Samaj

उत्तराखंड में एक नहीं कुल पांच हैं केदारनाथ मंदिर, कहलाते हैं ‘पंचकेदार’, सभी से जुड़ी हैं रोचक मान्यताएं

इन दिनों उत्तराखंड में चार धाम यात्रा चल रही है। इन चार धामों में केदारनाथ भी एक है। केदारनाथ के आस-पास और भी कईं प्राचीन मंदिर हैं। इन्हीं में पंच केदार भी हैं। ये सभी मंदिर शिवजी को समर्पित हैं।

इन चार धामों में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनौत्री आते हैं। इनके अलावा इस यात्रा में और भी कईं प्राचीन मंदिर देखे जा सकते हैं। पंचकेदार भी इनमें शामिल है। पंचकेदार केदारनाथ सहित अन्य 4 मंदिरों का एक समूह है। इन सभी से अलग-अलग मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं। आगे जानिए पंचकेदार में कौन-कौन से मंदिर शामिल हैं…

केदारनाथ धाम

ये मंदिर पंचकेदार में सबसे प्रमुख है और उत्तराखंड के 4 धाम में शामिल है। 12 ज्योतिर्लिंगो में भी इसका स्थान है। ये मंदिर उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। मान्यता है कि यहां जो शिवलिंग स्थापित है, उसकी स्थापना द्वापरयुग में पांडवों ने की थी। बाद में आदि गुरु शंकराचार्य ने इसा जीर्णोद्धार करवाया। इस मंदिर से जुड़ी कईं मान्यताएं इसे और भी खास बनाती हैं।

तुंगनाथ मंदिर

पंचकेदार में दूसरा है तुंगनाथ मंदिर, ये रुद्रप्रयाग जिले में है। पंच केदार में ये मंदिर सबसे ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर में भगवान शिव के हृदय और भुजाओं की पूजा की जाती है। ये मंदिर केदारनाथ और बद्रीनाथ के बीच में स्थित है। इस मंदिर का इतिहास भी महाभारत काल से जुड़ा हुआ है।

कल्पेश्वर मंदिर

ये मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर में शिवजी की जटाओं की पूजा की जाती है। ये पंचकेदार में अंतिम है। पूरे साल में कभी भी इस मंदिर में दर्शन के लिए भक्त पहुंच सकते हैं। इसका निर्माण पत्थरों से किया गया है। यहां तक पहुंचने के लिए कईं गुफाओं से होकर गुजरना पड़ता है।

मध्यमहेश्वर मंदिर

ये मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में है। यहां शिवजी की नाभि की पूजा करने की परंपरा है। ये मंदिर लगभग 3500 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे पहले गौरीकुंड पहुंचना पड़ता है। गौरीकुंड से करीब 16 किमी की सीधी चढ़ाई है, जो आपको सीधे यहां तक पहुंचाती है।

रुद्रनाथ मंदिर

केदारनाथ और तुंगनाथ के बाद रुद्रनाथ को पंच केदार का तीसरा मंदिर है। ये खूबसूरत रोडोडेंड्रोन के जंगलों से घिरा हुआ है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस क्षेत्र की रक्षा वन देवी वंदेवी करती हैं, इसलिए यहां सबसे पहले उन्हीं की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह ये वो जगह है जहां पांडवों को बैल के रूप में शिव का चेहरा दिखाई दिया था। 2,286 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मंदिर में शिव की पूजा नीलकंठ के रूप में की जाती है। मंदिर से आप नंदा देवी, नाडा घुंटी और त्रिशूल चोटियों के शानदार नजारे देख सकते हैं। ट्रेक सागर नाम के एक गांव से शुरू होता है जो गोपेश्वर से लगभग 3 किमी की दूरी पर स्थित है। यह काफी कठिन ट्रेक माना जाता है, लेकिन फिर भी, शिव के भक्त हर साल यहां जरूर आते हैं।