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कभी धर्म बदलने को नहीं कहा… मुसलमान महिला के तीन हिंदू बच्चे, कहानी पर बनी फिल्म…

इम्पैक्ट डेस्क.

इस बार ऑस्कर्स में भारत की शॉर्ट फिल्म ‘द एलिफैंट विस्परर्स’ ने धमाल मचा दिया। संवेदनशीलता के साथ वास्तविकता दिखाने वाली फिल्में समाज में जगह बनाने में कामयाब हो रही हैं। ऐसी ही एक मलयालम फिल्म है ‘एन्नु स्वाथम श्रीधरन।’ इस फिल्म में एक ऐसी महिला की कहानी दिखाई गई है जो खुद दतो मुसलमान हैं लेकिन उनके तीन बच्चे हिंदू हैं। महिला ने कभी उनपर इस्लाम कबूल करने का दबाव नहीं बनाया है। 

फिल्म का अर्थ है ‘मेरा अपना श्रीधरन।’ श्रीधरन उनके बेटे का नाम है। उनके साथ ही थेननदन सुबैदा ने उनकी दो बहनों रमानी और लीला को भी पाल-पोषकर ब़ड़ा किया। श्रीधरन बताते हैं कि सुबैदा ने उनका लालन-पालन सगे बच्चों की तरह ही किया। दरअसल श्रीधरन ने मां के गुजर जाने पर एक फेसबुक पोस्ट लिखा था। यहीं से इस फिल्म की प्रेरणा मिली। यह पोस्ट उन्होंने साल 2019 में लिखा था। 


उन्होंने लिखा था, ‘मेरी अम्मा अल्लाह की प्यारी हो गईं। उनके लिए आप सभी दुआ करें ताकि जन्नत में उनका स्वागत हो।’ उनकी इस पोस्ट के बाद लोग सवाल करने लगे कि आखिर एक हिंदू शख्स अपनी मां को उम्मा क्यों कह रहा है। इसके बाद श्रीधरन ने सोशल मीडिया पर अपनी कहानी लिखी तो लोग भावुक हो गए। 

श्रीधरन ने बताया कि वह और उनकी दोनों बहनें बहुत छोटी थीं जब उनकी मां गुजर गई थीं। वह एक दलित थे। सुबैदा उनके घर आया जाया करती थीं। श्रीधरन की मां के मरने की जानकारी हुई तो वह वहां गईं। श्रीधरन की दोनों बहनें बड़ी थीं। इसके बाद सुबैदा तीनों ही बच्चों को अपने घर ले आईं और अपने सगे बच्चों की तरह पाला। सुबैदा का साथ इस मामले में उनके पति अब्दुल अजीज हाजी ने भी दिया। उनके सगे बच्चे भी थे। लेकिन उन दोनों ने कभी भेदभाव नहीं किया। 


श्रीधरन अब 49 साल के हैं। सुबैदा ने अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा भी दिलाई। लीला का कहना है कि उनकी उम्मा उन्हें हमेशा मंदिर जाने देती थीं और कभी-कभी खुद भी साथ जाती थीं। उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि कौन सा धर्म अच्छा है या बुरा है। जब उनसे बड़े होने के बाद उन लोगों ने पूछा कि उन्होंने कभी धर्म परिवर्तन करने को क्यों नहीं कहा तो उन्होंने  यह जवाब दिया कि सभी धर्म एक ही शिक्षा देते हैं। ऐसे में हर धर्म बराबर हैं और सब अपने-अपने हिसाब से पूजा-पाठ कर सकते हैं।