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कब शुरू हुई होलिका दहन की प्रथा? भक्त प्रह्लाद, हिरण्यकश्यप और होलिका से जुड़ी हुई है पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में होली का त्योहार विशेष महत्व रखता है। इस दिन लोग एकजुट होकर खुशियां मनाते हैं। एक दूसरे को प्यार के रंगों में डुबोकर अपनी खुशी जाहिर करते हैं। रंगों का ये त्योहार पारंपरिक रूप से दो दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन होलिका जलाई जाती है, जिसे होलिका दहन कहते हैं। वहीं दूसरे दिन लोग एक-दूसरे को रंग और अबीर-गुलाल लगाकर होली का त्योहार मनाते हैं। इस बार होली का त्योहार 25 मार्च को है। वहीं आज यानी 24 मार्च को रात्रि के समय होलिका दहन की जाएगी। होलिका दहन की कहानी विष्णु भक्त प्रह्लाद, हिरण्यकश्यप और होलिका से जुड़ी हुई है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप कठिन तपस्या करने के बाद ब्रह्माजी के द्वारा मिले वरदान से खुद को ही ईश्वर मानने लगा था। वह अपने राज्य में सभी से अपनी पूजा करने को कहता था। उसने वरदान के रूप में ऐसी शक्तियां प्राप्त कर ली थी कि कोई भी प्राणी, कहीं भी, किसी भी समय उसे मार नहीं सकता था। किसी भी जीव-जंतु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य से अवध्य, न रात में न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर, न बाहर। कोई अस्त्र-शस्त्र भी उस पर असर न कर पाए।

हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का घोर विरोधी था। उसके यहां प्रह्लाद नाम के पुत्र जन्म हुआ। प्रह्लाद जन्म से भगवान विष्णु के परम भक्त थे। भक्त प्रह्लाद हमेशा भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहा करते थे। पिता हिरण्यकश्यप भक्त प्रह्लाद की विष्णु उपासना से हमेशा क्रोधित रहते थे और बार-बार समझाने के बावजूद प्रह्लाद विष्णुजी की आराधना नहीं छोड़ी। इसके बाद पिता हिरण्यकश्यप अपने पुत्र को मरवाने की हर कोशिश की, लेकिन भक्त प्रह्लाद विष्णु भक्ति के कारण हर बार बच जाते। अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन और भक्त प्रह्लाद की बुआ होलिका को अपने पुत्र को मारने का आदेश दिया। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को एक वरदान प्राप्त था, जिसमें वह कभी भी आग से नहीं जल सकती थी। इस मिले वरदान का लाभ उठाने के लिए हिरण्यकश्यप ने बहन से प्रह्राद को गोद में लेकर आग में बैठने का आदेश दिया, ताकि आग में जलकर प्रह्लाद की मृत्यु हो जाए और वरदान के अनुसार होलिका बच जाए।

अपने भाई के आदेश का पालन करते हुए होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई, लेकिन तब भी प्रह्लाद भगवान विष्णु के नाम का जप करते रहे और भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए, लेकिन होलिका उस आग में जलकर मर गई। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रूप में हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है और इसके अगले दिन होली खेली जाती है।