एक मंत्री बस्तर से… एक रायपुर से… आधा दर्जन नामों की चर्चा!
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इम्पेक्ट न्यूज। रायपुर।
छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के बाद कद्दावर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का इस्तीफा स्वीकृत होने के बाद अब दो मंत्री की शपथ का इंतजार हो रहा है। भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व हमेशा से चौंकाता रहा है। ऐसे में यह कयास लगाना कठिन है कि किसे विष्णु मंत्री मंडल में स्थान हासिल होगा और वे सांय—सांय काम कर सकेंगे। मुख्यमंत्री ने शनिवार को राज्यपाल से करीब पौन घंटे तक मुलाकात की। अंदर में जो भी बातें हुई हों पर बाहर आकर उनका यह कहना कि ‘छत्तीसगढ़ में खेती किसानी को लेकर चर्चा हुई…’ यह कई तरह के संकेत दे रहा है।
दरअसल छत्तीसगढ़ में 2023 में विधानसभा चुनाव के बाद सीएम फेस के लिए जिस तरह से भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने चौंकाया उसके बाद कोई भी बाहर एक शब्द भी नहीं बोलता। बृजमोहन की अनिच्छा के बावजूद उन्हें रायपुर से सांसद के लिए टिकट देकर प्रदेश की राजनीति से उनका टिकट काट दिया गया। वे छह माह तक मंत्री पद पर बने रहना चाहते थे पर विधायकी से त्यागपत्र के दो दिन बाद उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा! उनके त्यागपत्र के बाद बाहरखाने कोई भी मंत्री कुछ भी कहने से बच रहा था।
उपमुख्यमंत्री अरूण साव ने मीडिया के सवाल पर जब यह कह दिया ‘फिलहाज उनके त्यागपत्र की मंजूरी को लेकर विचार चल रहा है।’ इसके बाद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने ट्वीट किया कि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का त्यागपत्र मंजूर कर लिया गया है। यह बहुत कुछ सांकेतिक ही है।
फिलहाल बृजमोहन अग्रवाल से सारे विभाग मुख्यमंत्री के अधीन ही रखे गए हैं। ऐसे में जो भी नया चेहरा मंत्रीमंडल का हिस्सा बनेगा उसके लिए सारी संभावनाएं खुली हुई हैं। मंत्रियों के गणित को यदि देखा जाए तो यह साफ दिखाई दे रहा है कि विष्णुदेव साय के मंत्रिमंडल में बस्तर और रायपुर संभाग से एक—एक को स्थान मिल सकता है।
अब सवाल यह है कि छत्तीसगढ़ में मौजूदा मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के बाद रामविचार नेताम, केदार कश्यप, दयालदास बघेल ही वरिष्ठ मंत्री हैं। शेष छह में दो उपमुख्यमंत्री अरूण साव और विजय शर्मा, कैबिनेट मंत्री लखनलाल देवांगन, ओपी चौधरी, टंकराम वर्मा और श्रीमती लक्ष्मी रजवाड़े पहली बार मंत्री बने हैं। क्षेत्रीय संतुलन के हिसाब से देखा जाए तो बस्तर के हिस्से एक मंत्री पद और होना चाहिए। बस्तर में विक्रम उसेंडी और सुश्री लता उसेंडी दोनों पहले भी मंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा शेष में सभी नए विधायक हैं।
लोकसभा चुनाव के परिणाम को यदि देखा जाए तो बस्तर लोकसभा में सर्वाधिक लीड जगदलपुर विधायक किरण देव के नाम दर्ज हुई है। यहां से करीब 36 हजार मतों की लीड भाजपा को हासिल हुई है। इसके अलावा बस्तर लोकसभा के कोंटा विधानसभा क्षेत्र में जहां से कांग्रेस के प्रत्याशी कवासी लखमा विधायक हैं वह इलाका भी किरण सिंह देव जन्म व कर्म स्थल के ही हिस्से में आता है। यहां भी भाजपा को पहली बार बढ़त हासिल हुई है। इससे सटे दंतेवाड़ा विधानसभा में भी भाजपा को करीब 13 हजार मतों की बढ़त हासिल हुई है। इसके अलावा यदि देखा जाए तो केदार कश्यप, लता उसेंडी के प्रभाव क्षेत्र में लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली बढ़त विधानसभा के मुकाबले काफी कम है।
