National News

CAA कानून पर भड़का पाकिस्तान, अमेरिका को भी लगी मिर्ची

नई दिल्ली

नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए को लागू करने का नोटिफिकेशन जारी होने के बाद अब ये देशभर में लागू हो गया है. विपक्ष सीएए के खिलाफ विरोध का बिगुल बजाए हुए है. लेकिन इस बीच पाकिस्तान ने भी सीएए को लेकर बयान दिया है.

पाकिस्तान ने सीएए को भेदभावपूर्ण बताते हुए कहा है कि यह कानून धर्म के आधार पर लोगों को बांटने वाला है. पाकिस्तान ने बकायदा बयान जारी कर कहा है कि इस कानून से भारत के मुस्लिमों को डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि सीएए से उनकी नागरिकता पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलोच ने कहा कि ये स्पष्ट है कि सीएए और इसके नियम भेदभावकारी हैं  क्योंकि ये धर्म के नाम पर लोगों को बांटने वाले हैं.

उन्होंने कहा कि ये नियम गलत धारणा पर आधारित हैं, जिनमें माना जाता है कि मुस्लिम देशों में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न किया जा रहा है और भारत अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षित पनाहगाह है. मुमताज ने कहा कि सीएए की आलोचना करते हुए पाकिस्तान की संसद में 16 दिसंबर 2019 को भी एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था, जिसमें सीएए को समानता के अंतर्राष्ट्रीय नियमों के खिलाफ बताया था.

उन्होंने कहा कि हमारा मानना है कि भारत के भीतर अल्पसंख्यकों को निशाना नहीं बनाया जाएगा और सरकार इस दिशा में कदम उठाएगी.

सीएए पर अमेरिका ने क्या कहा?

भारत में सीएए का नोटिफिकेशन जारी के होने के बाद अमेरिका ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी है. अमेरिका ने कहा है कि वह सीएए के नोटिफिकेशन को लेकर चिंतित है और इस पर नजर रखे हुए है.

अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा कि भारत ने 11 मार्च को नागरिकता संशोधन विधेयक का नोटिफिकेशन जारी किया, जिसे लेकर हम चिंतित हैं. हम इस पर करीब से नजर रखे हुए हैं कि इस कानून को किस तरह से लागू किया जाएगा. धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान और कानून के तहत सभी समुदायों के साथ समान व्यवहार मूलभूत लोकतांत्रिक सिद्धांत हैं.

क्या है CAA?

नागरिकता संशोधन बिल पहली बार 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था. यहां से तो ये पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में अटक गया. बाद में इसे संसदीय समिति के पास भेजा गया. और फिर चुनाव आ गए.

दोबारा चुनाव के बाद नई सरकार बनी, इसलिए दिसंबर 2019 में इसे लोकसभा में फिर पेश किया गया. इस बार ये बिल लोकसभा और राज्यसभा, दोनों जगह से पास हो गया. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद 10 जनवरी 2020 से ये कानून बन गया था.

नागरिकता संशोधन कानून के जरिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी धर्म से जुड़े शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगा. कानून के मुताबिक, जो लोग 31 दिसंबर 2014 से पहले आकर भारत में बस गए थे, उन्हें ही नागरिकता दी जाएगी.

CAA का विरोध क्यों?

नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की सबसे बड़ी वजह यही है. विरोध करने वाले इस कानून को एंटी-मुस्लिम बताते हैं. उनका कहना है कि जब नागरिकता देनी है तो उसे धर्म के आधार पर क्यों दिया जा रहा है? इसमें मुस्लिमों को शामिल क्यों नहीं किया जा रहा?

इस पर सरकार का तर्क है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान इस्लामिक देश हैं और यहां पर गैर-मुस्लिमों को धर्म के आधार पर सताया जाता है, प्रताड़ित किया जाता है. इसी कारण गैर-मुस्लिम यहां से भागकर भारत आए हैं. इसलिए गैर-मुस्लिमों को ही इसमें शामिल किया गया है.

कानूनन भारत की नागरिकता के लिए कम से कम 11 साल तक देश में रहना जरूरी है. लेकिन, नागरिकता संशोधन कानून में इन तीन देशों के गैर-मुस्लिमों को 11 साल की बजाय 6 साल रहने पर ही नागरिकता दे दी जाएगी. बाकी दूसरे देशों के लोगों को 11 साल का वक्त भारत में गुजारना होगा, भले ही फिर वो किसी भी धर्म के हों.