफसर, नेता, व्यापारी और पत्रकार सब शामिल हैं।
रही बात प्रशासनिक कार्रवाई की तो अगर बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हो रही थीं तो इसके लिए महाप्रबंधक अशोक चतुर्वेदी पर सीधी कार्रवाई क्यों नहीं की गई? यानी सत्ता की सहमति के बगैर ये खेल अकेले अशोक चतुर्वेदी नहीं खेल रहे थे।
अशोक चतर्वेदी ने इतना ही कहा कि ‘मैं कर्म को मानता हूं। मैंने पूरे सिस्टम में सही करने की कोशिश की तो गलत करने वालों को बुरा लगा। वे मुझे बदनाम करने के लिए जो कदम उठाए उससे मुझे लगा कि मुझे पूरे मामले की जांच के लिए स्वयं कहना चाहिए। यही मैंने किया है।’ चतुर्वेदी ने कहा कि ‘2005 से लेकर 2019—20 तक के पूरे कार्यकाल की विधिवत जांच की मांग मैंने की है।’
अब सवाल केवल किसी एक निगम में मचे घमासान का नहीं है बल्कि शासन के तहत निगम व मंडलों में किए जाने वाले भ्रष्टाचार का है। राज्य सरकार के कई निगमों में अपनी नियुक्ति के लिए जोर आजमाईश करने वाले नेताओं की प्राथमिकता बंदरबांट होने वाली इकाईयों में ज्यादा होती है। इन्हीं में से एक गृह निर्माण मंडल भी है। छत्तीसगढ़ की नई सरकार को चाहिए कि वह सभी निगम व मंडलों की पूरे 15 साल की जांच करवाए। इसके लिए महालेखाकार की टिप्पणियों का अध्ययन करे। जिन बिंदुओं पर महालेखाकार ने अपनी आपत्ति लगाई थी जिसे दबा दिया गया है केवल उन्हीं बिदुओं पर भी जांच कर दोषियों का पता लगाया जा सकता है।