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CG में #DEO ही बना दिए गए वेंडर… करोड़ों का खेला करने का खेल… केंद्रीय मद के सारे नियमों से परे बंदरबाट का जुगाड़…

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इम्पेक्ट एक्सक्लूसिव। रायपुर।

छत्तीसगढ़ में शिक्षा विभाग ने भारी पैमाने में आर्थिक अनियमितता का आदेश जारी कर दिया है। इस आदेश के माध्यम से अब प्रदेश के डीईओ वेंडर यानी भुगतान प्राप्त करने वाले हो गए हैं और दो—तीन फर्मों को राज्य स्तर से ठेका बिना टेंडर कोटेशन के आधार पर देकर करोड़ों का खेला करने की जुगत है। इसके लिए केंद्रीय मद के उपयोग के सारे नियमों को ताक पर रख दिया गया है।

कोविड के दौरान पूरे देश में बच्चों की शिक्षा में पड़े बुरे प्रभाव को परखने और उसके उपचार के लिए केंद्र सरकार ने रेमिडिएल फंड रिलीज किया। छत्तीसगढ़ में यह राशि करीब 100 करोड़ रुपए है। इस राशि के माध्यम से पहले बेस लाइन सर्वे की प्रक्रिया पूरी की जानी थी। इसके बाद स्कूल स्तर पर उपचारात्मक यानी अतिरिक्त ट्यूशन देकर बच्चों की परीक्षा लेना और उससे बच्चों की शिक्षा का स्तर सुधारने की प्रक्रिया का पालन करना है।

इस काम के लिए केंद्रीय शिक्षा मद से करीब 100 करोड़ रुपए का आबंटन छत्तीसगढ़ को प्राप्त हुआ है। इस राशि के व्यय के लिए ताना—बाना बुनने की कवायद में ही करीब दो माह निकल गए। अब समग्र शिक्षा ने परीक्षा की गोपनियता को आधार बनाकर सीधे बड़ी राशि का खेला करने की कवायद कर ली है। मजेदार बात तो यह है कि जब अफसरों को गड़बड़ी को लेकर शिकायत की भनक लगी तो आनन—फानन में बेक डेट से कई संशोधन आदेश जारी किए गए। इम्पेक्ट ने इस मामले को लेकर कई लोगों से चर्चा की है। जिसमें वे साफ कह रहे हैं कि बड़े पैमाने में अपने मन मुताबिक काम करने के लिए जिलों में जूनियरों को डीईओ बनाया गया। ताकि वे दबाव में आकर काम कर सकें।

इस काम में केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया की अनदेखी की गई है। जिसके तहत राज्य के किसी एक बैंक को पीएमएफसी के माध्यम से पीपीए जारी कर भुगतान किया जाना है। इसके तहत सभी जिले में समग्र शिक्षा का बैंक खाता संचालित है। जिससे राशि के भुगतान के लिए निर्धारित प्रक्रिया में जिला कलेक्टर और जिला पंचायत सीईओ के संयुक्त खाते से भुगतान किया जाना होता है। इस संबंध में केंद्र सरकार के एक अधिकारी ने साफ कहा कि ‘विभागीय अधिकारी को किसी भी स्थिति में वेंडर नहीं बनाया जा सकता।’

उच्च अधिकारी नहीं चाहते थे कि यह फाइल कलेक्टरों के माध्यम से भुगतान के लिए जाए। इसके लिए बाइपास का सहारा लिया गया। एक अधिकारी ने इम्पेक्ट से चर्चा में साफ कहा ​कि ‘इसके लिए उपर से प्रेशर का बहाना बनाया गया!’ उपर से तात्पर्य पूछने पर उन्होंने साफ किया कि आप समझ रहे हैं कौन?

मजेदार बात तो यह है कि छत्तीसगढ़ शासन के स्कूल शिक्षा विभाग ने 5 अगस्त 2021 को एक आदेश जारी किया। जिसके तहत बैंक आफ बड़ौदा में पीएफएमएस मैंपिंग के तहत जीरो बैलेंस अकाउंट खोला जाना था। इस पत्र को छत्तीसगढ़ शासन के वित्त विभाग के 22 जून 2021 के पत्र क्रमांक 245 के सं​दर्भ में जारी किया गया था। यह पत्र जिला मिशन समन्वयक जो पदेन ​जिला कलेक्टर होते हैं के नाम पर स्कूल शिक्षा विभाग के 31 जुलाई 2021 के पत्र के संदर्भ में जारी किया गया था। उल्लेखनीय है कि यह पत्र केंद्र सरकार द्वारा जारी केंद्रीय मद की राशि के व्यय के संदर्भ में जारी की गई गाइड लाइन पर आधारित है।