पूर्व में बस्तर लोकसभा क्षेत्र से कोंडागांव विधायक सुश्री लता उसेंडी और नारायणपुर विधायक केदार कश्यप को एक साथ मंत्री पद हासिल हुआ था। बस्तर में इस तरह के संकेत हैं कि अब सुश्री लता उसेंडी को भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त कर एडजस्ट किया जा चुका है। तो कांकेर इलाके से विक्रम उसेंडी की संभावनाएं समाप्त नहीं हुई हैं। यहां कांकेर और केशकाल दोनों विधानसभा से नए चेहरों को जीत हासिल हुई है। सो इनकी संभावनाएं कम ही हैं।
बस्तर की राजनीति में राजपरिवार का महत्व और भी बढ़ा हुआ दिखाई दे रहा है। मौजूदा विजयी सांसद महेश कश्यप और चित्रकोट विधायक विनायक गोयल राजपरिवार से करीबी संबंध रखते हैं। सुकमा जमींदार परिवार से होने के कारण जगदलपुर विधायक और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह देव भी राजपरिवार के साथ ही हैं। बस्तर में राजनीति की धुरी एक बार फिर राजपरिवार के इर्द—गिर्द घुमती दिखाई दे रही है। बस्तर राजमहल और राजपरिवार के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की अंतरंगता छिपी नहीं है। ऐसे में बस्तर की राजनीति का केंद्र एक बार फिर जगदलपुर के आस—पास टिकता दिखाई दे रहा है।
बतौर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह देव कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम और वर्तमान अध्यक्ष दीपक बैज के मुकाबले बड़ी बढ़त हासिल करने वाले साबित हो चुके हैं। बस्तर की कुल 12 में से 8 सीटों पर विधायक भाजपा के हैं। और दानों लोकसभा सीटों पर भाजपा की जीत से समूचा बस्तर भाजपामय दिखाई दे रहा है। इसका श्रेय यदि बस्तर को जाता है तो मंत्रीपद पर बस्तर का हक भी साफ दिखाई दे रहा है।
इसके बाद दूसरे मंत्री पद के लिए कम से कम तीन बड़े चेहरे पूर्व मंत्री राजेश मूणत, अजय चंद्राकर और अमर अग्रवाल में से राजेश मूणत का दावा ज्यादा मजबूत है। रायपुर लोकसभा चुनाव में जीत हासिल होने के बाद रायपुर के हिस्से से मंत्रीपद निकला है। यदि मूणत को जगह मिलती है तो इसे स्वाभाविक तौर पर भरपाई कहा जा सकेगा। पर अन्य समीकरण के आधार पर देखें तो अजय चंद्राकर और रायपुर उत्तर के विधायक पुरंदर मिश्रा को लेकर भी चर्चा जोरों पर है। नई टीम में एक पुराना और एक नया चेहरा शामिल करने की स्थिति में क्षेत्रीय संतुलन के हिसाब से बस्तर और रायपुर में से नए—पुराने चेहरे का संतुलन ही छत्तीसगढ़ में भाजपा के भविष्य की राजनीति को रेखांकित करेगा।
यदि रमन सिंह की चली तो मूणत या चंद्राकर में से कोई एक मंत्री बन सकेंगे। वैसे देखा जाए तो मंत्री रहते हुए इन दोनों कद्दावर भाजपा नेताओं का व्यवहार ही सबसे ज्यादा नकारात्मक रहा। जिसके चलते 2018 में रायपुर में भाजपा को करारी शिकस्त मिली थी। रायपुर में स्काई वॉक का भूत अभी भी खड़ा ही है। इसका पुननिर्माण भाजपा सरकार की मजबूरी बन चुकी है। भले ही इसके औचित्य को लेकर सवाल उठते रहें।
यदि इस कार्यकाल में मूणत की परिकल्पना को मूर्त रूप नहीं दिया गया तो भाजपा के लिए यह मुद्दा और भी निरूत्तर करने वाला साबित होगा। मूणत मंत्री बनेंगे तो वे अपनी परिकल्पना को मूर्त रूप देकर भाजपा की लाज बचा सकेंगे। मूणत और बृजमोहन के बीच बीते सात साल की राजनीति को देखें तो आंतरिक रंजिश के कई सबूत दिखाई देते हैं। सो अब यह देखना होगा पुरंदर की लॉटरी लगेगी या मूणत अपना जलवा दिखाएंगे… पद के लिए छटपटाते अजय को सबने विधानसभा सत्र के दौरान साफ देखा है वे जिस तरह से नए मंत्रियों को घर पर ही घेरने की रणनीति में काम करते दिखे हैं यह किसी से छिपा नहीं है। खैर राजनीति है… असंभव कुछ भी नहीं…