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“भोपालपट्टनम” में आजादी से पूर्व रखी जा चुकी थी शिक्षा व्यवस्था की नींव, 1947 तक भोपालपटनम मिडिल स्कूल को “एव्हीएम” स्कूल के नाम से जाना जाता था (अतीत के पन्नों से)

“बस्तर संभाग के वरिष्ठ पत्रकार एस करीमुद्दीन ने अपने यादों के झरोखे से बीते बस्तर की तस्वीर बताई है…  जिसे सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत किया गया है” 

मद्देड़ एवं भोपालपटनम क्षेत्र में शिक्षा व्यवस्था आजादी के काफी पूर्व से ही संचालित रही है जिसमें वर्ष 1930 के पूर्व से ही मद्देड़, भोपालपटनम एवं बासागुड़ा में प्राथमिक शालाएं संचालित थी. तथा भोपालपटनम में मिडिल स्कूल भी था वर्ष 1947 तक भोपालपटनम मिडिल स्कूल को ए.व्ही.एम.(एैंग्लो वर्नाक्युलर मिडिल) स्कूल के नाम से जाना जाता था. जब वर्ष 1948 में वहां आठवी कक्षा की पढ़ाई प्रारंभ की गई तब उस स्कूल को आई.ई.एम. (इंडियन इंगलिश मिडिल स्कूल) कहा जाने लगा. उस अवधि में आठवी पास करने के बाद प्रायमरी शिक्षक के रूप में नियुक्ति किये जाने का प्रावधान रहा है.
वहां पर जमींदारी शाला भवन था जहां प्रायमरी एवं मिडिल दोनों कक्षाएं लगती थीं. बाद में जमींनदार राज महल में कक्षाएं लगने लगीं यह क्रम करीब 75 साल तक चलता रहा बाद में विभागीय भवन बनने के उपरान्त कक्षाएं वहां लगने लगी. उस काल में बच्चे दूर-दूर से पढ़ने के लिए स्कूल तक पैदल चल कर पहुंचा करते थे यहां तक कि गोल्लागुड़ा तक के विद्यार्थी पढ़ने पैदल आते थे. बताया जाता है कि भोपालपटनम एवं मद्देड में स्कूल 1802 में खुले थे. तथा बासागुड़ा मंे 1929 से स्कूल शुरू हुआ. उस काल में श्री कृष्णापाभ्बोई भोपालपटनम के जमींदार हुआ करते थे. सन् 1990 में सेवा निवृत हुए प्रार्चाय श्री लम्बाड़ी किस्टैया जिनका जन्म फरवरी 1930 में हुआ था, ने 1937 से 1949 तक इसी शाला से शिक्षा ग्रहण की थी. इस क्षेत्र की शिक्षा व्यवस्था से संबंधित उपरोक्त जानकारी की पुष्टि करते हुए श्री किस्टैया ने आगे बताया कि भोपालपटनम एवं मद्देड में स्वास्थ्य केन्द्र की सुविधा 1940 के पूर्व से ही थी वहां पर बच्चों को रहकर पढ़ाई करने के लिए एक जनरल हॉस्टल भी था.
जगदलपुर से भोपालपटनम तक एक सकरी सड़क थी इसके रास्ते में पड़ने वाले पुल-पुलिया सभी लकड़ी से बने हुए थे. वहां 1940 से पहले ही वनविभाग, तहसील, लोकनिर्माण विभाग तथा शिक्षा विभाग आदि के कार्यालय मुख्य रूप से संचालित थे. श्री किस्टैया के अनुसार भोपालपटनम स्कूल मंे सीमावर्ती महाराष्ट्र से भी बच्चे आकर पढ़ाई करते थे और अब 1957 से वहां पर हायर सेकेण्डरी स्कूल संचालित है.
किस्टैया यह भी बताते हैं कि उनके विद्यार्थी जीवन में पांचवी, छठवी, सातवी कक्षाओं में दो-तीन लड़कियां भी पढ़ा करती थीं. परन्तु उस दौरान शासकीय अधिकारी एवं कर्मचारियों की बच्चियां ही पढ़ती थी. स्थानीय निवासी, किसान आदि अपनी लड़कियों को शाला भेजना पसंद नही करते थे. तब आवाजाही के लिए लोग अमूमन पैदल ही चला करते थे. अथवा बैलगाड़ी का आश्रय लिया करते थे पूरे क्षेत्र में सायकिल, मोटरसाइकिल आदि एकाध ही थे. दयानंद सर्विस के नाम से एक मात्र बस जगदलपुर से भोपालपटनम के बीच 1952 से शुरू हुई़ थी, उससे पहले लोग जगदलपुर तक बैलगाड़ी से पांच छह दिनों में पहुंचा करते थे एवं जगदलपुर में इन्द्रावती नदी के पास पुराने पुल से लगी अमराई में डेरा डाला करते थे. इस लम्बी यात्रा के दौरान कई बार कई स्थानांे पर यात्रियों को हिरण, बंदर, नीलगाय, सुअर, भालू आदि जानवर दिखाई दे जाते थे और संयोग से कभी-कभी पटनम रूद्रारम के बीच गौर एवं शेर भी लोगों को दिखा करते थे. श्री किस्टैया यह भी बताते है कि व्यापारी अक्सर दुग्गा गुडेम, भद्राचलम के पास (आन्ध्र) सिरोंचा (महाराष्ट्र) से सामान लाकर बेचा करते थे. इस क्षेत्र में डाक पहुचाने हेतु हलकारे काम करते थे.
सन् 1948 में महात्मागांधी के निधन का समाचार, भोपालपटनम के तत्कालीन तहसीलदार श्री भन्डारकर के पास एक मात्र बैटरी रेडियो था, उसी से क्षेत्र के लोगों ने सुना और जाना था.

लेखक बस्तर संभाग के वरिष्ठ पत्रकार है..

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