केंद्र सरकार ने केंद्रीय मद की राशि का स्कूल शिक्षा विभाग में व्यय के लिए एक पारदर्शी गाइड लाइन जारी किया था। जिससे राशि में भ्रष्टाचार को पूरी तरह खत्म किया जा सके। इसका उद्देश्य साफ था कि किसी भी पद और संस्था के पास देखने में तो जीरो बैलेंस अकाउंट ही होगा पर इसके माध्यम से सीधे राशि वेंडर के खाते में यानी पीपीए यानी पेमेंट प्रिंट एडवाइस के तहत ट्रांसफर किया जा सकेगा।

इस व्यवस्था से किसी भी धनराशि के व्यय में बिचौलिए को खत्म किया जा सकेगा। इसके तहत जिस संस्था के लिए राशि जारी की गई है सीधे उसकी उपयोगिता के आधार पर उस संस्था के स्थानीय वेंडर को राशि ट्रांसफर की जा सकेगी।

देखिए आदेश की प्रति

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इसमें साफ है कि जिला कार्यालय हेतु कलेक्टर और​ जिला पंचायत सीईओ के संयुक्त नाम पर ब्लाक स्तर पर बीईओ और बीआरसी, संकुल स्तर पर संकुल प्रचार्य और संकुल समन्वयक, शाला स्तर पर शाला प्रबंधन समिति के सचिव के तौर पर प्रधान पाठक और शिक्षक कोषाध्यक्ष के तौर पर संयुक्त खातेदार बनाए गए हैं। इनके नाम पर पूरे प्रदेश के सभी संस्थाओं के जीरो बैलेंस अकाउंट बैंक आफ बडौदा में खोल लिए गए हैं।

अब रेमेडियल मामले को लेकर समग्र शिक्षा ने पूरी व्यवस्था को डीईओ यानी जिला शिक्षा अधिकारी के तौर पर केंद्रीत कर दिया है। इससे राज्य स्तर पर पीपीए यानी पेमेंट प्रिंट एवाइस जारी कर डीईओ को वेंडर बता दिया गया है। इससे सीधे डीईओ के माध्यम से राशि समग्र शिक्षा के माध्यम से उन सप्लायरों को करोड़ों का भुगतान कर दिया जाएगा। जिनके माध्यम से काम करवाया गया है। यदि जिला स्तर पर कलेक्टर जो पदेन जिला मिशन संचालक हैं और जिला पंचायत सीईओ के संयुक्त बैंक आफ बडौदा के जीरो बैलेंस अकाउंट से पीपीए जारी किया जाता तो संभवत: यह वित्तीय अनुशासन हीनता के दायरे में नहीं आता।

छत्तीसगढ़ के 29 जिलों के नाम से बीते 15 सितंबर को आदेश जारी किया गया। जिसमें रे​मेडियल योजना के तहत कार्य पूरा करने की प्रक्रिया के साथ समस्त जानकारी दे दी गई। इसमें क्रियान्वयन संबंधित विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए गए। इस पत्र के 8 वें क्रमांक में समग्र शिक्षा के प्रबंध संचालक ने साफ कहा है कि राशि भुगतान के लिए भंडार क्रय नियमों का पालन और सभी पक्षों के भुगतान के लिए तृतीय पक्ष मूल्यांकन पश्चात निर्धारित राशि किश्तों में प्रदान किया जाए।
इसी तरह का एक पत्र कक्षा नवमीं से 12वीं के विद्यार्थियों के लिए रेमेडियल योजना के क्रियान्वयन को लेकर भी जारी किया गया है।

आदेश की कॉपी को देखें

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आखिर क्या वजह है कि अपने ही आदेश के विपरित जाकर समग्र शिक्षा ने राज्य कार्यालय से ही समस्त प्रक्रियाओं के संचालन का दायित्व पूरा कर लिया। सबसे बड़ी बात तो यह है कि दिशा निर्देशों के पत्र की प्रति और स्वीकृत राशि के विरुद्ध जारी किए गए प्रथम किस्त का ब्यौरा जिसमें बेस लाइन टेस्ट, प्रश्नपत्र मुद्रण, एंड लाइन टेस्ट, प्रश्नपत्र मुद्रण व उत्तरपुस्तिका की जांच आदि व अन्य सभी व्यय की जानकारी दी गई है। इसकी प्रति जिला मिशन संचालक यानी कलेक्टर, जिला शिक्षा अधिकारी व जिला मिशन समन्वयक को दी गई है।

