नक्सली इलाकों में CRPF कर्मियों को राहत : अब नहीं करना पड़ेगा एयर एंबुलेंस का इंतजार… रात में हेलीपैड पर उतरेंगे हेलीकॉप्टर…
इंपैक्ट डेस्क.
नक्सल प्रभावित क्षेत्र, जहां घने जंगल हैं और पथरीला रास्ता है, वहां पर विशेष ऑपरेशन, मुठभेड़ या आईईडी ब्लास्ट में घायल हुए सीआरपीएफ व अन्य बलों के योद्धाओं को एयर एंबुलेंस के लिए इंतजार नहीं करना पड़ेगा। अब ऐसे हेलीपैड बनाए जा रहे हैं, जहां पर रात के समय भी हेलीकॉप्टर उतर सकता है। वहां पर रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। अब छत्तीसगढ़ में 13, झारखंड में 3 और ओडिशा में 4 हैलीपैड मौजूद हैं। इनमें कई तरह के बदलाव किए गए हैं।
नई भर्तियों में नक्सलियों को मुश्किलें
देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’ की नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भारी तैनाती है। सीआरपीएफ की इकाई ‘कोबरा’ भी नक्सलियों की उपस्थिति वाले इलाकों में बड़े ऑपरेशनों को अंजाम देती है। अब यह बल स्थानीय पुलिस को साथ लेकर नक्सलियों पर चारों तरफ से घेरा डाल रहा है। नए कैंप बनाए जा रहे हैं। पिछले दो वर्षों के दौरान सीआरपीएफ ने नक्सलियों के ठिकाने की राह पर दर्जनभर से अधिक नए कैंप तैयार किए हैं, इससे नक्सली बौखला उठे हैं। उनकी सप्लाई चेन को भी सीआरपीएफ ने काफी हद तक बाधित किया है। नक्सलियों के सामने नई भर्ती का संकट खड़ा हो गया है। हर सप्ताह नक्सली, सरेंडर कर रहे हैं।
अभी तक सीआरपीएफ व दूसरे बलों के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह आ रही थी कि किसी ऑपरेशन में जब कोई अधिकारी या जवान घायल हो जाता है, तो उसे समय पर एयर एंबुलेंस की सुविधा नहीं मिल पाती। इसकी वजह यह बताई जाती है कि रात होने या धुंध में हेलीकॉप्टर वहां नहीं उतर सकता। एयर एंबुलेंस के समय पर न पहुंचने का खामियाजा सीआरपीएफ के कई योद्धाओं को उठाना पड़ा है। पिछले दिनों ‘सीआरपीएफ कोबरा’ के सहायक कमांडेंट वैभव विभोर, नक्सलियों के आईईडी हमले में बुरी तरह जख्मी हो गए थे।
औरंगाबाद ‘बिहार’ के मदनपुर थाना क्षेत्र में विभोर के अलावा हवलदार सुरेंद्र कुमार भी घायल हुए थे। जिस वक्त जंगल में सीआरपीएफ का ऑपरेशन’ चल रहा था, वहां आसपास के किसी भी बेस पर हेलीकॉप्टर मौजूद नहीं था। गया तक पहुंचने के लिए घायलों को एंबुलेंस में चार घंटे का सफर करना पड़ा। जब ये एंबुलेंस गया पहुंची तो रात को हेलीकॉप्टर की उड़ान को मंजूरी नहीं मिली। ऐसे में घायलों को 19 घंटे बाद दिल्ली एम्स में लाया गया। नतीजा, सहायक कमांडेंट विभोर ने अपनी दोनों टांगें खो दीं। एक हाथ की दो अंगुलियां भी काटनी पड़ीं।
बल के डीजी ने खुद को बताया था जिम्मेदार!
सीआरपीएफ दिवस पर जब इसे लेकर डीजी कुलदीप सिंह से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, इस कष्टदायक घटना के लिए मैं खुद को जिम्मेदार मानता हूं। उन्होंने कहा, इस मामले में कई दूसरे पक्ष भी हैं। हेलीकॉप्टर देरी से क्यों आया, वहां पर क्यों नहीं खड़ा था, बीएसएफ की तरह सीआरपीएफ के पास अपनी एयरविंग क्यों नहीं है। डीजी ने कहा, हमें मालूम है, कई बार प्रेक्टिली असुविधा होती है। किसी एक का फॉल्ट है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। चॉपर कहां से आता है, ये भी देखना होता है। बीएसएफ का चॉपर है, एयरफोर्स का है, इसके लिए नोडल अफसर लगाए गए हैं। इनका काम सामंजस्य बनाना है। उसके बाद सीआरपीएफ के लिए नक्सली इलाकों में मॉडर्न हेलीपैड बनाने का काम शुरू हुआ था। पुराने हैलीपैड की हालत भी सुधारी गई है।
सीआरपीएफ के एक अधिकारी के मुताबिक, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नए हेलीपैड बनाने पर काम चल रहा है। छत्तीसगढ़ में अब 13 हेलीपैड ऐसे हैं, जहां पर दिन ढलने के बाद भी चॉपर उतर सकता है। बरसात या धुंध के मौसम में भी चॉपर को हेलीपैड पर सब साफ दिखाई देगा। वहां प्रकाश की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। इसके अलावा सुरक्षा की दृष्टि से भी कई नए कदम उठाए गए हैं। उक्त अधिकारी ने सुरक्षा कारणों से नए कदमों का खुलासा नहीं किया। उनका कहना था कि झारखंड में अभी तीन हेलीपैड्स पर रात के समय भी चॉपर उतर सकता है। आने वाले दिनों में ऑपरेशन एरिया के मद्देनजर नए हेलीपैड तैयार किए जाएंगे।
बल के पूर्व अफसरों का कहना था कि सीएपीएफ में समन्वय की भारी कमी है। खुद की एयरविंग होती तो इस तरह की दिक्कतें नहीं आती। जब किसी क्षेत्र में ऑपरेशन चल रहा है, तो एक हेलीकॉप्टर वहां के बेस कैंप पर तैयार रहना चाहिए। खुद का हेलीकॉप्टर नहीं है तो उसके आने में देरी हो जाती है। उसके बाद ऐसी कंडिशंस लगने लगती हैं कि हम वहां लैंड करेंगे, वहां नहीं करेंगे। कभी हेलीकॉप्टर समय पर नहीं आता, तो कभी एटीसी की मंजूरी नहीं मिलती। इसके चलते घायल जवान को समय पर इलाज नहीं मिल पाता। नतीजा, उन्हें अपने शरीर का कोई अंग खोना पड़ता है, या फिर कई बार वे जान से भी हाथ धो बैठते हैं।