भूपेश—सिंहदेव के फाइनल का डिसिजन आ गया मान लें या पेंडिंग समझें…!
- सुरेश महापात्र।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के जन्मदिन पर पूरे प्रदेश में जश्न का प्रदर्शन दरअसल उस शक्ति प्रदर्शन का हिस्सा था जिससे सीएम दिल्ली में आलाकमान को संदेश देना चाहते थे। जब तक मुख्यमंत्री लोकप्रिय हो और जनता उनके साथ हो तब तक आलाकमान चाहकर भी उस लाइन को छोटी या विलोपित नहीं कर सकता। यह तथ्य सीएम भूपेश अच्छे से जानते हैं।
यदि इसे शब्दों में कहा जाए तो इसे राजनीति ही कहते हैं। राजनीति में अपने प्रतिद्वंदी को छोटा दिखाने के लिए यह सबसे अचूक तरीका भी है। जिसे सधे हुए तरीके से भूपेश ने अमलीजामा पहनाया।
राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व से लेकर विश्वास के संकट से जुझती कांग्रेस के लिए यह दौर बेहद चुनौतिपूर्ण है। जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है वहां भी सब कुछ सामान्य नही है। पंजाब, राजस्थान के बाद छत्तीसगढ़ में यह साफ दिखाई दे रहा है। तमाम विवाद कांग्रेस को नई मुसीबत में डालते दिख रहे हैं।
आने वाले समय में उत्तरप्रदेश समेत 7 राज्यों में केंद्रीय सत्ता के लिए सेमीफाइनल जैसी स्थिति है। ऐसे में हाईकमान किसी भी स्तर पर नहीं चाहेगा कि राज्यों में ऐसी स्थिति बनी रहे जिससे उसकी छवि को नुकसान पहुंचे। यह बात भूपेश बेहतर जान व समझ रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में सीएम पद को लेकर तीन बयान बेहद महत्वपूर्ण हैं पहला जिसे स्वयं टीएस सिंहदेव ने मीडिया में आई ढाई साल वाली बात को लेकर दिया था जिसमें उन्होंने कहा कि ‘ऐसी कोई बात नहीं है, जो बातें मीडिया में आ रही हैं वह मीडिया की उपज हैं।’
दूसरा बयान विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत ने दिया ‘हम चार लोग सेमीफाइनल में थे… अब दो के बीच फाइनल है।’
तीसरा बयान दिल्ली से लौटकर सीएम भूपेश बघेल ने दिया ‘जो लोग ढाई साल वाली बात कह रहे थे उसका जवाब पीएल पुनिया ने दे दिया है…’
यह पूरे प्रदेश को पता है कि छत्तीसगढ़ में भारी बहुमत मिलने के बाद जिन चार नामों को सीएम पद के लिए लिस्टेड किया गया था उनमें ताम्रध्वज साहू, चरणदास महंत, भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव शामिल थे। हाईकमान के साथ बैठकों के कई दौर के बाद राहुल गांधी के साथ अंतिम तस्वीर में एक ओर टीएस सिंहदेव और दूसरी ओर भूपेश बघेल खड़े थे।
उसके बाद भूपेश बघेल के सीएम बनने के बाद से ही यह चर्चा रही कि भूपेश और टीएस के बीच मैच टाई हुआ है। दोनों को ढाई—ढाई साल के लिए मौका मिलेगा।
सही मायने में यह राजनीतिक द्वंद फाइनल स्टेज में है। जहां से प्रदेश के लिए हाईकमान को स्पष्ट निर्णय लेना मजबूरी है। अब तक की कवायद से साफ दिखाई दे रहा है कि फाइनल में भूपेश ने बाजी मार ली है। पर टीएस बाबा के हाथ क्या आएगा अब यह देखना ही शेष है।
इसमें कहीं कोई शंका नहीं बची है कि छत्तीसगढ़ में सीएम भूपेश और मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच अनबन जैसी स्थिति है। विधायक बृहस्पति सिंह और मंत्री अमरजीत भगत के माध्यम से यह साफ दिखाई दे गया है कि राजनीतिक लड़ाई में टीएस सिंहदेव का कद नापने की कोशिश हो रही है। साथ ही सत्ता के अंदरखाने में भूपेश और सिंहदेव के वैचारिक अंतरविरोध योजनाओं की घोषणा के बाद भी सतह पर हैं।
सच्चाई यह है कि टीएस सिंहदेव राजनैतिक व्यक्ति हैं पर शालीनता और सौम्यता उनकी खासियत है। भूपेश खांटी राजनैतिक व्यक्ति हैं उनके लिए शालीनता की भी सीमा तय है। यही वजह है कि भाजपा के 15 बरस के कार्यकाल के बाद सत्ता संभालने के दौरान उनके फैसले पूर्ववर्ती सरकार की बखिया उधेड़ते दिखाई देते हैं।
14 सीटों में सिमटी भाजपा को भी पता है कि भूपेश की आक्रामक राजनीति के सामने उनके प्रपोगंडा राजनीति की बिसात स्थाई नहीं हो सकती। सदन से लेकर सड़क तक भूपेश की आक्रमकता ही उनकी असली ताकत है। भूपेश की इस ताकत के सामने टीएस सिंहदेव बेहद कमजोर हैं। टीएस बाबा की शालीनता ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है।
विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद जब सीएम के नाम पर विचार चल रहा था तब भी यह बात बाहर आई थी कि भाजपा की पहली पसंद टीएस सिंहदेव ही थे। शायद यह भी एक तथ्य है जिससे टीएस सिंहदेव को अंतिम दौड़ में पिछड़ने की नौबत आई।
हालिया घटनाक्रम के बाद कांग्रेसी नेताओं ने चर्चा में भी यही कहा कि प्रदेश में भाजपा की आक्रामक राजनीति से पार पाने के लिए भूपेश जैसे नेतृत्व की ही दरकार है।
ऐसे में हाईकमान ने यदि शुरूआत में संतुलन के लिए ढाई बरस का झुनझुना टीएस सिंहदेव का थमाया था तो भी अब प्रदेश में ऐसे हालात नहीं है कि टीएस को सीएम की कुर्सी सौंपी जा सके। इसके पीछे साफ है कि राजनीति में मुंडी गिनी जाती है जिसमें बाजी भूपेश के हाथ है।
भाजपा के पास इतनी भी सीटें नहीं है कि टीएस सिंहदेव चाहें तो उनके आसरे तख्तापलट कर सकें। पर भाजपा टीएस के प्रति संवेदना जताकर उनके प्रभाव क्षेत्र में भूपेश के खिलाफ माहौल बनाने का अवसर तलाशने में जुटी है।
इसके उलट भूपेश अपनी राजनीति में क्षेत्रीय संतुलन के लिए जिले गढ़े जा रहे हैं। ताकि सरकार छोटे—छोटे जिले बनाकार अपनी शक्ति का केंद्रीकरण मजबूती के साथ कर सके। केंद्र सरकार जिले के आधार पर केंद्रीय मद का निर्धारण करता है। इससे सरकार को विकास योजनाओं को पहुंचाने और सरकार परिवर्तन का लाभ साफ दिखाकर संदेश देने में सहूलियत होगी।
खैर इन सब बातों से इतर… दिल्ली के हालिया घटनाक्रम के बाद यह तो दिखाने की कोशिश चल रही है कि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री का कोई दूसरा चेहरा नहीं दिखेगा। बहरहाल लोग यह जानने की कोशिश में हैं कि भूपेश—सिंहदेव के फाइनल का डिसिजन आ गया मान लें या पेंडिंग समझें…