देखें प्रशासकीय एवं वित्तीय स्वीकृति आदेश की प्रति

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क्या कहते हैं आंकड़े

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अब बात आती है आंकड़ों की तो समग्र शिक्षा विभाग ने बहुत ही चतुराई के साथ केंद्रीय मद की राशि के आंकड़े को छोटा बताने का गहराई के साथ जतन किया। ताकि यदि किसी एक जिले की किसी एक हिस्से के आबंटन स्वीकृति का पत्र लीक भी हो जाए तो ज्यादा फर्क ना पड़े। इसके लिए सबसे पहले कक्षा छठवीं से कक्षा बारहवीं के छात्रों का ब्यौरा दो हिस्सों में बांट दिया। राशि करोड़ों में है जिसे छोटा बताने के लिए लाखों में दर्शाया गया। मसलन देखिए कक्षा छठवीं से आठवीं तक के लिए स्वीकृत राशि 41 करोड़ 32 लाख 86200 रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की गई है। कक्षा नवमीं से 12वीं तक की राशि 51 करोड़ 96 लाख 45 हजार पांच सौ रुपए यानी कुल 93 करोड़ 28 लाख रुपए केंद्रीय मद से प्राप्त हुए हैं।

इस मामले को लेकर इम्पेक्ट ने जिला शिक्षा अधिकारियों से चर्चा की तो उन्होंने साफ कहा कि उन्हें इस संबंध में किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं है। जो कुछ भी हो रहा है वह राज्य कार्यालय के माध्यम से किया जा रहा है।

वहीं कुछ जिला कलेक्टरों ने इस बात की जानकारी होने से पूरी तरह अ​नभिज्ञता जताई कि रेमेडियल प्रोसेस को लेकर अब तक कोई फाइल उन तक नहीं पहुंची है।

क्या कहते हैं समग्र शिक्षा के प्रबंध संचालक

समग्र शिक्षा के प्रबंध संचालक नरेंद्र दुग्गा ने इस मामले को लेकर कहा था कि किसी भी प्रकार की वित्तीय नियमों की अनदेखी नहीं की जा रही है। जो कुछ किया जा रहा है वह छत्तीसगढ़ शासन के गाईड लाइन के अनुरूप ही है। उन्होंने कहा कि जिस प्रक्रिया से भुगतान की व्यवस्था की गई है उसी तरीके से पूर्व में भी भुगतान किया गया। खबर के संबंध में एक प्रश्नावली उन्हें वाट्सएप पर भेजी गई जिसका जवाब फिलहाल अप्राप्त है।

इस प्रक्रिया से जो सवाल उठ रहे हैं

1. क्या योजना अंतर्गत एसएनए में जिला शिक्षा अधिकारी को वेंडर बनाया जा सकता है।

2. यदि हां तो योजना में रेमेडियल हेतु राशि जिला शिक्षा अधिकारी को दिया गया है।

3. यदि नही तो इस संबंध में क्या कार्यवाही किया जायेगा।

4. यदि हां तो एलिमेंट्री और सेकेंडरी हेतु अलग क्रियान्वन क्यों किया जा रहा है।

5. क्या इस राशि एवं कार्यक्रम के विषय में कलेक्टर से कोई स्वीकृति जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा लिया जाना चाहिए या नहीं।

6. योजना में जिला कलेक्टर एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी के अनुमोदन से कार्यवाही होती है ।

7. क्या यह कार्यक्रम किसी विशेष स्वीकृति के तहत प्राप्त हुई है जिसमे इस कार्यक्रम का अनुमोदन कलेक्टर से नही लिया जाना है।

8. क्या इसके लिए शासन से विभागीय सचिव/विभागीय मंत्री से अनुमोदन प्राप्त किया गया है।

9. क्या यह कार्यक्रम में किसी व्यक्ति/किसी फर्म को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया।

इस संबंध में मुख्यमंत्री के एक करीबी ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा ‘सीएम हाउस से किसी भी अफसर को किसी भी तरह के काम के लिए ना तो कहा जा रहा है ना ही इसके लिए किसी को संदेश वाहक नियुक्त किया गया है। उल्टे सीएम सचिवालय के अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि ‘यदि इस तरह की कोई शिकायत है तो सीधे एसीबी को सूचना दी जाए। ऐसे किसी भी मामले की जांच में यदि कोई भी अधिकारी दोषी पाया जाता है तो उसके विरूद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी।’

इस संबंध में मुख्य सचिव कार्यालय से जानकारी लेने की कोशिश की गई पर उनसे ​फिलहाल संपर्क स्थापित नहीं हो सकता है।